बनारस में कांग्रेस मजबूत प्रत्याशी उतारने की तैयारी में
वाराणसी: भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र के चुनावी मैदान में आने से देश-विदेश में बनारस की चर्चा है. भाजपा ने बड़ी उम्मीदों के साथ मोदी को बनारस में उतारा था. लेकिन, बढ़ते समय के साथ पार्टी के रणनीतिकारों की चिंता भी बढ़ने लगी है. पार्टी को आशा थी कि मोदी को बनारस में उतारने से पूर्वाचल की सीटें उसकी झोली में गिर जायेंगी, लेकिन हकीकत यह है कि पूर्वाचल के समीकरण काफी उलङो हुए हैं.
बनारस भाजपा के लिए सुरक्षित माना जाता रहा है. 1991 के उपचुनावों के बाद से यहां से भाजपा प्रत्याशी ही जीतते रहे हैं. वर्ष 2004 में तत्कालीन भाजपा सांसद शंकर प्रसाद जायसवाल के विरोध की लहर की वजह से कांग्रेस के राजेश मिश्र जीते, लेकिन वर्ष 2009 में भाजपा के मुरली मनोहर जोशी ने उनकी जमानत जब्त करवा दी.
दरअसल, भाजपा ने जब मोदी को मैदान में उतारा, तब उसने कहा था कि मोदी का असर पूर्वाचल की सीटों पर भी पड़ेगा. मोदी ने ताल ठोंक भी दी, लेकिन जो समीकरण उभरे हैं, भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. बनारस से सटे चंदौली में टक्कर सपा के रामकिशुन और बसपा के अनिल मौर्या में मानी जा रही है. जातीय समीकरण कुछ इस तरह हैं कि भाजपा के महेंद्र पांडेय के लिए डगर कठिन है. बगल में गाजीपुर सीट पर सपा की शिवकन्या कुशवाहा और बसपा के कैलाश नाथ सिंह यादव मैदान में हैं. दो बार सांसद रह चुके मनोज सिन्हा भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं. यहां भी अनिश्चितता की स्थिति है.
बनारस से लगी जौनपुर सीट पर सपा के पारसनाथ यादव और बसपा के सुभाष पांडेय कांग्रेस से रवि किशन और भाजपा से केपी सिंह मैदान में हैं. माना जा रहा है कि भाजपा को बसपा और सपा से लोहा लेना कठिन पड़ रहा है. मछलीशहर में टक्कर बसपा के बीपी सरोज और सपा के तूफानी सरोज में मानी जा रही है. भाजपा के रामचरित्तर निषाद के लिए मुकाबला लोहे के चने चबाने जैसा है.
भदोही में सपा की सीमा मिश्र और बसपा के राकेशधर त्रिपाठी के बीच का मुकाबला है. भाजपा के वीरेंद्र मस्त की डगर कांटों भरी बतायी जा रही है. आजमगढ़ की सीट से भाजपा के रमाकांत यादव मजबूत प्रत्याशी हैं, लेकिन सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने खुद ताल ठोंक कर उनका गणित बिगाड़ दिया है. घोसी में बसपा से दारा सिंह चौहान और सपा से राजीव राय चर्चा में हैं. यहीं से माफिया मुख्तार अंसारी भी चुनाव लड़ने की जुगत में हैं. भाजपा के हरिनारायण राजभर को गैर जिले का होने का नुकसान होता दिख रहा है.
बलिया में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर सपा से मैदान में हैं. भाजपा के भरत सिंह के लिए इनसे सीट छीनना आसान नहीं है. रॉबर्ट्सगंज सीट पर भाजपा के छोटेलाल खरवार की लड़ाई सपा के पकौड़ी लाल कोल और बसपा के शारदा प्रसाद से है. लब्बोलुआब यह कि पूर्वाचल की अधिकतर सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी चमत्कारिक परिणाम नहीं देने जा रहे हैं. साफ है कि अगर पूर्वाचल में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, तो पार्टी की दिल्ली की राह मुश्किल हो जायेगी.
अधिकतर भाजपा प्रत्याशियों के लिए संसद की डगर कठिन
बनारस की सीट पर भी घमसान है. माना जा रहा है कि केजरीवाल जो वोट काटेंगे, उसका नुकसान भाजपा को होगा. यही वजह है कि केजरीवाल के दौरे में अंडे स्याही फेंकनेवाले भाजपाई ही थे. अभी कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. अगर मोदी बनारस से जीते, तो सबसे बड़ी बात जीत के अंतर की होगी. वर्ष 2009 के चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी माफिया मुख्तार अंसारी से महज 17,000 वोटों से जीते थे, जिसे विश्लेषक ने अच्छी जीत नहीं माना था. अगर जनता ने चाहा, तो हो सकता है कि मोदी जीत जायें, लेकिन बनारस से उनकी जीत का अंतर और पूर्वाचल से भाजपा की सीटें तय करेंगी कि मोदी ने सुरक्षित सीट चुनी थी या फिर पूर्वाचल में पार्टी को मजबूत करने की कोशिश की थी.