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Vat Savitri Puja 2020 : जानिए अमर सुहाग के प्रतीक इस पूजा का महत्व एवं विधि

आज यानी शुक्रवार, 22 मई को वट सावित्री व्रत रखा जाएगा. यह त्योहार हिन्दू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ महीने की अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत मनाया जाता है. यह व्रत विशेषकर विवाहित महिलाओं के द्वारा अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद पाने के लिए रखा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं. अत: इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है. इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है. ऐसा मान्यता है कि वट सावित्री व्रत कथा के श्रवण मात्र से महिलाओं के पति पर आने वाली बुरी बला टल जाती है. इस पर्व को देश के सभी हिस्सों में मनाया जाता है. आइए जानते हैं क्यों है ये त्योहार महिलाओं के लिए खास एवं इसकी विधि

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जानिए क्यों हैं महिलाओं के लिए यह व्रत खास

आज का दिन महिलाओं के लिए बेहद खास है. इस दिन माता सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस ली थी. इसलिए महिलाओं के लिए ये व्रत बेहद ही फलदायी माना जाता है. इस दिन सुहागन महिलाएं पूरा शृंगार कर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. वट वृक्ष की जड़ में भगवान ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों, पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है. महिलाएं इस दिन यम देवता की पूजा करती हैं. इसके बाद पूजा करने के बाद व्रती महिलाएं कथा सुनती है.

पूजन सामग्री का होता है खास महत्व

इस व्रत में पूजन सामग्री का खास महत्व है. मान्यता है कि सही पूजन सामग्री के बिना की गई पूजा अधूरी मानी जाती है. इसमें बांस का पंखा, लाल व पीला धागा, धूप बत्ती, फूल, कोई भी पांच फल, जल से भरा पात्र, सिंदूर, लाल कपड़ा आदि का होना अनिवार्य है.

वट सावित्री व्रत पूजन विधि

वट सावित्री व्रत के दिन दैनिक कार्य कर घर को गंगाजल से पवित्र करना चाहिए. इसके बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्माजी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए. ब्रह्माजी के बाईं ओर सावित्री और दूसरी ओर सत्यवान की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए.

इसके बाद टोकरी को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रख देना चाहिए. इसके बाद सावित्री और सत्यवान का पूजन कर, वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पण करना चाहिए. पूजन के समय जल, मौली, रोली, सूत, धूप, चने का इस्तेमाल करना चाहिए. सूत के धागे को वट वृक्ष पर लपेटकर तीन बार परिक्रमा कर सावित्री व सत्यवान की कथा सुने. पूजन समाप्त होने के बाद वस्त्र, फल आदि का बांस के पत्तों में रखकर दान करना चाहिए और चने का प्रसाद बांटना चाहिए.

vat savitri 2020, katha: व्रत रखने वाली सुहागिनें जरूर पढ़ें वट सावित्री व्रत की कथा

व्रत की कथा

पटना मेट्रोवट सावित्री व्रत कथा के अनुसार सावित्री के पति अल्पायु थे, उसी समय देव ऋषि नारद आए और सावित्री से कहने लगे की तुम्हारा पति अल्पायु है. आप कोई दूसरा वर मांग लें. पर सावित्री ने कहा- मैं एक हिंदू नारी हूं, पति को एक ही बार चुनती हूं. इसी समय सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी. सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लेटा दिया. उसी समय सावित्री ने देखा अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे है. सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं. यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं.

उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है. अब तुम वापस लौट जाओ. उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है. यही मेरा पत्नी धर्म है.

क्यों मनाया जाता है वट सावित्री व्रत

पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन ही सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाये थे. महिलाएं भी इसी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए व्रत रखकर पूरे विधि विधान से पूजा करती हैं. इस व्रत को लेकर महिलाओं में खासा उत्साह रहता है. आखिर उत्साह हो भी तो क्यों नहीं, अपने सुहाग की रक्षा व लंबी उम्र के लिए जो यह व्रत होता है.लॉकडाउन में कैसे करें पूजाइस दिन वट (बरगद) के पूजन का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सावित्री भी वट वृक्ष में ही रहते हैं.

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लॉकडाउन के कारण पूजा स्थलों नहीं होगी पूजा अर्चना

इस बार लॉकडाउन के कारण धार्मिक स्थलों पर पूजा अर्चना करने पर रोक लगायी गयी है. इस कारण वटवृक्ष के पास भी पूजा अर्चना नहीं होगी. कोरोना की रोकथाम के लिए यह आवश्यक भी है कि सभी लोग अधिक से अधिक घरों में रहें और सुरक्षित रहें.

वट सावित्री पूजा 2020 मुहूर्त

अमावस्या तिथि आरंभ - 21:35 बजे (21 मई 2020)

अमावस्या तिथि समाप्त - 23:07 बजे (22 मई 2020)

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