पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट राज्य विधानसभा में की गयी पेश
सीएम ने कहा : ओबीसी दर्जा को लेकर कुछ लोग सोशल मीडिया पर गलत सूचना फैला रहे हैं
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार राज्य सरकार ने बनायी है ओबीसी आरक्षण नीति
संवाददाता, कोलकातामुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को राज्य विधानसभा को बताया कि लोगों का अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का दर्जा तय करने का एकमात्र मानदंड पिछड़ापन है. उन्होंने कहा कि कुछ लोग सोशल मीडिया पर गलत सूचना का अभियान चला रहे हैं. उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने का निर्णय धर्म से नहीं लिया जाना चाहिए. उन्होंने स्पष्ट किया कि हाइकोर्ट के निर्देश के बाद आरक्षण प्रतिशत 17 फीसदी से घटाकर सात प्रतिशत कर दिया गया था. अब राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों के आधार पर यह आरक्षण 17 फीसदी पर बहाल किया जा रहा है. सुश्री बनर्जी ने इस बात पर जोर दिया कि आरक्षण धर्म आधारित नहीं है. इसके बजाय, यह मंडल आयोग द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन करता है और राज्य सरकार द्वारा किये गये विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षणों पर आधारित है. उन्होंने कहा कि वाममोर्चा के शासन के दौरान शुरू किया गया ओबीसी आरक्षण किसी ठोस सर्वेक्षण पर आधारित नहीं था. हालांकि, हमने एक गहन और व्यवस्थित सर्वेक्षण किया है. सेवानिवृत जस्टिस असीम बनर्जी की अध्यक्षता वाले आयोग द्वारा की गयी सिफारिशों को राज्य सरकार ने विधिवत स्वीकार कर लिया है. उन्होंने कहा कि ओबीसी आरक्षण से जुड़ी कानूनी जटिलताओं के कारण विभिन्न सरकारी बोर्डों की नियुक्ति प्रक्रिया रुक गयी हैं. सुश्री बनर्जी ने कहा कि अब जबकि आरक्षण नीति स्पष्ट हो गयी है और कानूनी तथा सर्वेक्षण समर्थित सिफारिशों के आधार पर लागू हो गयी हैं, नियुक्ति प्रक्रिया फिर से शुरू हो जायेगी. मुख्यमंत्री ने कहा: कुछ सोशल मीडिया भ्रामक जानकारी फैला रहे हैं. ओबीसी की पहचान पूरी तरह से पिछड़ा वर्ग आयोग के सामाजिक-आर्थिक निष्कर्षों पर आधारित है. धर्म की यहां कोई भूमिका नहीं है. सभी प्रासंगिक दस्तावेज और साक्ष्य विधानसभा में प्रस्तुत किये गये हैं. गौरतलब है कि इन नयी जातियों को शामिल किये जाने के बाद अब राज्य में ओबीसी कैटेगरी में कुल जातियों की संख्या 140 हो जायेगी, जो पहले 64 थी. मालूम हो कि वर्ष 2011 से पहले पिछड़े वर्ग की राज्य सूची में शामिल कुल पिछड़ी जातियों की संख्या 108 थीं जिसमें से 55 हिंदू की जबकि 53 जातियां मुस्लिम थीं. मई, 2011 में सत्ता में आने के बाद ममता सरकार ने 71 पिछड़ी जातियों को सूची में शामिल किया था, जिसमें से 65 मुस्लिम की थी, जिस पर हाइकोर्ट ने सवाल उठाते हुए इसे रद्द कर दिया था.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है