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पश्‍चिम बंगाल : ”दी ममता रिटर्न्स”

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में 34 वर्ष तक जडें जमाकर रखने वाले वाम मोर्चा की सरकार को सत्ता से बेदखल कर वर्ष 2011 में राज्य की मुख्यमंत्री बनीं ममता बनर्जी ने एक बार फिर अपना दबदबा साबित किया है और वह इस चुनाव में भी वाम-कांग्रेस गठबंधन तथा भाजपा को बहुत पीछे छोडते हुए एक बार […]

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में 34 वर्ष तक जडें जमाकर रखने वाले वाम मोर्चा की सरकार को सत्ता से बेदखल कर वर्ष 2011 में राज्य की मुख्यमंत्री बनीं ममता बनर्जी ने एक बार फिर अपना दबदबा साबित किया है और वह इस चुनाव में भी वाम-कांग्रेस गठबंधन तथा भाजपा को बहुत पीछे छोडते हुए एक बार फिर मुख्यमंत्री के पद पर काबिज होती दिखाई दे रहीं हैं. ममता की पहचान सादगी की प्रतीक जमीन से जुडी ऐसे नेता के रुप में होती है जो शासन व्यवस्था को जनता के सरोकारों और जनसहभागिता के साथ आगे बढाने में विश्वास करती हैं. यह चुनाव ममता ने अपने दम पर लडा और चिर प्रतिद्वंद्वी वामपंथियों और कांग्रेस के एकजुट होने से भी उनके अभियान पर कोई असर नहीं हुआ.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्रियों और राज्य स्तर के भाजपा नेताओं ने ममता को उनके राज्य में घेरने का प्रयास किया लेकिन अंतत: उन्हें रोकने के सारे प्रयास विफल साबित होते लग रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक राज्य में वाम मोर्चे की सरकार को उखाड फेंकने को उनकी राजनीतिक यात्रा की सबसे बडी उपलब्धि मानते हैं. हालांकि सत्ता में आने के बाद रुग्ण उद्योग और ठहरी आर्थिक वृद्धि से त्रस्त पश्चिम बंगाल को निकालना उनकी सबसे बडी चुनौती रही है जिससे पार पाने में वे लगातार प्रयासरत दिखी भी. अपने समर्थकों के बीच ‘दीदी’ के नाम से मशहूर ममता का जन्म पांच जनवरी, 1955 को कोलकाता के प्रोमिलेश्वर बनर्जी और गायत्री देवी के घर हुआ था। निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाली ममता अपनी सादगी के लिए जानी जाती हैं. सफेद सूती साडी और हवाई चप्पल उनकी पहचान बन चुकी है.
कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने वाली ममता ने जोगेश चंद्र चौधरी कानून महाविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की. ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरआत कांग्रेस पार्टी के सदस्य के रुप में की थी। वर्ष 1976 में वह महिला कांग्रेस की महासचिव चुनी गयी। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा। वर्ष 1984 में जादवपुर संसदीय क्षेत्र से दिग्गज माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी को हराकर सबसे कम आयु की सांसद चुनी गयी। उन्हें युवा कांग्रेस का महासचिव भी बनाया गया। हालांकि वर्ष 1989 के संसदीय चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पडा लेकिन केवल दो वर्ष बाद एक बार फिर वह संसद पहुंचने में कामयाब रहीं. केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार में ममता को मानव संसाधन, युवा कल्याण, खेलकूद और महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री बनाया गया.
बतौर मंत्री उन्होंने कई बार अपनी ही सरकार के फैसलों का विरोध किया और आखिरकर वर्ष 1997 में वह कांग्रेस पार्टी से अलग हो गयीं। इसके बाद उन्होंने एक जनवरी, 1998 को तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की। यह पार्टी मौजूदा लोकसभा में 34 सांसदों के साथ चौथी सबसे बडी पार्टी है. वर्ष 1999 में ममता भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हो गयीं और उन्हें केंद्रीय रेल मंत्री बनाया गया. वर्ष 2001 में एक विवाद के बाद उन्होंने राजग सरकार से नाता तोड लिया लेकिन वर्ष 2004 में एक बार फिर वह गठबंधन में शामिल हुईं और कोयला और खान मंत्रालय का पद संभाला और उस वर्ष हुए आम चुनाव तक वह पद पर बनी रहीं. वर्ष 2005 में सिंगूर और नंदीग्राम में किसानों की जमीन के अधिग्रहण का ममता ने पुरजोर विरोध किया और आम लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से बढा. इसके बाद वर्ष 2006 के पश्चिम बंगाल चुनाव में उनकी पार्टी को हार का सामना करना पडा। इसके बाद 2009 में उनकी पार्टी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल हो गयीं और मनमोहन सिंह की सरकार में उन्होंने रेल मंत्री का पदभार संभाला.
वर्ष 2011 के पश्चिम बंगाल चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने भारी अंतर से जीत दर्ज की और ममता ‘दीदी’ राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। उनकी पार्टी ने 184 सीटें जीतीं, जबकि उनके सहयोगी दल कांग्रेस ने 42 सीटों पर जीत दर्ज की। दूसरी तरफ वर्ष 2012 आते-आते उनकी पार्टी ने केंद्र की संप्रग सरकार से समर्थन वापस ले लिया. हालांकि मुख्यमंत्री बनने के बाद ही विरोधी नेता उन पर तानाशाही का आरोप लगाते रहे हैं. इसके अलावा उनके कार्यकाल में सारदा चिटफंड घोटाले की गंूज देशभर में सुनी गयी और ममता सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. दूसरी ओर चुनाव से ठीक पहले नारद स्टिंग के सामने आने से उनकी सरकार के लिए नई मुसीबत खडी हो गयी.

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