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आज के साहित्यकारों में संघर्ष का माद्दा नहीं

सिलीगुड़ी : प्रेमंचद साहित्य व जीवन में जो क्रांति है, उनके संघर्ष से उपजा हुआ है. उन्होंने समाज व व्यक्ति चरित्र को करीब से देखा था. उसकी छानबीन की थी. साहित्य धर्मिता के लिए सरकारी नौकरी को तिलांजलि दे देते हैं. वाकई उनका साहित्य, राजनीति को मशाल दिखाने वाला है. इस कलम के सिपाही ने […]

सिलीगुड़ी : प्रेमंचद साहित्य जीवन में जो क्रांति है, उनके संघर्ष से उपजा हुआ है. उन्होंने समाज व्यक्ति चरित्र को करीब से देखा था. उसकी छानबीन की थी. साहित्य धर्मिता के लिए सरकारी नौकरी को तिलांजलि दे देते हैं.

वाकई उनका साहित्य, राजनीति को मशाल दिखाने वाला है. इस कलम के सिपाही ने अपने कलम का सौदा नहीं किया, लेकिन आज के साहित्यकार में संघर्ष और उत्सर्ग करने का माद्दा नहीं है.

इसलिए उनकी लेखनी में उनकी जन चेतना में एक कृत्रिमता है. लेखनी में वह धार नहीं है. एयर कंडीशन में बैठ कर जनता के दर्द को नहीं समझा जा सकता है. आज का साहित्यकार सरकार से लड़ने के बजाय उससे हाथ मिलाने में अपना कुशल क्षेम समझता है.

दल के लिए साहित्य लिखने वाले क्या समाज राष्ट्र का भला करेंगे? यह कहना है सिलीगुड़ी कॉमर्स कॉलेज के प्रोफेसर डॉ प्रेमशंकर मिश्र का. वह रविवार को जनवादी लेखक संघ (जलेस) की दार्जिलिंग जिला कमेटी द्वारा आयोजित प्रेमचंद जयंती समारोहमें मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे. इस अवसर पर प्रेमचंद की रचनाओं पर आधारित निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था.

ठाकुर का कुआंऔर मंत्र 2कहानी पर समीक्षात्मक लेख लिखने को दिया गया था. देशबंधु हिंदी हाईस्कूल, सिलीगुड़ी हिंदी हाईस्कूल फॉर ब्वायज, सिलीगुड़ी हिंदी हाईस्कूल फॉर गर्ल्‍स, लाल बहादुर शास्त्री हिंदी हाईस्कूल, वाणी मंदिर रेलवे हाईस्कूल तथा राजेंद्र प्रसाद गर्ल्‍स हाईस्कूल के छात्रों ने भाग लिया.

कार्यक्रम का शुभारंभ प्रेमचंद की प्रतिछवि पर माल्यापर्ण से हुआ. कार्यक्रम का आकर्षण का केंद्र था परिचर्चागोष्ठी. गोष्ठी में शहर के साहित्कारों ने साहित्कार का दायित्व प्रेमचंदपर अपना विचार रखा. जलेस के उपाध्यक्ष कालिका प्रसाद सिंह ने कहा कि सिलीगुड़ी के साहित्कार निष्क्रिय है.

शहर में तमाम समस्या है, लेकिन कभी इन्हें सड़क पर उतरते नहीं देखा. वहीं कोलकाता में साहित्कार शंख घोष के पीछे हजारों लोग चल देते है. होस्पिटल में एक लड़के को बेड़ियों में जकड़ा गया, लेकिन एक भी हिंदी साहित्कार के मुंह से चूचा नहीं निकली. शहर में गंदगी का अंबार है, पर्यावरण की समस्या है, लेकिन लगता है इन विषयों पर बोलना, सोचना, लिखना और कुछ करना इनका दायित्व नहीं है. इन्हें बस पद की लालसा है.

आने वाला समय इस निष्क्रियता का हिसाब मांगेगा! वहीं साहित्कार देवेंद्र नाथ शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद 56 साल की उम्र में अपना 35 वर्ष साहित्य को समृद्ध करने में लगा दिया. वे जिस दिन नहीं लिखते थे, उस दिन भोजन नहीं करते थे. लेकिन सभा में कई 60 पार गये, लेकिन क्या दिया साहित्य समाज को? पानी पर लाठी मारने से परिवर्त्तन नहीं होगा. कार्यक्रम का कुशल संचालन जलेस के सचिव ओम प्रकाश पांडेय ने किया.

कार्यक्रम को सफल बनाने में देशबंधु हिंदी हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक जय किशोर पांडेय, जेलस के सह सचिव मुन्ना लाल प्रसाद, भीखी प्रसाद वीरेंद्र, शंभु प्रसाद, अरूण कुमार झा, अरूण कुमार केसरी, सुनम प्रसाद, सुशीला साव, सर्वेंद्र सिंह, गजेंद्र प्रसाद सिंह, महेश पासवान, मोहन चंद्र गुप्ता, सुनील कुमार सिंह, सुप्रिया प्रसाद सहित विभिन्न सदस्यों ने कार्यक्रम का सफल बनाने में अपना सहयोग दिया.

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