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कालियागंज में बायरा काली पूजा की अलग महत्ता
सैकड़ों साल से जारी है परंपरा सांप्रदायिक सद्भावना की मिशाल मुसलमान दारोगा ने बनायी थी मंदिर कालियागंज : बांग्ला लोक संस्कृति में पूजा-पाठ के दौराने नदियों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है.उत्तर दिनाजपुर जिले में भी नदियों की महत्ता काफी अधिक है.जिले के कालियागंज स्थित श्रीमती नदी की भी इस मामले में अपनी एक अलग […]
सैकड़ों साल से जारी है परंपरा
सांप्रदायिक सद्भावना की मिशाल
मुसलमान दारोगा ने बनायी थी मंदिर
कालियागंज : बांग्ला लोक संस्कृति में पूजा-पाठ के दौराने नदियों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है.उत्तर दिनाजपुर जिले में भी नदियों की महत्ता काफी अधिक है.जिले के कालियागंज स्थित श्रीमती नदी की भी इस मामले में अपनी एक अलग महत्ता है.सैकड़ों साल यहां इस नदी के किनारे बायरा काली की पूजा शुरू हुयी थी.पहले यह नदी काफी बड़ी थी. नाव और जहाज चलते थे.
स्थानीय बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार पुराने जमाने में नाव द्वारा बाहर से आने वाले व्यपारियों ने यहां बायरा काली की पूजा शुरू की. तब से लेकर आज तक यह परंपरा जारी है.यहां बायरा काली मंदिर की स्थापना साल 1928 में हुयी.उसी साल यहां रेलवे लाइन भी बनाया गया. तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी यहां आए थे.वह आजादी की लड़ाइ लड़ रहे थे.
वह कइ दिनों तक रायगंज और कालियागंज में रहे. अंग्रेजों ने उनपर निगरानी रखने के लिए इनदोनों शहरों में थाने की भी स्थापना कर दी.तब नजमुल हक कालियागंज थाने के दारोगा थे.इन बुजुर्गों ने आगे कहा कि नजमुल हक भारतीय सभ्यता और संस्कृति को काफ मानता था. हिंदु धर्म के प्रति भी वह काफी आस्था रखता था.
उन्हीं को कोशिश से यहां काली मंदिर का निर्माण संभव हो सका.तभी से काली पूजा की भी शुरूआत हो गयी.तब से लेकर अबतक यह परंपरा जारी है.वर्तमान में भी यहां काली पूजा के आयोजन की जोर-शोर से तैयारी की जा रही है.मंदिर के पास ही दारोगा के नाम नजमु नाट्य निकेतन की भी स्थापना मंदिर के पास ही की गयी है.परंपरा के अनुसार कालियागंज थाने के आइसी ही इस पूजा कमेटी के अध्यक्ष होते हैं. अभी भी कालियागंज के आइसी इस पूजा कमेटी के अध्यक्ष हैं. उन्हीं की निगरानी में सारी तैयारियां की जा रही है.
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