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कोलकाता : विधानसभा में विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत हासिम अब्दुल हलीम की स्मृति में शोकसभा आयोजित की गयी. विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी के प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, विरोधी दल नेता डॉ सूर्यकांत मिश्रा, संसदीय मंत्री पार्थ चटर्जी, कांग्रेस विधायक दल नेता मोहम्मद सोहराब, प्रबोध चंद्र सिन्हा, भाजपा विधायक शमिक भट्टाचार्य, एसयूसीआइ विधायक तरुणकांति […]

कोलकाता : विधानसभा में विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत हासिम अब्दुल हलीम की स्मृति में शोकसभा आयोजित की गयी. विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी के प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, विरोधी दल नेता डॉ सूर्यकांत मिश्रा, संसदीय मंत्री पार्थ चटर्जी,

कांग्रेस विधायक दल नेता मोहम्मद सोहराब, प्रबोध चंद्र सिन्हा, भाजपा विधायक शमिक भट्टाचार्य, एसयूसीआइ विधायक तरुणकांति नस्कर सहित अन्य पार्टियों के नेताओं ने श्री हलीम के प्रति भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की.

इस अवसर पर पूर्व मंत्री मदन बाउरी, पूर्व विधायक अफताब हुसैन, बादल भट्टाचार्य, शंकर बनर्जी, नवकुमार राय एवं शेख माजेद अली के प्रति भी विधायकों ने दो मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि अर्पित की. विधानसभा अध्यक्ष सहित अन्य नेताओं ने ने श्री हलीम की तसवीर पर माल्यार्पण किया.
इस अवसर पर दिवंगत हलीम की पत्नी व परिवार के अन्य सदस्य उपस्थित थे. शोकसभा में भाग लेते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हलीम के निधन को क्षति करार देते हुए प्रस्ताव दिया कि उन पर विधानसभा में एक पुस्तक प्रकाशित की जाये. विधानसभा अध्यक्ष ने प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए उनकी रुलिंग को एकत्रित कर प्रकाशित करने की घोषणा की. मुख्यमंत्री ने कहा कि वह रिश्ता बनाने में विश्वास करते थे तथा लोगों के जीवन में अपनी छाप छोड़ देते थे. विपक्ष के नेता डॉ सूर्यकांत मिश्रा ने कहा कि 29 वर्षों से विधानसभा में अध्यक्ष पद पर वह रहे.
आधुनिक युग के प्रतिनिधि थे तथा केवल अपने विचार में ही नहीं, वरन पूरा जीवन धर्मनिरपेक्षता के लिए जीया. कानून मंत्री के रूप में भी अमूल्य छाप छोड़ी थी. कांग्रेस विधायक दल के नेता मोहम्मद सोहराब ने कहा कि उनमें हास्य रस था तथा बड़े-बड़े हंगामे को आसानी से संभाल लेते थे. संसदीय मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि वह एक माकपा नेता ही नहीं, वरन मानवतावादी थे. विरोधी दल के नेता रूप में उन्होंने श्री हलीम से बहुत कुछ सीखा है तथा वह सदा ही विधानसभा के नियमों के बारे में अवगत कराते रहते थे. वैचारिक मतभेद होने के बावजूद उनका सदैव ही अभिभावक का प्रश्रय मिला था.

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