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भ्रष्टाचार से जंग का हथियार है ‘आधार’

-नॉलेज डेस्क- आजादी के 67 साल बाद भी यदि भारत में गरीबों की संख्या सबसे ज्यादा है, तो इसकी बड़ी वजह यह है कि गरीबी उन्मूलन की योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रही हैं. माना जा रहा था कि तकनीक के युग में ‘आधार’ इस भ्रष्टाचार से लड़ने का कारगर हथियार साबित होगा. अब सुप्रीम […]

-नॉलेज डेस्क-

आजादी के 67 साल बाद भी यदि भारत में गरीबों की संख्या सबसे ज्यादा है, तो इसकी बड़ी वजह यह है कि गरीबी उन्मूलन की योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रही हैं. माना जा रहा था कि तकनीक के युग में ‘आधार’ इस भ्रष्टाचार से लड़ने का कारगर हथियार साबित होगा. अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में आधार की अनिवार्यता खत्म करने को कहा है. इससे इस अतिमहत्वाकांक्षी योजना के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं.

आधार कार्ड से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फिर से अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा है कि यदि सरकार ने सरकारी सेवाओं के लिए आधार की अनिवार्यता से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किये हैं, तो उसे वह तत्काल वापस ले. सुप्रीम कोर्ट सितंबर, 2013 में जारी अंतरिम आदेश में भी कह चुका है कि किसी भी व्यक्ति को ‘आधार कार्ड’ न होने के चलते किसी तरह की सरकारी सेवा या योजना के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता. इस फैसले से एक ऐसी परियोजना के भविष्य को लेकर आशंका जतायी जाने लगी है, जिसके बारे में कहा जा रहा था कि आधुनिक तकनीक और इंटरनेट के युग में यह भ्रष्टाचार से लड़ने का बेहद कारगर हथियार साबित होगी.

जस्टिस बीएस चौहान और जस्टिस जे चेलमेश्वर की पीठ ने बीते सोमवार को बॉम्बे हाइकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए अंतरिम आदेश जारी किया. बॉम्बे हाइकोर्ट की गोवा पीठ ने रेप के एक मामले को सुलझाने के लिए आधार कार्ड जारी करने के लिए जुटाये गये डाटा को सीबीआइ के साथ साझा करने का आदेश दिया था. यूआइडीएआइ (विशिष्ट पहचान प्राधिकरण) ने हाइकोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी थी. प्राधिकरण का कहना था कि इससे गलत परंपरा शुरू होगी और विभिन्न जांच एजेंसियां समेत पुलिस जांच के लिए लोगों के बायोमेट्रिक और अन्य आंकड़े मांगने लगेंगी. यूआइडीएआइ का कहना है कि आधार के लिए तकरीबन 60 करोड़ लोगों ने पंजीकरण कराया है. संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बगैर किसी के साथ उसकी पहचान के आंकड़े साझा करना यूआइडीएआइ की मौजूदा नीति के खिलाफ है और इससे नागरिक अधिकारों का उल्लंघन होगा. इस पर कोर्ट ने माना कि आरोपी की सहमति के बिना बायोमेट्रिक या अन्य कोई आंकड़ा किसी भी एजेंसी के साथ साझा नहीं किया जाना चाहिए. पीठ ने सीबीआइ और संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. साथ ही, इस याचिका को भी आधार की संवैधानिकता को चुनौती देनेवाली याचिका के साथ संलग्न करने का आदेश दिया है.

इसके साथ ही पीठ ने सभी विभागों को सर्कुलर जारी कर स्पष्ट करने को कहा है कि आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है. आधार की अनिवार्यता खत्म करने के सर्वोच्च अदालत के फैसले से यूपीए सरकार की इस अति महत्वाकांक्षी परियोजना के भविष्य को लेकर आशंका जतायी जाने लगी है.

आधार से भ्रष्टाचार पर लगाम

सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण नहीं हो पाने के कारण आजादी के साढ़े छह दशक बाद भी देश में गरीबों की तादाद दुनिया में सबसे ज्यादा है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि साधन संपन्न लोग सरकारी अधिकारियों के साथ सांठगांठ करके वंचितों के हक पर कब्जा जमा लेते हैं. 1980 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने माना था कि केंद्र से आवंटित 100 पैसा आम आदमी तक पहुंचते-पहुंचते 15 पैसे तक सिकुड़ जाता है. यानी केंद्र द्वारा जारी 85 फीसदी से ज्यादा रकम उसे आम आदमी तक पहुंचाने की व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है. इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है. किसी खास इलाके में बाढ़ या सुखाड़ के बाद सरकार वहां के प्रभावित निवासियों को राहत के तौर पर मोटी रकम बांटती है. इस रकम को बांटे जाने के क्रम में इतनी धांधली होती है कि लाभार्थियों तक पहुंचते-पहुंचते इस रकम का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है. अनेक लोग इस ‘राहत’ से वंचित रह जाते हैं. कुछ लोगों को मिलता भी है, तो बहुत ही कम.

भ्रष्टाचार के ऐसे प्रारूपों से निबटने के लिए ही केंद्र सरकार ने ‘आधार’ नामक बहुआयामी परियोजना बनायी, ताकि राहत व सरकारी मदद की पूरी रकम लाभार्थियों को सीधे उनके खाते तक पहुंचायी जा सके. इससे भ्रष्टाचार की गुंजाइश न्यूनतम होने की उम्मीद जतायी गयी. प्रत्येक बैंक खाते को ‘आधार’ से जोड़ने के पीछे भी यही मंशा थी. विशेषज्ञों का मानना है कि आधार संख्या से लाभार्थियों के खातों को जोड़ते हुए राहत की रकम को सीधे उसके हकदारों को खाते में भेजा जा सकता है. ऐसा होने से प्रशासनिक स्तर पर रकम के वितरण में की जानेवाली धांधलियों को पुख्ता तौर पर रोका जा सकता है.

मनरेगा में मची लूट पर काबू

‘आधार’ के साथ जोड़ने से कई महत्वाकांक्षी सरकारी योजनाओं में अनियमितताओं को भी रोका जा सकता है और जरूरतमंदों को इसका पूरा फायदा मिल सकता है. मसलन, देश के कई राज्यों में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना) के तहत भ्रष्टाचार के मामले सामने आये हैं. कई जगहों पर बैंक व पोस्ट आफिस के फर्जी खातों के माध्यम से करोड़ों की रकम का भुगतान किया गया है. मनरेगा के तहत कामगारों को यदि ‘आधार’ के तहत लिंक करने को अनिवार्य किया जाये, तो आज तकनीक इतनी विकसित हो चुकी है कि इस तरह के भ्रष्टाचार को काफी हद तक रोका जा सकता है.

बैंक खातों को जानना आसान

देश में किसी व्यक्ति के नाम से कितने बैंकों में कितने खाते हैं, इसे जान पाना सरकार के लिए आसान नहीं है. इससे कालेधन के बारे में सटीक जानकारी नहीं मिल पा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सभी बैंक खातों को आधार संख्या से जोड़ना अनिवार्य कर दिया जाये, तो इस मामले में बेहद पारदर्शिता आ सकती है. साथ ही, सरकार एक व्यक्ति के नाम पर खोले गये अनेक खातों को आसानी से ट्रैक कर सकती है. यदि कोई व्यक्ति बैंकों के जरिये होनेवाले लेन-देन पर पर्याप्त टैक्स नहीं चुकाता है, तो इसे भी आसानी से पकड़ा जा सकता है. साथ ही, इससे अनेक प्रकार की वित्तीय गड़बड़ियों को भी रोका जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट की दखलअंदाजी

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपने संपादकीय में ‘इकोनॉमिक टाइम्स’ ने लिखा- ‘सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य सुविधाओं को हासिल करने में आधार कार्ड की अनिवार्यता खत्म करने के निर्देश सरकार को दिये हैं. इस फैसले से लाखों गरीब भारतीयों को सरकारी योजनाओं का लाभ और पहचान दिलाने के लिए बनायी गयी एक बदलावकारी योजना बरबाद हो जायेगी. न्यायिक हस्तक्षेप का यह एक और उदाहरण है. विशिष्ट पहचान संख्या देना संसदीय व्यवस्था के बजाय सरकारी पॉलिसी का मामला है और इसके लिए पॉलिसी बनाना व्यवस्थापिका और कार्यपालिका का विशेषाधिकार है. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहा है. दूसरा, कोर्ट के इस फैसले से भ्रष्टाचार और सब्सिडी के वितरण में घपलेबाजी को ही बढ़ावा मिलेगा, जो कि दुखद है. तीसरा, यह अनावश्यक रूप से असमंजस पैदा करेगा, जबकि आधार बैंक खाता खोलने और अन्य सुविधाओं को हासिल करने के लिए ही बनाया गया है.’

‘सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी सुविधाओं को हासिल करने के लिए आधार को जरूरी बनाने के केंद्र सरकार के फैसले को वापस लेने को कहा है. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआइडीएआइ) को भी किसी जांच एजेंसी से कार्डधारक की किसी भी सूचना को साझा नहीं करने के आदेश दिये हैं. इससे लोग आधार को सरकारी सुविधा हासिल करने के जरूरी प्रावधान के बजाय स्वैच्छिक रूप से इस्तेमाल कर सकेंगे. दिसंबर, 2012 में सरकार द्वारा जारी परिपत्र में भी कहा गया था कि ‘आधार कार्ड नहीं होने पर किसी का कोई काम नहीं रुकेगा.’ गोपनीयता के पक्षधरों ने भी जानकारियों को राज्यों की विभिन्न एजेंसियों से साझा करने पर रोक लगाने के फैसले पर प्रसन्नता जतायी है.’

‘आधार कार्ड से सब्सिडी और राहत भुगतान के तहत वितरित की जानेवाली रकम में होनेवाली घपलेबाजी को रोका जा सकता है. निश्चित रूप से सरकार को हकदार नागरिकों को मिलनेवाले लाभों से वंचित नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे आधार नंबर को आसानी से हासिल कर पाने में सक्षम नहीं हैं. सरकार को भुगतान प्रक्रिया को व्यवस्थित और पारदर्शी बनाने की योजना तैयार करनी चाहिए. अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए आधार से सब्सिडी भुगतान पर रोक लगा दी है. दुर्भाग्य से इस योजना का राजनीतिकरण हो गया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इसमें आग में घी डालने का काम किया है.’

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