सिलीगुड़ी में एक तरफ दस व बीस रुपये के स्टाम्प पेपरों के लिये हाहाकार मचा हुआ है, तो दूसरी तरफ पचास रुपये से ऊपर के स्टाम्प पेपर आसानी से उपलब्ध हैं. टेबल के नीचे से ज्यादा रुपये लेकर दस, बीस रुपये का स्टाम्प पेपर बेचा जा रहा है. यहां तक कि मोटी रकम के बदले बैक डेट में भी स्टाम्प पेपर दिये जा रहे हैं.
एक तरफ सरकार भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए कई कमिटियों का गठन, विभिन्न तरह की मुहिम आदि चला रही है. तो दूसरी तरफ गैरकानूनी काम कर बच निकलने का भी तोड़ है. बीते दिन की किसी भी घटना, कोई भी बहुमूल्य सामान की खरीद-बिक्री आदि को सच साबित करने के लिये आपको बड़ी ही आसानी से बैक डेट का स्टाम्प पेपर मिल जायेगा. बस इसके लिए आपको कीमत से अधिक रुपये देने होंगे. वैसे तो दस और बीस रुपये का नॉन जूडिशियल स्टाम्प पेपर आउट ऑफ स्टॉक है. लेकिन अधिक रुपये देने पर दस और बीस रुपये का स्टॉम्प पेपर मिल जायेगा. वहीं आप कुछ और रुपये अधिक देकर कोई भी स्टॉम्प पेपर बैक डेट से खरीद सकते हैं.
दस्तावेजों के निष्पादन, संपत्ति के हस्तांतरण, व्यावसायिक समझौतों, अटॉर्नी की शक्ति देने के लिए नॉन जूडिशियल स्टाम्प पेपर की की आवश्यकता होती है. दस रुपये के नॉन जूडिशियल स्टाम्प पेपर की सबसे अधिक आवश्यकता पड़ती है. किसी भी प्रकार की शपथ, घोषणा व उपक्रम के लिए इसका उपयोग किया जाता है. इसके अभाव में लोग बीस रुपये के स्टाम्प पेपर का प्रयोग करते हैं.
दस व बीस रुपये के स्टाम्प पेपर की कमी के बारे में वेंडरों का कहना है कि बार-बार मांग किये जाने के बाद सरकारी सिक्यूरिटी प्रेस से इन्हें मुहैया नहीं कराया जा रहा है. बैक डेट का स्टाम्प पेपर के बारे मे कोई भी वेंडर मुंह नहीं खोल रहा है. एक वेंडर से गुप्त रूप से बात की गयी, फिर वह पचास रुपये का स्टॉम्प पेपर 250 रुपये के एवज में बैक डेट से देने को राजी हुआ. अपराधी समाज और घोटालेबाज इसी तरह से बैक डैट का स्टाम्प पेपर खरीद कर अपना धंधा चला रहे हैं. अधिक रुपये लेकर व बैक डेट से स्टाम्प पेपर बेचना कानूनन जुर्म है. लेकिन कानून के आंगन में ही यह गोरखधंधा चल रहा है.
इस संबंध में एक एडवोकेट चिरंजीत साहा ने बताया कि कुछ अधिक रुपये लेकर तो दस और बीस रूपये का स्टाम्प पेपर की धांधली तो चल रही है. टेबल के नीचे से अधिक रुपये देने पर बैक डेट का भी स्टाम्प पेपर मिलता है. श्री साहा ने बताया कि स्टाम्प पेपर बेचने वाले वेंडर प्रत्येक दिन का रिकॉर्ड रखते हैं. धांधली करने के उद्देश्य से अंतिम पेज का अधिकांश भाग छोड़ कर रखते हैं, ताकि बैक डेट से स्टाम्प पेपर बेचा जा सके. बैक डेट से स्टाम्प खरीदकर लोग गैरकानूनी तरीके से अपना काम निकालते है. नोटबंदी के बाद काले धन को सफेद में बदलने के लिए भी बैक डेट के स्टाम्प पेपर का उपयोग किया गया है.
इस संबंध में लॉ क्लर्क एसोसिएशन के दार्जिलिंग जिला कमिटी के महासचिव मृत्युंजय सरकार ने बताया कि बीस रुपये के स्टाम्प पेपर की सप्लाई ही नहीं हो रही है. दस रुपये के स्टाम्प पेपर की सप्लाई कम है. स्टाम्प पेपर की हो रही धांधली के लिए मृत्यूंजय सरकार ने लोगों को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि लोगों की मांग पर कुछ वेंडर इस तरह का काम करते हैं. इसके अतिरिक्त कुछ वेंडर लाइसेंस लेकर अदालत में नहीं बैठते, बल्कि अधिक रुपये लेकर घर से ही स्टाम्प पेपर बेचते हैं. और बैक डेट से भी स्टाम्प पेपर मुहैया कराते हैं. ऐसे वेंडरो को संगठन की ओर से कई बार सतर्क किया गया है.