साहिबगंज के पहाड़ी इलाकों में चार महीने से आंतक का पर्याय बने एक हाथी को शुक्रवार की देर शाम मार दिया गया.
झारखंड के मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) लाल रत्नाकर सिंह ने हाथी के मारे जाने की पुष्टि कर दी है.
वन विभाग ने मशहूर हंटर नवाब शहफत अली ख़ान को भी हाथी को मारने के लिए बुलाया था.
खान के साथ वन विभाग के अनुभवी अधिकारी साहिबगंज ज़िले के तालझरी इलाके में इस हाथी की तलाश में लगातार दौरा कर रहे थे.
शहफत अली खान ने देर रात बीबीसी को बताया कि साहिबगंज जिले के बंझरी गांव के जंगलों- पहाड़ों पर वेलोग सुबह से हाथी की तलाश कर रहे थे. दरअसल तालझरी के जंगलों में गुरुवार को उसे देखा गया था.
उन्होंने बताया, "शाम में हाथी पर नजर पड़ी, तो हमने महज पंद्रह फीट की दूरी से निशाने लिए. तब हाथी ने हमले करने की भी कोशिश की. तेजी से संभलते हुए हमने अपनी राइफल ( .458 मैगनम) से ताबड़तोड़ दो गोलियां फायरिंग की जिससे वो ढेर हो गया."
खान ने बताया कि वाकई ये काफी बिगड़ैल हाथी था, जिसे ट्रैंकुलाइज करने में परेशानी हो रही थी.
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शहफत अली खान के साथ वन विभाग के अधिकारी और चिकित्सक भी थे. रात में सभी लोग पहाड़ी से नीचे उतरे. लाल रत्नाकर सिंह के मुताबिक शनिवार को हाथी का पोस्टमार्टम कराकर उसे दफना दिया जाएगा.
अधिकारियों के मुताबिक चार महीने के दौरान इस हाथी ने 11 लोगों को कुचल कर मार डाला है. इनमें नौ आदिम पहाड़िया जनजाति के लोग हैं. इस हाथी की उम्र 25 साल रही होगी.
इस हाथी के बिगड़ैल मिजाज से भय खाकर पहाड़ों पर बसने वाले कई टोले से आदिवासी दूसरी जगहों पर चले गए हैं.
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दुरूह इलाका
वन विभाग का दावा है कि कि मार्च महीने के अंतिम हफ्ते में यह हाथी बिहार से साहिबगंज के जंगलों में आया था. बिहार में भी इसने चार लोगों को कुचल कर मारा है.
वन अधिकारी के मुताबिक पिछले 28 जुलाई को इस हाथी को ट्रैंकुलाइज ( बेहोश कर पकड़ना) करने का आदेश दिया गया था. लेकिन पूरा इलाका दुरूह है.
जंगल-पहाड़ काफी घना है जहां पंद्रह फीट से ज्यादा दूरी से साफ तरीके से दिखाई भी नहीं पड़ता है.
इस बीचज पिछले पांच दिनों के अंदर भी इस हाथी ने दो लोगों को कुचल कर मार डाला था.
स्थानीय लोगों का आक्रोश भी बढ़ता जा रहा था. इस हाथी को खदेड़ने में जुटे कई वनकर्मी भी घायल हुए हैं.
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आखिरी विकल्प
जबकि पिछले महीने नवाब शहफत अली खां ने भी पहाड़ों- जंगलों का दौरा करने के साथ इस बिगड़ैल हाथी को ट्रैंकलुलाज कर पकड़ने में हो रही परेशानियों के बारे में आला अधिकारियों को जानकारी दी थी.
लाल रत्नाकर सिंह के मुताबिक तमाम परिस्थितियों का आंकलन करने और वन अधिकारियों के साथ विमर्श के बाद आखिरी विकल्प हाथी को मारने का बचा था.
वैसे भी झारखंड के पठारी इलाकों में हाथियों के हमले से बड़े पैमाने पर जान- माल की भारी क्षति होती रही है.
अलग राज्य गठन के बाद से अब तक करीब साढ़े ग्यारह सौ लोग हाथियों के हमले में मारे गए हैं. औसतन साठ लोग हर साल हाथी के हमले में मारे जाते रहे हैं.
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लोगों की जान
वन विभाग ने बतौर मुआवजे अब तक पचास करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
हालांकि हाथियों की संख्या इस बार 688 से घटकर 555 हो गई है.
लेकिन छोटानागपुर के कई इलाकों में जंगलों-पहाड़ों की तराई वाले गांवों में उत्पात मचाने वाले हाथियों के हर वक्त मिजाज बदलते रहते हैं.
साहिबंगज के अलावा इन दिनों सिमडेगा, खूंटी, गिरिडीह, रांची, चतरा के जंगलों में हाथियों का झुंड लोगों की जान ले रहे हैं. घरों को ढा रहे हैं. खतों में लगी फसलों को रौंद रहे हैं.
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