सिलीगुड़ी: उत्तर बंग के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित 21 दिवसीय पहला हिन्दी पुनश्चर्या पाठ्यक्रम (रिप्रेशर कोर्स) विश्वविद्यालय प्रांगण में स्थित यूजीसी एकेडमिक स्टाफ कॉलेज में सफलतापूर्वक संपन्न हो गया. यह समकालीन हिन्दी साहित्य में नए विमर्श विषय पर केन्द्रित था, जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों से आये लगभग बीस प्रतिभागियों ने भाग लिया और देश के जाने-माने प्राध्यापकों ने उन्हें संबोधित कर उनके ज्ञान की अभिवृद्धि की. इस कोर्स के प्रमुख रिसोर्स पर्सन में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. हरिमोहन शर्मा, रांची विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ अरुण कुमार, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल, असम विश्वविद्यालय सिल्चर के प्रो कृष्ण मोहन झा, प.बं.रा. विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो सोमा बंदोपाध्याय, प्रो अमरनाथ, सुप्रसिद्ध समीक्षक प्रो शंभुनाथ, विश्व भारती विश्वविद्यालय के प्रो मुक्तेश्वर नाथ तिवारी तथा प्रो मंजु रानी सिंह, उत्तर बंग विश्वविद्यालय के महिला अध्यक्षा केन्द्र की निदेशक डॉ सुषमा रोहतगी, हिमालयन अध्ययन केन्द्र के प्रो रहीम मंडल, विकास अधिकारी डॉ मीनाक्षी चक्रवर्ती, दर्शनशास्त्र विभाग के प्रो रघुनाथ घोष, प्रो कांतिलाल दास, प्रो ज्योतिष चन्द्र बसाक, डॉ देविका साहा, हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मनीष झा आदि ने विभिन्न विमर्शो जैसे सामुदायिक विमर्श, स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी विमर्श, संस्कृति विमर्श, सत्ता विमर्श पर विस्तार से चर्चा की तथा भूमंडलीकरण और उत्तर आधुनिकतावाद के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला. हिन्दी साहित्य में उन आदर्शो की स्थिति स्पष्ट की गई. प्रो शंभुनाथ ने विमर्श शब्द के चलन की पड़ताल करते हुए कहा कि भारत में 1990 के पहले विमर्श शब्द का इस्तेमाल नहीं होता था, आंदोलन शब्द चलता था. अब विमर्श लोकप्रिय है. विमर्श अब खंड-खंड आंदोलन है.
वस्तुत: जहां-जहां पश्चिम का औपनिवेशिक शासन रहा है, वहां वहां पश्चिम के साहित्यिक आंदोलन तथा सिद्धान्त पहुंचकर चिर स्थायी हो गया है. विमर्श का भी यही संदर्भ है. कवि प्राध्यापक श्रीप्रकाश शुक्ला ने मुक्तिबोध को सुप्रतिष्ठित विमर्शकार बताते हुए उनके साहित्य की विस्तार से विवेचना की. उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध का साहित्य सभ्यता संस्कृति विमर्श का अप्रतिम उदाहरण है. इस रिफ्रेशर कोर्स की संयोजक डॉ मनीष झा ने कहा कि समापन सत्र में प्रतिभागियों ने इस आयोजन की मुक्तकंठ से सराहना की तथा इस कार्यक्रम को सफल बताया. प्रतिभागियों ने मंच से स्वीकार किया कि उत्तर बंग विश्वविद्यालय में आकर वे बौद्धिक और संवेदनात्मक दोनों पक्षों से समृद्ध हुए हैं. पूरे कोर्स के दौरान प्रतिभागियों का उत्साह, अनुशासन तथा प्रतिबद्धता सराहनीय रही.