रोगियों को सही चिकित्सा सेवा मिले, यह व्यवस्था मंत्री गौतम देव को सुनिश्चित करनी होगी. उन्होंने आगे कहा कि सिलीगुड़ी की आबादी करीब साढ़े दस लाख से अधिक है और यह शहर अब नगर में तब्दील हो गया है. सिलीगुड़ी जिला अस्पताल पर न केवल सिलीगुड़ी, बल्कि इसके आसपास के लोग भी चिकित्सा के लिए निर्भरशील हैं. सिलीगुड़ी सदर अस्पताल का दर्जा बढ़ाकर जिला अस्पताल कर दिया गया, लेकिन उसके बाद भी यहां की चिकित्सा सेवा में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई. जहां इस अस्पताल में बेडों की संख्या कम कर दी गई, वहीं डॉक्टरों की भी भारी कमी है. इसके अलावा मरीजों की चिकित्सा के लिए यहां जितने भी उपकरण लगाये गये हैं, उनका उपयोग भी सही तरीके से नहीं हो रहा है. सरकार ने पिछले कुछ वर्षो के दौरान सिलीगुड़ी जिला अस्ताल में रोगियों की चिकित्सा के लिए कई प्रकार के उपकरण लगाये हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश का उपयोग कर्मचारियों की कमी अथवा डॉक्टरों की लापरवाही के कारण नहीं हो रहा है. श्री चटर्जी ने कहा कि सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में केटनोमीटर का उपयोग पिछले कई महीनों से बंद है. यह अत्यंत ही अत्याधुनिक मशीन है तथा गायनोलॉजिकल समस्या से पीड़ित मरीजों की चिकित्सा में यह मशीन काफी सहायक है. इस मशीन के बदौलत डॉक्टर लेप्रोस्कोपिक पद्धति से किसी भी प्रकार का जटिल ऑपरेशन कर सकते हैं. इसके साथ ही श्री चटर्जी ने आगे कहा कि सिलीगुड़ी जिला अस्पताल का पिछले कुछ वर्षो से सौंदर्यीकरण किया जा रहा है. वह अस्पताल के सौंदर्यीकरण के विरोधी नहीं हैं, लेकिन राज्य सरकार को यहां मानना चाहिए कि मरीज अस्पताल में घुमने नहीं, बल्कि चिकित्सा कराने आते हैं. अस्पताल को सुंदर बना देने भर से कुछ नहीं होगा. अस्पताल में बेहतर चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने के लिए डॉक्टरों की संख्या बढ़ानी होगी. उन्होंने आगे कहा कि इस अस्पताल में डॉक्टरों की संख्या काफी कम है. कई विभागों में तो डॉक्टर ही नहीं हैं. सिलीगुड़ी सदर अस्पताल को जिला अस्पताल का दर्जा तो दे दिया गया, लेकिन यहां अब तक एक भी मनोचिकित्सक की नियुक्ति नहीं की गई. मनोचिकित्सा कराने वाले मरीज निजी डॉक्टरों के यहां ऊंची फीस देकर मारे-मारे फिर रहे हैं.
उन्होंने उत्तर बंगाल विकास मंत्री द्वारा रोगी कल्याण समिति की बैठक पर भी सवाल उठाये हैं. उन्होंने कहा कि उत्तर बंगाल विकास मंत्री ने कई योजनाओं की घोषणा की, लेकिन डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने को लेकर कुछ भी नहीं कहा. श्री चटर्जी ने आगे कहा कि सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में जहां एक ओर एक भी मनोचिकित्सक नहीं है, वहीं दूसरी ओर न्यूरो सजर्न एवं हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर भी नहीं हैं. अगर किसी को हार्ट अटैक होता है, तो उसकी चिकित्सा सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में नहीं हो सकती. इसी तरह की स्थिति न्यूरो विभाग की भी है. श्री चटर्जी ने आरोप लगाते हुए कहा कि इस अस्पताल में ढांचागत सुविधाओं की भी भारी कमी है. किसी भी प्रकार की बड़ी दुर्घटना की स्थिति में रोगियों की चिकित्सा यहां संभव नहीं है. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि स्वास्थ्य विभाग ने गुपचुप तरीके से इस अस्पताल में बेडों की संख्या में कमी कर दी है. इस अस्पताल में पहले कुछ 360 बेड थे. बाद में मेल मेडिकल तथा फिमेल मेडिकल वार्ड से 25-25 बेड कम कर दिये गये. इस बीच, सरकार ने सीसीयू तथा इमर्जेसी वार्ड में 6-6 बेड बढ़ाने का भी निर्णय लिया. ऐसे में जहां 50 बेड कम कर दिये गये, वहीं मात्र 12 बेड ही बढ़ाये गये हैं. 38 बेडों की अभी भी कमी रह गई है.