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विक्की कौशल की फिल्म सैम बहादुर से… जमशेदपुर के कुमार अभिषेक का है खास कनेक्शन, जानें उनके बारे में

मेघना गुलज़ार की ओर से निर्देशित फिल्म सैम बहादुर को दर्शकों से खूब सारा प्यार मिल रहा है. इस फिल्म से जमशेदपुर के कुमार अभिषेक असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर जुड़े हुए हैं. उन्होंने मूवी को लेकर दिलचस्प खुलासे किए हैं.

निर्देशिका मेघना गुलज़ार की फिल्म सैम बहादुर इन-दिनों सुर्खियों में है. विक्की कौशल अभिनीत इस फिल्म से जमशेदपुर के कुमार अभिषेक असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर जुड़े हुए हैं. पेशे से इंजीनियर कुमार अभिषेक की मानें तो इंजीनियरिंग की नौकरी को छोड़ फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाने का उनका फैसला आसान नहीं था. खुद पर विश्वास करने में उन्हें काफी समय लगा, लेकिन उन्हें समझ आ गया कि कॉर्पोरेट की सुरक्षित नौकरी उन्हें वह ख़ुशी नहीं दे पाएगी, जो फिल्म इंडस्ट्री के संघर्ष में भी उन्हें मिल जायेगी . उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश…

जमेशदपुर से मुंबई की अब तक की जर्नी क्या रही है ?

मैं जमेशदपुर में ही पला- बढ़ा हूं. लोयला स्कूल से मेरी एजुकेशन हुई है. मेरे पिता पुलिस में थे, जिस वजह से उनका ट्रांसफर कई जगहों पर होता रहता था, लेकिन हमारी पढाई प्रभावित ना हो इसलिए मेरी मां हम भाईयों और बहन के साथ जमशेदपुर में ही रही थी. थिएटर का शौक मुझे स्कूल कॉलेज में ही हो गया था, लेकिन करियर बनाने के बारे में सोचा नहीं था. मैं अपने इंजीनियरिंग करने लिए कर्नाटक के मणिपाल चला गया था. कर्नाटक में ही मैंने सॉफ्टवेयर में जॉब करना शुरू किया, लेकिन मेरा मन नहीं लग रहा था. मैंने फिल्म मेकिंग का एक डिप्लोमा कोर्स जॉब के साथ-साथ किया और वहां के दोस्तों के साथ मिलकर शॉर्ट फिल्म बनाने लगा जिसे सभी पसंद भी करते लगे. उस वक़्त लगा कि शायद मैं इस फील्ड में आगे बढ़ सकता हूं.

कॉर्पोरेट जॉब छोड़कर फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करने का फैसला कितना मुश्किल था, घरवालों का कितना सपोर्ट था ?

बहुत मुश्किल था क्योंकि कॉर्पोरेट में आपको हर महीने एक फिक्स्ड सैलरी मिलती है. बिहारी परिवार से हूं. नाना, दादा और पापा सभी पुलिस में ही थे तो हम से भी उम्मीद थी कि हम यूपीएससी या जेपीएससी क्लियर करेंगे. यूपीएससी की तैयारी शुरू की थी, लेकिन फिर समझ आया कि यह मेरे लिए नहीं है. सबकुछ सोचने समझने बाद मैंने मेरे माता-पिता से बात की है कि मैं कोशिश करना चाहता हूं, अगर कुछ नहीं हुआ तो मेरे पास इंजीनियरिंग की डिग्री है. जॉब फिर से शुरू कर सकता हूं. मेरे पूरे परिवार ने मेरे फैसले पर सपोर्ट किया. मम्मी पापा भाई और बहन सभी ने मेरे फैसले को मेरे दोस्तों ने भी सपोर्ट किया. वैसे फिल्मों से मेरा जुड़ाव मेरी मां की वजह से हुआ है वह धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन की बहुत बड़ी फैन रहीं हैं. उनकी सभी फिल्में देखती थी, जिस वजह से फिल्मों से मेरा भी जुड़ाव हुआ. 2017 में जॉब छोड़ा और 2018 में मुंबई आ गया.

मुंबई में पहला काम क्या था और सैम बहादुर से कैसे जुड़ना हुआ ?

मेरे स्कूल का दोस्त है राजदीप चटर्जी, जमशेदपुर का काफी परिचित नाम है. वो सिंगर है. मुंबई आने के बाद मैं राजदीप के घर पर रुका था. मुंबई मेरे और भी दोस्त थे. जिन्होंने घर ढूंढने में मदद की. लोगों से मिलवाया. राजदीप के म्यूजिक वीडियो को मैंने शुरुआत में निर्देशित किया. इस तरह उसने मदद की. मैं गाने लिखता था और धुन भी बनता था. मैंने म्यूजिक फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली, लेकिन मेरी रूचि बहुत रही है, क्योंकि मेरे पापा को म्यूजिक से लगाव रहा है, तो मैं राजदीप के साथ वह काम करने लगा. पैसों के लिए क्रिएटिव प्रोड्यूसर के तौर पर एक एजेंसी में काम करने लगा. वहां पर म्यूजिक और फिल्म आर्टिस्ट के कंटेंट को डायरेक्ट कर रहा था. जब लॉक डाउन हुआ तो किसी के पास काम नहीं था, लेकिन उस वक़्त भी मैं उस एजेंसी में था. उसी दौरान विशाल भरद्वाज सर ने तय किया कि वह अपना म्यूजिक लेबल लांच करेंगे. मैं जिस कम्पनी में काम कर रहा था. उनके साथ उनकी पार्टनरशिप हुई और विशाल सर के कंटेंट देखने का काम मुझे ही मिला था. उसी दौरान मुझे मालूम हुआ कि उनके बेटे आकाश अपनी पहली फिल्म कुत्ते बना रहे हैं. मैं तो फिल्मों में ही काम करना चाहता था. मैंने सामने से आकाश को मैसेज किया. उन्होंने इंटरव्यू के लिए बुलाया. इंटरव्यू के बाद मेरा सिलेक्शन हो गया. 3 असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर मैं उस फिल्म से जुड़ा था. उस फिल्म की स्क्रिप्ट सुपर वाइजर शोमा घोष थी. जो सैम बहादुर से आगे चलकर जुडी और उन्होंने मेरा नाम वहां रेकमेंड किया. मेघना जी से मैं मिला. उनको मेरी वाइब अच्छी लगी और मुझे सैम बहादुर मिल गयी. मैं बताना चाहूंगा कि मैं 3 असिस्टेंट डायरेक्टर था, लेकिन मेरा काम उन्हें अच्छा लगा और मुझे 2 अस्सिटेंट डायरेक्टर उन्होंने बना दिया.

सैम बहादुर फिल्म में आपकी जिम्मेदारी क्या थी ?

किसी भी फिल्म में जो असिस्टेंट डायरेक्टर्स होते हैं. उनके अपने-अपने डिपार्टमेंट्स होते हैं. कुत्ते में मैं एक्टर, उनके लुक, कॉस्ट्यूम और बैकग्राउंड एक्टर्स जो होते हैं. उनको हैंडल करता था. सैम में मैं ज़्यादा से ज़्यादा सेट पर था. फिल्म के एक्शन और फिल्म में इस्तेमाल होने वाले हथियारों पर मेरा काम था. 1947, 1971 में कैसी गन होती थी. रिसर्च करना और फिर वेंडर से उनको बनवाना ये सब मेरा काम था. आर्मी के एक कंसलटेंट फिल्म से जुड़े थे, तो उन्होंने भी मेरे रिसर्च वर्क में मदद की. मेघना जी बहुत बड़ी टास्क मास्टर है, लेकिन वो बहुत ही प्रेरणादायी हैं, उन्होंने अपनी फिल्म को एक बच्चे की तरह बड़ा किया है. अपनी फिल्म के मैं भी वैसा करना चाहूंगा.

भविष्य को लेकर क्या प्लानिंग है ?

अभी मैं धर्म प्रोडक्शन की फिल्म जिगरा कर रहा हूं. आलिया भट्ट वाली फिल्म, जिसे वसन बाला निर्देशित कर रहे हैं. सेकेंड एडी के तौर पर यहां काम कर रहा हूं. 35-36 दिनों की शूटिंग पूरी हो गयी है. भविष्य की बात करूं तो अस्सिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर फ़िलहाल काम करना चाहूंगा. इससे मुझे आर्थिक तौर मदद मिलेगी और इंडस्ट्री में सम्पर्क भी बनेगा. मैं अपनी स्क्रिप्ट्स पर भी काम कर रहा हूं. वो पूरा होने के बाद मैं अप्रोच करूंगा. मुझे ड्रामा फिल्मों में बहुत ही रूचि रही है. रीयलिस्टिक फिल्में ही बनाऊंगा. अनुराग कश्यप, शूजित सरकार, राजकुमार हिरानी मेरे पसंदीदा निर्देशक हैं.

भविष्य को लेकर क्या प्लानिंग है ?

अभी मैं धर्म प्रोडक्शन की फिल्म जिगरा कर रहा हूं. आलिया भट्ट वाली फिल्म, जिसे वसन बाला निर्देशित कर रहे हैं. सेकेंड एडी के तौर पर यहां काम कर रहा हूं. 35-36 दिनों की शूटिंग पूरी हो गयी है. भविष्य की बात करूं तो अस्सिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर फ़िलहाल काम करना चाहूंगा. इससे मुझे आर्थिक तौर मदद मिलेगी और इंडस्ट्री में सम्पर्क भी बनेगा. मैं अपनी स्क्रिप्ट्स पर भी काम कर रहा हूं. वो पूरा होने के बाद मैं अप्रोच करूंगा. मुझे ड्रामा फिल्मों में बहुत ही रूचि रही है. रीयलिस्टिक फिल्में ही बनाऊंगा. अनुराग कश्यप, शूजित सरकार, राजकुमार हिरानी मेरे पसंदीदा निर्देशक हैं.

मुंबई में रहते हुए जमेशदपुर को कितना मिस करते हैं ?

जमशेदपुर की बात ही कुछ ऐसी है कि वहां के लोग उस जगह को लेकर बहुत पजेसिव होते हैं. मैं भी हूं. साल में एक बार जाता ही हूं. मेरे परिवार और दोस्त सब वहीं हैं. मैंने एक स्क्रिप्ट लिखी है, जिसका नाम जमशेदपुर है. जमशेदपुर में ही कहानी को बेस्ड किया है. शूटिंग कहां-कहां जमशेदपुर में करूंगा ये भी तय करके रखा है. पता नहीं फिल्म बन पाएगी या नहीं लेकिन मैंने लिखा है.

क्या निर्देशक ही बनने का हमेशा से सपना था ?

मैंने शुरुआत एक्टिंग से ही की थी. कॉलेज में म्यूजिक वीडियो और शॉर्ट फिल्मों में एक्टिंग भी करता था. एक दिन एक इमरजेंसी में प्ले डायरेक्ट करना पड़ा. मैं एक्टिंग उसमें कर रहा था, अचानक से निर्देशक को कुछ समस्या आ गयी और मुझे निर्देशन की भी जिम्मेदारी लेनी पड़ी. जब मैंने निर्देशित किया तो वह बहुत ही अलग फीलिंग थी, जो मैंने कभी एक्टिंग में अनुभव नहीं किया था. ये भी समझा कि आपने कुछ सोचा है और उसे पर्दे पर हूबहू उतार रहे हैं तो उसकी एक ख़ुशी होती है, जो किसी और चीज़ में नहीं है. उसके बाद मैंने तय कर लिया कि मुझे करना है.

अक्सर कहा जाता है कि छोटे शहर के लोगों को ज़्यादा संघर्ष करना पड़ता है ?

ये सच है कि छोटे शहर के लोगों को ज़्यादा संघर्ष करना पड़ता है.. मुंबई में कोई आपको काम नहीं देना चाहता है या जबरदस्ती आपको पीछे धकेलेगा ये बात नहीं है बल्कि बात ये है कि छोटे शहर के होने की वजह से आपको एक्सपोजर कम मिला है, जिससे आपको बहुत सी चीज़ें पता ही नहीं होती है. आपको इंडस्ट्री में कैसे पहुंचना है. वो माध्यम तक पहुंचने में ही आपको समय लग जाता है, जबकि बड़े शहरों के लोगों के साथ ऐसा नहीं है. इस बात को कहने के साथ यह भी कहूंगा कि अभी छोटे शहरों में भी एक्सपोजर बढ़ रहा है. इंजीनियर, डॉक्टर और सरकारी नौकरी बस यही आपको करना है. अब वहां भी ये सोच नहीं है.

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