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घात लगाकर हमला करना और दोस्ती की आड़ में झांसा देना चीन की विदेश और रक्षा नीति के खास हिस्से हैं. भारत इनका भुक्तभोगी रहा है. इसलिए, वह फिर आक्रामक हो सकता है.

पूर्वी लद्दाख में भारत एवं चीन की सेनाओं के पीछे हटने से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बीते दस माह से जारी तनातनी में कमी होने की उम्मीद बढ़ी है. दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच हुई नौ बैठकों के बाद पैंगॉन्ग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से टुकड़ियां वापस जा रही हैं. इस अवधि में कूटनीतिक और राजनीतिक स्तर पर भी बातचीत हुई है. तनाव कम होने के साथ अप्रैल, 2020 से पहले की स्थिति बहाल होने की आशा भी बढ़ी है,

लेकिन इन उम्मीदों के बीच भारत 2017 के दोकलाम तनाव तथा गलवान में अपने सैनिकों की शहादत को नहीं भूल सकता है. चीन द्वारा टुकड़ियों को पीछे हटाने का वादा करने के बाद गलवान की घटना हुई थी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रेखांकित किया है कि पूर्वी लद्दाख में अन्य संवेदनशील इलाकों में निगरानी और तैनाती के मसलों पर आगामी बैठकों में सहमति बनाने की कोशिश होगी. विभिन्न जगहों पर चीनी सेनाओं द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन का गंभीर मुद्दा भी है.

ऐसे में अप्रैल, 2020 से पहले की यथास्थिति पर सहमति बनने में देरी लग सकती है. इसलिए भारत को सतर्कता बरतने की जरूरत है. जिस तेज गति से चीन ने बड़े हथियारों को पीछे हटाया है, उसे देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि वह इतनी ही तेजी से तैनाती भी कर सकता है. जगजाहिर तथ्य है कि नियंत्रण रेखा के निकट चीन ने बड़े पैमाने पर सैनिकों और हथियारों का जमावड़ा किया है तथा इंफ्रास्ट्रक्चर का भी विकास किया है.

दोनों देशों के बीच भरोसा अभी निम्नतम स्तर पर है. जैसा कि सेनाध्यक्ष एमएम नरवणे ने कहा है, चीन की हरकतों की वजह से संघर्ष और अविश्वसनीयता की स्थिति बनी है. चीन दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसी देशों में अपने वर्चस्व को तेजी से बढ़ा रहा है और उसकी रणनीति भारतीय प्रभाव को कम करने की है. वह विवादित सीमा रेखाओं में एकतरफा बदलाव की कोशिश भी कर रहा है.

इसे हम दक्षिण एशिया से लेकर दक्षिणी चीन सागर तक देख सकते हैं. लद्दाख में चीन की हरकतों को उसके व्यापक आर्थिक और सामरिक एजेंडे से अलग कर नहीं देखा जा सकता है. इसलिए पैंगॉन्ग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से सैनिकों के वापस जाने से भारत निश्चिंत होकर नहीं बैठ सकता है. घात लगाकर हमला करना और दोस्ती की आड़ में झांसा देना चीन की विदेश और रक्षा नीति के खास हिस्से हैं तथा भारत इनका भुक्तभोगी रहा है. दोकलाम से लद्दाख तक भारत ने हर चीनी पैंतरे का माकूल जवाब दिया है और इसका दबाव भी चीन पर है.

बीते पांच सालों में भारत जिस आत्मविश्वास के साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी रणनीतिक क्षमता के साथ खड़ा है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र, दक्षिण-पूर्वी एशिया एवं अन्य क्षेत्रों में सामरिक एवं कूटनीतिक संबंधों का विस्तार कर रहा है, उससे चीन परेशान है. इसलिए, वह फिर आक्रामक हो सकता है.

Posted By : Sameer Oraon

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