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शुक्र ग्रह के घने बादलों में छिपा हो सकता है जीवन, ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया फास्फीन गैस

क्या धरती के बाहर भी जीवन है... दशकों से वैज्ञानिक इस गुत्थी को सलझाने में उलझे हैं. लेकिन अभी तक पृथ्वी के बाहर किसी ग्रह में जीवन के संकेत नहीं मिले है. लेकिन अब लगता है बहुत जल्द वैज्ञानिक धरती के बाहर जीवन होने के संबंध में बड़ा खुलासा कर सकते है.

क्या धरती के बाहर भी जीवन है… दशकों से वैज्ञानिक इस गुत्थी को सलझाने में उलझे हैं. लेकिन अभी तक पृथ्वी के बाहर किसी ग्रह में जीवन के संकेत नहीं मिले है. लेकिन अब लगता है बहुत जल्द वैज्ञानिक धरती के बाहर जीवन होने के संबंध में बड़ा खुलासा कर सकते है. ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में पाया है की हमारे ही सौरमंडल के एक ग्रह शुक्र में जीवन के संकेत है. शुक्र ग्रह के घने बादलों में वैज्ञानिकों को जीवन के संकेत मिले है. वैज्ञानिकों ने इन बादलों में एक ऐसे गैस को खोजा है जो हमारी पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति से संबंध रखता है. इस गैस का नाम है फॉस्‍फीन है.

यह गैस एक कण फास्फोरस और तीन कण हाइड्रोजन के संयोग से बना है. फास्फीन एक रंगहीन गैस है जिसकी गंध लहसुन या सड़ी हुई मछली की तरह होती है. इस गैस को माइक्रोबैक्टीरिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में उत्सर्जित करते हैं. कॉर्बनिक पदार्थों के टूटने से भी यह गैस थोड़ी मात्रा में पैदा होती है. या यूं कहे की यह गैस पेंगुइन जैसे जानवरों के पेट में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों में पाया जाता है. यह दलदल जैसी कम ऑक्सीजन वाली जगहों पर भी पाया जाता है.

पिरामिड के आकार का गैस

फॉस्फीन गैस पिरामिड के आकार के होते हैं. क्योंकि इसमें मौजूद फॉस्फोरस का एक कण ऊपर की ओर रहता है और नीचे तीन कण गोलाई में हाइड्रोजन के होते हैं. जो एक पिरामिड की तरह दिखता है. हालांकि खुद वैज्ञानिक भी हैरान है कि इस गर्म और पथरीले ग्रह पर फॉस्फीन गैस का निर्माण कैसे हुआ होगा.

शुक्र पर हो सकता हैं माइक्रो बैक्टीरिया

फॉस्फीन गैस के मिलने के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके रसायनिक प्रक्रिया के कारण शुक्र ग्रह पर माइक्रो बैक्टीरिया भी हो सकता है. लेकिन गौर करने वाली बात है कि शुक्र ग्रह का तेज तापमान जीवन के लिए आदर्श पैमाने पर खरा नहीं उतरता है. बता दें, शुक्र ग्रह के सतह का तापमान करीब 464 डिग्री सेल्सियस होता है. जो हमारी धरती की तुलना में बहुत ज्यादा है.

फास्फीन होने का अनुमान ऐसे लगाया गया

वेल्स कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेन ग्रीव्स और उनके साथियों ने हवाई के मौना केआ ऑब्जरवेटरी में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल टेलीस्कोप और चिली में स्थित अटाकामा लार्ज मिलिमीटर ऐरी टेलिस्कोप की मदद से शुक्र ग्रह पर नज़र रखी. इससे उन्हें फॉस्फीन के स्पेक्ट्रल सिग्नेचर का पता लगा. जिसके बाद वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि शुक्र ग्रह के बादलों में यह गैस बहुत बड़ी मात्रा में है. मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अंतरिक्ष जीव वैज्ञानिकों का कहना है कि शुक्र ग्रह के वातावरण में धरती से अलग प्रकार के जीवन की संभावना है. उन्होने कहा कि शुक्र ग्रह पर जीवन को लेकर अभी कोई दावा नहीं किया जा सकता है लेकिन संभावना हो कि वहां जीवन हो सकती है.

दो मिशन पर काम कर रहा है नासा

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा शुक्र ग्रह को लेकर दो योजनाओं पर काम कर रहा है. मिशन का मकसद है यहां के वायुमंडल के बारे में ज्यादा से ज्याद जानकारी जुटाना. बता दें, शुक्र ग्रह का बादल बहुत घना है, उसपर वहां पर ज्वालामुखी विस्फोट भी होता रहते हैं. भौगोलिक रूप से यह ग्रह बेहद अशांत है. ऐसे में नासा के प्रोब को यहां से जानकारी बटोरना कठिन और दिलचस्प होनों होगा.

Post by : Pritish Sahay

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