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आम जनता की बतकही, चुनावी पंडित हर जगह
आनंद कुमार सिंह चुनाव का मौसम हो और चुनावी पंडितों की बहार न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. हर स्थान पर आपको राजनीतिक विशेषज्ञ मिल जायेंगे, अपनी बातों से आसपास के लोगों को लुभाते. चुनावी भविष्यवाणियां करते और भाषा पर भारी नियंत्रण रखते हुए जोरदार भाषण देते हुए वह आपको दिख जायेंगे. उनकी बातों […]
आनंद कुमार सिंह
चुनाव का मौसम हो और चुनावी पंडितों की बहार न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. हर स्थान पर आपको राजनीतिक विशेषज्ञ मिल जायेंगे, अपनी बातों से आसपास के लोगों को लुभाते.
चुनावी भविष्यवाणियां करते और भाषा पर भारी नियंत्रण रखते हुए जोरदार भाषण देते हुए वह आपको दिख जायेंगे. उनकी बातों पर गौर करें तो उनके पास हर उस प्रश्न का जवाब होता है, जिसे जानने के लिए जनता उत्सुक रहती है. मसलन फलां सीट पर कौन जीतेगा. फलां गंठबंधन का हश्र क्या होगा. फलां नेता का भविष्य कैसा है. बिल्कुल ज्योतिषों की तरह वह भविष्यवाणियां करते और अपनी वाह-वाह कराते हुए वह चाय की चुस्कियां लेते रहते हैं. ऐसे ही एक चुनावी पंडित से मेरी मुलाकात एक नुक्कड़ पर हो गयी. चाय की प्यालियों के बीच वह करीब छह लोगों से मुखातिब थे. ऐसा नहीं है कि बाकी लोगों को राजनीति की समझ नहीं थी, लेकिन यह स्पष्ट हो रहा था कि वहां मूल वक्ता कौन है और श्रोता कौन. किसी और का जवाब या विश्लेषण तो दूर की बात प्रश्न पूरा सुनने के पहले ही उनका जवाब हाजिर हो जाता था.
बातों को बीच में काट कर अपनी कहने में वह महारत हासिल किये दिखाई देते थे. उक्त सज्जन ने देखते ही देखते चुनाव के नतीजों की भविष्यवाणियां करनी शुरू कर दीं. सीट दर सीट, जिला दर जिला उनका आत्मविश्वास भरा आकलन देखते ही बन रहा था.
राजनीतिक गणित में पारंगत उक्त सज्जन से मैंने भीड़ के छंटने के बाद पूछा. बाबा..आपको इतना कैसे पता है. उनका जवाब था, भई मैं राजनीति की समझ रखता हूं. लेकिन आपने कोई सर्वे वगैरह किया है क्या, जो इतने विश्वास के साथ सबकुछ कह रहे हैं ?
इस पर वह तनिक मुस्कुराये. चाय का एक और कप दुकान से हासिल किया. चुस्की ली और मेरी ओर देखा. फिर कहा….आप भी कहां किन झमेलों में पड़ रहे हैं. याद किसे क्या रहता है. मैंने आश्चर्य से पूछा, इसका क्या मतलब है. भई आप बोल कुछ भी दो. आपकी एक-एक बात को कौन याद रखता है. फिर कभी किसी विवाद में सामने वाला यदि आज के दावों का जिक्र करता भी है तो एक और विवाद तैयार रहेगा. मसलन मैं कह सकता हूं कि फलां कारणों के चलते नतीजे में बदलाव हुआ. उसने फिर ऐसी बात कही कि मेरे ज्ञान में एकाएक कई टन का इजाफा हो गया.
महाशय का कहना था, आप राजनेताओं को देखते नहीं. कैसे चुनाव के पहले वह चुनावी घोषणापत्र तैयार करते हैं. कैसे-कैसे वादे रहते हैं उस घोषणा पत्र में. यदि वह पूरे हो जाये राम राज्य आ जाये, लेकिन क्या राम राज्य आया है ? जनता क्या उस राजनेता या राजनीतिक दल के विरुद्ध हो जाती है क्या ? ऐसा नहीं होता. क्योंकि लोग भूल जाते हैं. यदि आप भूलते रहेंगे तो लोग भी आपको भुलाते रहेंगे.
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