नोटबंदी को एक महीना हो गया है. शुरुआती मुश्किलों के बाद अब हालात पटरी पर आने लगे हैं. बैंकों व एटीएम की लाइनें धीरे-धीरे ही सही छोटी होती जा रही हैं और जनजीवन सामान्य हो चला है, लेकिन नोटबंदी के शुरुआती झटकों से निबटने के लिए भी कई लोगों ने अभिनव कदम उठाये. उन कदमों […]
नोटबंदी को एक महीना हो गया है. शुरुआती मुश्किलों के बाद अब हालात पटरी पर आने लगे हैं. बैंकों व एटीएम की लाइनें धीरे-धीरे ही सही छोटी होती जा रही हैं और जनजीवन सामान्य हो चला है, लेकिन नोटबंदी के शुरुआती झटकों से निबटने के लिए भी कई लोगों ने अभिनव कदम उठाये. उन कदमों की वजह से उन्हें शुरुआती समस्या भी नहीं हुई. मौजूदा हालात और उनके अभिनव कदमों पर एक नजर.
अपनाया डिजिटल
कोलकाता. नोटबंदी से जुड़ी समस्या से निबटने के लिए सभी ने अपने स्तर के उपाय किये. उद्यमी व व्यापारियों ने बाजार में नगदी की कमी से निबटने के लिए विशेष रास्ते अपनाये. ऐसे ही एक उद्यमी हैं संजय राय. पेशे से कंप्यूटर पेज डिजाइनर संजय राय को एकाएक अपने कारोबार में आठ नवंबर के बाद मुश्किलों का सामना करना पड़ गया. नोटबंदी की घोषणा होते ही उनके पास ग्राहकों की कमी हो गयी. जमे जमाये ग्राहकों से जब उन्होंने पूछा तो उन्हें जवाब मिला कि काम तो है, लेकिन भुगतान के लिए नकदी नहीं है. अब कौन घंटों एटीएम और बैंकों की लाइन में लगे. नकदी मुश्किल से मिलती भी है तो पहले घर के खर्च का ध्यान रखना पड़ता है.
यह सुन कर संजय राय सोच में डूब गये. भले ही उनका सारा काम कंप्यूटर में होता था, लेकिन वह लेनदेन हमेशा ही नकदी में ही करते थे. डिजिटल बैंकिंग से वह दूर ही थे, लेकिन कहते हैं कि समय सबकुछ करा देता है. उन्होंने डिजिटल बैंकिंग को अपनाना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने ग्राहकों से कह दिया कि वह भुगतान डिजिटल मोड में स्वीकार कर लेंगे. यानी ऑनलाइन ट्रैंजेक्शन के जरिये उनके खाते में यदि रुपये जमा हो जाते हैं तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं. देखते ही देखते उनके पास ग्राहक आने शुरू हो गये. नकदी की समस्या उनके पास नहीं थी. धीरे-धीरे ये खबर बाजार में फैलने लगी और नये ग्राहक भी उनके पास आने लगे. श्री राय कहते हैं कि नोटबंदी के बाद तो लगता है कि उनका काम ही बढ़ गया. भला हो कि वक्त रहते उन्हें डिजिटल बैंकिंग की बात सूझ गयी.
विश्वास के भरोसे संभाली दुकानदारी
नोटबंदी के तुरंत बाद जहां बड़े व्यापारियों ने मंदी की शिकायत शुरू की, वहीं छोटे दुकानदारों की भी समस्या कम नहीं थी. वे भी बाजार में नकदी की शिकायत करने लगे. उनके पास भी ग्राहकों की कमी होनी शुरू हुई, लेकिन धर्मतला के डेकर्स लेन के दुकानदार नवीन गुप्ता ने हार नहीं मानी. उन्होंने इसका मुकाबला करने की ठानी. डिजिटल बैंकिंग के बारे में उन्हें पता नहीं था, लेकिन ग्राहकों को भी वह निराश नहीं करना चाहते थे. लिहाजा उन्होंने विश्वास को ही अपना धन माना और सदियों से चली आ रही उधार की भारतीय परंपरा को अपनाया. इसके तहत पहचानवाले ग्राहकों को उन्होंने उधार में सामान देना शुरू किया. उनसे सामान लेनेवाले अधिकतर जाने-पहचाने लोग थे. नवीन गुप्ता पहले भी उधार देते थे, लेकिन इस बार इसका दायरा उन्होंने बढ़ा दिया. उनकी बिक्री जल्द ही सामान्य हो गयी. नवीन गुप्ता कहते हैं कि ग्राहकों पर विश्वास कर उन्होंने धोखा नहीं खाया. जल्द ही स्थिति सामान्य होने पर कमोबेश सभी ग्राहकों ने अपना बकाया लौटा दिया. उन्हें खुशी है कि उन्होंने विश्वास का आसरा नहीं छोड़ा. आज उनके संबंध अपने ग्राहकों से पहले से भी अधिक बेहतर हैं.
अपनाया आजमाया तरीका
कोलकाता. नोटबंदी की मार कहते हैं आम दुकानदारों को सबसे अधिक झेलनी पड़ी. हालांकि नोटबंदी के एक महीने के बाद अब हालात भले ही सामान्य हो रहे हैं लेकिन शुरुआती दिनों में समस्या कइयों को हुई. बात अगर ऐसे दुकानदारों की होती है जिनके सामान अत्यंत जरूरी श्रेणी में नहीं आते हैं तो उन्हें परेशानी अधिक हुई लेकिन इन सबके बीच कुछ ने अपनी बुद्धिमता के दम पर ही नोटबंदी की समस्या पर काबू पा लिया. इनमें एक नाम गिरीश पार्क स्थित मॉम अपर केक्स के मालिक कुशाग्र देवड़ा का भी है.
वह बताते हैं कि नोटबंदी के चालू होने के बाद उनकी केक की दुकान में लोगों की भीड़ कम होने लगी. नवंबर-दिसंबर का महीना यूं भी उनके लिए वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण सीजन होता है. वर्ष भर जितने केक की बिक्री होती है उसका काफी कुछ दारोमदार इन्हीं दो महीनों पर टिका होता है, लेकिन सीजन के समय यदि ग्राहकों की भीड़ कम होने लगे तो यह उनके लिए भारी चिंता का विषय है. लिहाजा उन्होंने इसके लिए उपाय अपनाने शुरू कर दिये. डिजिटल भुगतान तो वह पहले भी लेते थे, लेकिन अब कुछ अलग कर के दिखाना जरूरी था. इसलिए उन्होंने सदा से परखे गये तरीके को आजमाने का निश्चय किया. यह तरीका था डिस्काउंट का. अपने केक पर उन्होंने 15-18 प्रतिशत तक के छूट की घोेषणा कर दी. इस अभिनव उपाय के बाद धीरे-धीरे उनकी दुकान में हालात सामान्य होने लगे. श्री देवड़ा कहते हैं कि उनकी दुकान में डिजिटल पेमेंट का यह आलम है कि कोई 20 रुपये का सामान भी खरीदता है तो वह भी उसका भुगतान डिजिटल तरीके से ही करना चाहता है.