कोलकाता: पश्चिम बंगाल देश के उन गिने-चुने राज्यों में से एक है, जहां प्राकृतिक वन, दुर्लभ वनस्पति व वन्य प्राणी बड़ी संख्या में हैं. व्यवसायीकरण के बढ़ते चलन और तेजी से बढ़ती आबादी के बीच इनकी सुरक्षा एक बड़ा मसला बन गया है.
काफी प्राकृतिक संसाधनों के विलुप्त होने की आशंका है. इन प्राकृतिक संसाधनों की हिफाजत के लिए जहां एक ओर राज्य व केंद्र सरकारें अपने-अपने स्तर पर काम कर रही हैं, वहीं कई विदेशी एजेंसियों ने मदद का हाथ बढ़ाया है. उनमें से एक जापान की जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी (जेआइसीए) भी है, जिसने पश्चिम बंगाल के वन, दुर्लभ वनस्पति व वन्य प्राणियों की हिफाजत के लिए 6371 मिलियन जापानी येन का ऋण दिया है. यह लगभग 337 करोड़ रुपये के समान है.
जेआइसीए द्वारा दिये गये इस फंड द्वारा चलायी जा रही वन संरक्षण परियोजना के तहत राज्य में 18970 हेक्टेयर इलाकों में फैले वनों की सुरक्षा की जा रही है. राज्य में वन भूमि का औसत केवल 17 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय स्तर 23 प्रतिशत से काफी कम है. इसमें वृद्धि के लिए भी प्रयास किये जा रहे हैं. इसके साथ ही स्थानीय लोगों के सामुदायिक विकास व अजीविका में सुधार के लिए कदम उठाये जा रहे हैं. इंसानी आबादी पर बढ़ने से वन्य प्राणियों के हमले को रोकने के लिए जंगल की बुनियादी सुविधा को बेहतर बनाया जा रहा है. भारत में जेआइसीए के मुख्य प्रतिनिधि शिनया एजिमा ने बताया कि जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी ने सबसे पहले 1991 में राजस्थान में एक वन्य परियोजना के लिए ऋण दिया था.
इस क्षेत्र में और मदद की जरूरत है. पर, इस बात की खुशी है कि जेआइसीए द्वारा दिये गये फंड से वनों की सुरक्षा बढ़ी है व स्थिति में काफी बदलाव आ रहा है. जैव विविधता संरक्षण दुनिया भर में चिंता का विषय बना हुआ है. इस दिशा में हम लोगों ने अब भारत पर अपना ध्यान केंद्रित किया है.