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सिलीगुड़ी में कई मुस्लिम महिलाएं सिद्दत के साथ करती हैं छठ

सिलीगुड़ी. अपने जमाने के मशहूर गीतकार अलामा इकबाल के चर्चित गीत भारत-ए-तराना का एक पंक्ति मजहब नहीं सीखाता आपस में बैर रखना… गीत को चरितार्थ कर रहे हैं सिलीगुड़ी के कई मुस्लिम परिवार. इन परिवारों की महिलाएं धर्म से उपर उठकर पूरी सिद्दत के साथ छठव्रत का पालन करती हैं. पौराणिक कथाओं की माने तो […]

सिलीगुड़ी. अपने जमाने के मशहूर गीतकार अलामा इकबाल के चर्चित गीत भारत-ए-तराना का एक पंक्ति मजहब नहीं सीखाता आपस में बैर रखना… गीत को चरितार्थ कर रहे हैं सिलीगुड़ी के कई मुस्लिम परिवार. इन परिवारों की महिलाएं धर्म से उपर उठकर पूरी सिद्दत के साथ छठव्रत का पालन करती हैं.

पौराणिक कथाओं की माने तो छठी मइया का उपासना करना चुनौती से कम नहीं है. छठ का पालन करनेवाले छठ व्रतियों को धार्मिक रीति से जुड़े सख्त नियमों से गुजरना पड़ता है. पूरे तीन दिनों तक लगातार बगैर नमक-पानी व अनाज के निर्जला उपवास रहना पड़ता है. साथ ही शुद्धता और साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखना पड़ता है. छठी मइया की इन कठिन चुनौतियों को केवल हिंदी भाषी समाज ही नहीं बल्कि मुस्लिम परिवार भी कबूल करने लगा हैं.

ऐसे ही मुस्लिम परिवारों में सिलीगुड़ी के पांच नंबर वार्ड के गंगानगर निवासी मोहम्मद अलाउद्दीन, सात नंबर वार्ड के कुम्हार पट्टी निवासी बबलू खान के अलावा शहर के अन्य कई जगहों में रहनेवाले कई परिवार हैं, जहां की महिलाएं पूरे परंपरागत तरीके से छठ का पालन बीते कई वर्षों से करती आ रही हैं. इतना ही नहीं शहर से सटे माटीगाड़ा की रहनेवाली जिन्नत खातून पूरे चार दिनों तक छठ का पालन करती हैं और तीन दिनों तक निर्जला उपवास भी करती हैं.

छठी मइया की है मेहरबानी
बबलू खान का कहना है कि हमारे परिवार पर छठी मइया की काफी कृपा है. हमारे अब्बू जान और अम्मी जान पूरे सिद्दत के साथ छठ पूजा करती थी यही वजह है कि हमारे पूरे परिवार पर छठी मइया की मेहरबानी रही है. उनका कहना है कि आज हमारे माता-पिता के रहने से हम छठ व्रत तो नहीं करते लेकिन हम आज भी छठ के दौरान घाट पर जाते है और पूर्ण आस्था के साथ छठी मइया को अर्घ्य देते हैं. ऐसा ही कुछ छठी मइया की महिमा मोहम्मद अलाउद्दीन के परिवार के साथ भी जुड़ी है.
अपनी सास की आस्था को जीनत ने बरकरार रखा
पूरे चार दिनों तक छठ का परंपरागत तरीके से पालन करनेवाली जीनत का कहना है कि वह अपनी सास की धार्मिक आस्था को बरकरार रखी हुई है. छठ का महाप्रसाद ठेकुवा बनाते वक्त उन्होंने प्रभात खबर को बताया कि छठ पूजा का उनके परिवार पर काफी प्रभाव है. मां की महिमा अपरंपार है. जीनत पूरे परंपरागत तरीके से नहाय खाये से छठ पूजा की शुरुआत करती है. दूसरे दिन शाम को खरना के बाद तीन दिनों का निर्जला उपवास शुरु करती है. इसके बाद तीसरे दिन नदी में पहुंचकर अस्ताचलगामी सूर्य और अंतिम दिन उदयीमान सूर्य के साथ छठी मइया को अर्घ्य देती हैं.

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