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केंद्रीय बिजली मंत्री ने कहा, अन्य राज्यों की अपेक्षा बंगाल में अधिक कोयला शुल्क

कोलकाता. केंद्रीय बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार को सुझाव दिया कि पश्चिम बंगाल में एक पांच सदस्यीय समिति का गठन करे, जो राज्य सरकार द्वारा लिये जा रहे ऊंचे कोयला शुल्क की समीक्षा करे. श्री गोयल ने यहां राज्य के बिजली मंत्री शोभनदेव चटर्जी और बिजली सलाहकार मनीष गुप्ता और […]

कोलकाता. केंद्रीय बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार को सुझाव दिया कि पश्चिम बंगाल में एक पांच सदस्यीय समिति का गठन करे, जो राज्य सरकार द्वारा लिये जा रहे ऊंचे कोयला शुल्क की समीक्षा करे. श्री गोयल ने यहां राज्य के बिजली मंत्री शोभनदेव चटर्जी और बिजली सलाहकार मनीष गुप्ता और अन्य के साथ बैठक की. बैठक के बाद उन्होंने कहा कि उन्होंने राज्य सरकार को समिति बनाने का सुझाव दिया है. पश्चिम बंगाल सरकार को खुले दिल से इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि वह कोयला उत्खनन पर क्यों 25 प्रतिशत का उपकर ले रही है, जबकि अन्य राज्याें में मात्र 14 प्रतिशत की रॉयल्टी की प्रणाली है.

इससे क्या लाभ और नुकसान हैं. श्री गोयल ने कहा कि यदि यहां भी अन्य राज्याें की तरह 14 प्रतिशत की रॉयल्टी की प्रणाली लागू हो जाती है तो इससे राज्य को फायदा होगा. इससे कोयले का उत्पादन बढ़ेगा और कुल राजस्व बढ़ेगा. राज्य का राजस्व कम नहीं होगा. बिजली की लागत में कमी आयेगी और इससे उद्योग को मदद मिलेगी. श्री गोयल ने कहा कि यह समिति राज्य के बिजली सचिव की अध्यक्षता में बननी चाहिए और इसमें कोल इंडिया के विपणन और वित्त के निदेशक भी शामिल होने चाहिए. समिति को अपनी रिपोर्ट चार सप्ताह में देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि बंगाल में कोयला पर उपकर 25 प्रतिशत लिया जाता है, जिसकी वजह से यहां कंपनियां उत्पादन को बढ़ाने में ज्यादा ध्यान नहीं देती हैं. राज्य सरकार को यह उपकर कम करना चाहिए.

राज्य के मामलों में दखल दे रही है केंद्र सरकार
राज्य के बिजली विभाग ने गोयल के बयान को राज्य सरकार के अधिकार पर अतिक्रमण करार दिया. राज्य के पूर्व बिजली मंत्री गुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए. केंद्र सरकार इसमें दखलअंदाजी नहीं कर सकती है. केंद्रीय मंत्री के सुझाव को हम राज्य में अतिक्रमण के रूप में देखते हैं.

राज्य के बिजली मंत्री शोभनदेव चटर्जी ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा जो कोयला शुल्क लिया जाता है, उसे यहां प्राथमिक शिक्षा व अन्य योजनाओं के विकास पर खर्च किया जाता है. कुछ महीने पहले ही केंद्र सरकार ने कोयला शुल्क को 200 रुपये प्रति टन से बढ़ा कर कुल 400 रुपये प्रति टन कर दिया है. अगर केंद्र सरकार वास्तव में काेयला कीमत कम करना चाहती है तो राज्य सरकार पर इसका बोझ दिये बिना स्वयं कोयला शुल्क व कोयला परिवहन के तहत लिये जानेवाले रेलवे खर्च को कम कर सकती है. गौरतलब है कि कोयला शुल्क से राज्य सरकार को प्रत्येक वर्ष 700 से 900 करोड़ रुपये की आमदनी होती है.

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