कोलकाता: विधानसभा चुनाव के लिए वाममोरचा की ओर से विगत सोमवार को उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी गयी. उम्मीदवारों की पहली सूची में प्रत्याशियों की संख्या करीब 116 है. अभी भी 178 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों की सूची जारी करना बाकी है. मंगलवार को राज्य में वाममोरचा के चेयरमैन विमान बसु ने वाममोरचा में शामिल घटक दलों के नेताओं के साथ अलग-अलग बैठक की. बैठक का प्रमुख एजेंडा सीट बंटवारा ही रहा.
अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर माकपा ने शुरू से ही कहा है कि कांग्रेस से सीधा गंठबंधन नहीं कर संभावित चुनावी समझौता किया जा सकता है. कांग्रेस से संभावित चुनावी समझौता को सफल बनाने के लिए माकपा समेत वाममोरचा में शामिल घटक दलों को भी कुछ सीटें छोड़नी पड़ेंगी. सीटों को बंटवारे को लेकर अभी भी वाममोरचा घटक दलों के बीच खींचतान बनी हुई है.
संभवत: इसी मसले को सुलझाने के लिए मंगलवार को राज्य में वाममोरचा के चेयरमैन विमान बसु ने वाममोरचा में शामिल कई घटक दलों के नेताओं के साथ अलग-अलग बातचीत की.
पहली दफा बैठक विमान बसु और फारवर्ड ब्लॉक के नेताओं के बीच हुई. फारवर्ड ब्लाॅक के नेताओं में हाफिज आलम सैरानी, वरूण मुखर्जी और नरेन चटर्जी शामिल रहे. सूत्रों के अनुसार कांग्रेस से संभावित चुनावी तालमेल बैठाने के लिए फारवर्ड ब्लॉक से करीब 7 से 8 सीटें छोड़ने के लिए आग्रह किया गया लेकिन पार्टी ने इतनी सीटें छोड़ने में असमर्थता जतायी है.
सूत्रों के अनुसार फारवर्ड ब्लॉक दो- तीन सीट छोड़ने को तैयार है. विगत विधानसभा चुनाव में करीब 34 सीटों पर फारवर्ड ब्लॉक के उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था. फारवर्ड ब्लॉक के आला नेता हाफिज आलम सैरानी ने कहा कि इस बार विधानसभा चुनाव में वाममोरचा की नारा है ‘तृणमूल हटाओ बंगाल बचाओ.’ अत: राज्य में तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए फारवर्ड ब्लॉक वाममोरचा में शामिल अन्य घटक दलों के साथ एकमत है. वाममोरचा की ओर से कोशिश की जा रही है कि तृणमूल कांग्रेस से सभी विपक्षी दल एकजुट होकर चुनाव लड़ें. वाममोरचा के साथ बाहरी किसी अन्य दल के संभावित चुनावी तालमेल के लिए सीट बंटवारे को लेकर थोड़ी दिक्कत हो रही है लेकिन उम्मीद करते हैं कि यह समस्या जल्द दूर कर ली जायेगी.
फारवर्ड ब्लाॅक के नेताओं के बाद राज्य में विमान बसु ने भाकपा नेताओं के साथ भी बैठक की. सूत्रों के अनुसार भाकपा नेताओं ने कहा है कि तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए वह कुछ सीटों का त्याग कर सकती है. भाकपा को कलिंगपोग और कांथी (दक्षिण) विधानसभा सीट छोड़ने को आग्रह किया गया है. पार्टी इसके लिए तैयार है लेकिन इसके बदले उसे अन्य दो या तीन सीट देने होंगे. वर्ष 2011 में हुए विधानसभा चुनाव में भाकपा ने करीब 14 सीटों पर उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. भाकपा नेताओं की ओर से दार्जिलिंग में वाममोरचा और गोरखा जनमुक्ति मोरचा (गोजमुमो) के साथ चुनावी तालमेल का सुझाव दिया है. उनकी ओर से कहा गया है कि पहाड़ी क्षेत्र में तृणमूल की ताकत कमजोर है. तृणमूल को हटाने के लिए गोजमुमो के साथ तालमेल करना फायदेमंद हो सकता है.
वामो शेष उम्मीदवारों की सूची जारी कर सकता है कल : कोलकाता. राज्य में अगले महीने से शुरू होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए वाममोरचा शेष उम्मीदवारों की सूची आगामी गुरुवार को जारी कर सकता है. कांग्रेस से संभावित चुनावी तालमेल को लेकर वाममोरचा घटक दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर काफी खींचतान की बात सामने आयी है. मंगलवार को इस समस्या के निबटारे के लिए राज्य में वाममोरचा के चेयरमैन विमान बसु ने वाममोरचा में शामिल घटक दलों के नेताओं के साथ अलग-अलग बैठक की.
सूत्रों के अनुसार बैठक में सीट बंटवारे को लेकर लगभग सहमति बन गयी है. इस मसले को लेकर बुधवार को भी वामपंथी दलों के बीच बैठक हो सकती है. औपचारिक बैठक के बाद संभवत: वाममोरचा शेष उम्मीदवारों की सूची गुरुवार को जारी कर सकता है. ध्यान रहे कि विगत सोमवार को वाममोरचा ने करीब 116 उम्मीदवारों की सूची जारी किया था.
इधर आरएसपी के नेताओं से करीब चार विधानसभा सीटें छोड़ने का आवेदन किया गया है. इन सीटों में मुर्शिदाबाद जिला के तीन सीटें व नदिया जिला का एक सीट है. सूत्रों के अनुसार आरएसपी चार सीटों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है. अब देखना यह है कि होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से चुनावी तालमेल के लिए वाममोरचा के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर सहमति बन पाती है या नहीं. बताया जा रहा है कि इस मुद्दे को लेकर बुधवार को एक बार फिर वाममोरचा घटक दलों के बीच बैठक हो सकती है. वामपंथी नेताओं और कांग्रेस के नेताओं के बीच भी बातचीत हो सकती है.
माकपा के दबाव में चुनाव लड़ने को राजी हुए सूर्यकांत
कोलकाता. माकपा के प्रदेश सचिव पद की जिम्मेदारी संभालने के साथ ही डॉ सूर्यकांत मिश्रा नारायणगढ़ से वाम मोरचा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे. सूत्रों के अनुसार, पार्टी और वाम मोरचा में शामिल अन्य घटक दलों के दबाव के कारण ही माकपा के प्रदेश सचिव विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनने को राजी हुए. पार्टी की परंपरा पर ध्यान दें, तो पार्टी की कमान संभालनेवाले शीर्ष नेताओं का चुनाव नहीं लड़ने का प्रचलन काफी पुराना है. सूत्रों के अनुसार, भाकपा से टूट कर माकपा के गठन के बाद से किसी भी राज्य में माकपा के सचिव उम्मीदवार के तौर पर चुनावी जंग में शामिल नहीं हुए थे. दल के शीर्ष पद को संभालते हुए चुनाव लड़नेवाले एकमात्र नेता ज्योति बसु थे, लेकिन उन्होंने चुनाव तब लड़ा था, जब कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन नहीं हुआ था. हालांकि माकपा के कुछ जिला सचिव उम्मीदवार के तौर पर चुनावी जंग में शामिल हुए, लेकिन राज्य सचिव के पद को संभालते हुए डॉ सूर्यकांत मिश्रा के चुनाव मैदान में कूदना नयी बात है.