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जहां रेल टिकटों का होता है अंतिम संस्कार

श्रीकांत शर्मा कोलकाता : गत्ते के बने डेटिंग टिकटों का अस्तित्व अभी मिटा नहीं है, बल्कि करोड़ों की संख्या में मौजूद उन टिकटों का निबटारा करने में रेलकर्मियों को भारी मशक्कत करनी पड़ रही है. हावड़ा स्टेशन भवन के सबसे ऊपर के तल्ले के एक स्टोर रूम में इन टिकटों का अंबार लगा है. जहां […]

श्रीकांत शर्मा
कोलकाता : गत्ते के बने डेटिंग टिकटों का अस्तित्व अभी मिटा नहीं है, बल्कि करोड़ों की संख्या में मौजूद उन टिकटों का निबटारा करने में रेलकर्मियों को भारी मशक्कत करनी पड़ रही है. हावड़ा स्टेशन भवन के सबसे ऊपर के तल्ले के एक स्टोर रूम में इन टिकटों का अंबार लगा है. जहां हर दो महीने में पांच लाख टिकटों को रद्द किया जाता है और उसके बाद गुड्स शेड में ले जाकर जला दिया जाता है. जलाये गये टिकटों का पूरा रिकार्ड रखा जाता है.
हालांकि डेटिंग टिकटों के निबटारे का काम अंतिम दौर में है. टिकटों के निबटारे के लिए 2003 में बने पूर्व रेलवे के ऑब्सोलीट सेक्शन ने 14 वर्षों में करोड़ों टिकटों को नष्ट कर दिया. अब तक पूर्व रेलवे के 1,88,90,084 व दक्षिण पूर्व रेलवे के 70,11,560 डेटिंग टिकटों का ‘अंतिम संस्कार’ किया जा चुका है. पूरी सरकारी प्रक्रिया के तहत पूर्व रेलवे के टिकटों के निबटारे का काम साच जनवरी 2015 में पूरा किया गया था. फिलहाल दक्षिण पूर्व रेलवे के टिकटों का ऑब्सोलीट सेक्शन के तहत नष्ट किये जाने का कार्य चल रहा है.
हावड़ा स्टेशन का ऑब्सोलीट विभाग अगस्त तक और 7,34,160 डेटिंग टिकटों को नष्ट कर देगा.टिकटों का निबटारा करने के लिए 2003 में ‘ऑब्सोलीट सेक्शन’ नामक एक विभाग खोल कर पांच लोगों की नियुक्ति की गयी. गौरतलब है कि 2003 के बाद से हावड़ा स्टेशन में डेटिंग टिकट मशीन का प्रचलन बंद हो गया और कंप्यूटरीकृत टिकट काउंटर का नया दौर शुरू हुआ था. कंप्यूटरीकृत टिकटों के आने से एक ओर जहां समय की काफी बचत हुई, वहीं स्टेशन पर पहले से करोड़ों की संख्या में रखे टिकटों के निबटारे की समस्या पैदा हो गयी. लिहाजा पूर्व रेलवे प्रशासन द्वारा टिकटों को नष्ट करने के लिए पांच अधिकारियों को लेकर नये विभाग का गठन किया गया. 14 वर्ष पहले 2003 में टिकटों को नष्ट कर जलाने का काम शुरू हुआ, जो आज भी बदस्तूर जारी है.
डेटिंग टिकटों को रद्द करने की प्रक्रिया
ऑब्सोलीट सेक्शन की टीम बारीकी से एक-एक टिकट को रद्द करती है. सबसे पहले टिकटों का मूल्य, जारी होने की तारीख, शुरुआती स्टेशन से लेकर गंतव्य स्टेशन तक की जानकारी और सबसे अंत में टिकट के नंबर को एक खाते में दर्ज किया जाता है. उसके बाद टिकटों को रद्द करने के लिए उस पर मुहर लगायी जाती है और उन्हें एक पैकेट में रख कर सील कर दिया जाता है. एक चरण में पांच लाख टिकटों को रद्द करने का लक्ष्य रखा गया है.
इस प्रक्रिया में दो महीने लग जाते हैं. यह प्रक्रिया पूरी होते ही रेलवे के सभी विभागों को इसकी सूचना दे दी जाती है. उसके बाद सीनियर डीसीएम उन्हें जलाने की तिथि तय करते हैं. दिन तय होते ही ऑब्सोलीट विभाग की ओर से कॉमर्शियल इंस्पेक्टर, सीनियर ट्रैफिक इंस्पेक्टर (कामर्शियल), बुकिंग सुपरवाइजर, रेलवे सुरक्षा बल को इसकी सूचना दे दी जाती है और उन सभी की मौजूदगी में टिकटों को जला दिया जाता है. जब तक एक-एक टिकट जल कर राख नहीं हो जाता है, तब तक रेलवे के सभी अधिकारी वहां मौजूद रहते हैं. अब तक कई करोड़ टिकटों को इस तरह स्वाहा किया जा चुका है, जिनमें कुछ ब्रिटिश जमाने के टिकट भी शामिल हैं.
इन टिकटों में कुछ ब्रिटिश जमाने के भी टिकट थे. यह भारत सरकार की संपत्ति है. इसे सरकारी प्रक्रिया के तहत रद्द करने के लिए पूर्व रेलवे प्रशासन द्वारा ऑब्सोलीट सेक्शन बनाया गया. काम अंतिम दौर में है, इस वर्ष अगस्त तक अंतिम खेप का भी निबटारा हो जायेगा.
-सी जी प्रधान, मंडल वाणिज्यिक प्रबंधक, हावड़ा

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