लेकिन पिछले एक दशक में, चार नये अस्पताल आ गये और प्रत्येक अस्पतालों में हर साल 10,000 बांग्लादेशी मरीजों का इलाज होता है. सरकार की अनुमति के बावजूद प्राइवेट अस्पतालों में 500 और 1000 के नोट नहीं लिए जा रहे हैं. इस बीच, नोटों को हाथ में लिए सैकड़ों बांग्लादेशी नागरिक बैंकों के सामने कतार में खड़े हैं.
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नोटबंदी से फंसे महानगर आये बांग्लादेशी नागरिक
कोलकाता: नोटबंदी के बाद इलाज के लिए कोलकाता आये सैकड़ों बांग्लादेशी नागरिक असमंजस में हैं. इतनी मुश्किल से सहेजे गये इन नोटों ने भारत में अपना मूल्य खो दिया है. इन्हें अब इलाज की उम्मीद की जगह अब बिना पैसे के दूसरे देश में होने का भय सता रहा है. बांग्लादेशी नागरिक मुस्ताफिजुर रहमान काफी […]
कोलकाता: नोटबंदी के बाद इलाज के लिए कोलकाता आये सैकड़ों बांग्लादेशी नागरिक असमंजस में हैं. इतनी मुश्किल से सहेजे गये इन नोटों ने भारत में अपना मूल्य खो दिया है. इन्हें अब इलाज की उम्मीद की जगह अब बिना पैसे के दूसरे देश में होने का भय सता रहा है. बांग्लादेशी नागरिक मुस्ताफिजुर रहमान काफी पैसों के साथ कोलकाता आये थे.
रहमान ने बताया कि हम यहां इलाज के लिए आये थे, क्योंकि हमें पता है कि ढाका में यह इलाज संभव नहीं. यह काफी महंगा है और इसके लिए हमने जमीन बेच दी पर अब ये पैसे बेकार हो गये हैं. 2000 की शुरुआत में कोलकाता के दो मुख्य निजी अस्पतालों- रुबी जनरल अस्पताल और पीयरलेस जनरल अस्पताल में बांग्लादेशी मरीजों का इलाज होता था.
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