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साईं मंदिर की स्थापना सुनियोजित षड्यंत्र
बोले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती कोलकाता : भारत की एकता का सबसे सुदृढ़ स्तंभ धर्म है. उस स्तंभ को खंडित करने का प्रयास साईं पूजा द्वारा किया जा रहा है. देश की अखंडता, संप्रभुता को स्वयं हिंदुओं द्वारा खंडित कराये जानेवाला विदेशी षड्यंत्र है. साईं पूजा करनेवाले या साईं मंदिर के संचालकों को हमारी चुनौती […]
बोले शंकराचार्य स्वामी
स्वरूपानंद सरस्वती
कोलकाता : भारत की एकता का सबसे सुदृढ़ स्तंभ धर्म है. उस स्तंभ को खंडित करने का प्रयास साईं पूजा द्वारा किया जा रहा है. देश की अखंडता, संप्रभुता को स्वयं हिंदुओं द्वारा खंडित कराये जानेवाला विदेशी षड्यंत्र है. साईं पूजा करनेवाले या साईं मंदिर के संचालकों को हमारी चुनौती स्वीकार करनी होगी कि वे सिद्ध करें कि साईं भगवान, गुरु या संत हैं. हिंदुओं द्वारा पूजनीय हैं. अन्यथा हमारा साईं विरोध एवं हिंदू जन-जागरण का कार्य कोई नहीं रोक सकता. कोलकाता एक सांस्कृतिक, धार्मिक नगरी है यहां की दुर्गा, काली पूजा का अनुसरण पूरा देश करता है.
इस नगर में साईं मंदिर की स्थापना करना निश्चित ही सोची-समझी षड्यंत्र का हिस्सा है, जिसका हम प्रबल विरोध करते हैं. अनंतश्री विभूषित ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका सारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने परमहंसी गंगा आश्रम (नरसिंहपुर) से जारी विज्ञप्ति में कहा है कि गत वर्ष अगस्त महीने में कवर्धा में धर्म संसद का आयोजन किया गया था, जिसमें श्रृंगेरी, पुरी के मान्य शंकराचार्यो के प्रतिनिधि उनके पत्र के साथ, तेरह अखाड़ों के प्रतिनिधि, समस्त वैष्णव संप्रदाय के प्रतिनिधि, अखिल भारतीय साधुसमाज तथा काशी विद्वत्परिषद के लोग शामिल हुए.
इस धर्म संसद में शिरडी के संस्थान को भी निमंत्रण भेजा गया, लेकिन उनका कोई भी प्रतिनिधिमंडल शामिल नहीं हुआ. धर्म संसद में साईं पूजा पर विस्तृत रूप से चर्चा हुई. सभी धर्माचार्यो ने एकमत से प्रस्ताव पारित किया कि साईं न भगवान हैं, न संत, न ही गुरु. इस घोषणा के बाद देशभर में फैले साईं मंदिर एवं घर-घर में होनेवाली साईं पूजा पर प्रश्नचिह्न् लगा और हिंदू समाज ने हमारी बात को निर्विरोध स्वीकार किया. वस्तुत: देवता कौन हैं? उनके नाम, स्वरूप, धर्म क्या है? उनकी उपासना का स्वरूप क्या है?
यह सब धर्मशास्त्र से निर्धारित होता है. लोक में किसी धर्म की विधिक मान्यता का आधार भी उन धर्माे के धर्मग्रंथ एवं तदनुसार चलनेवाली परंपरा ही होती है. जैसा कि नागपुर हाइकोर्ट ने अपने निर्णय में विभिन्न न्याय बिंदुओं का हवाला देते हुए साईं पूजकों को मिश्र धर्मीय एवं हिंदू धर्मबाह्य सिद्ध किया है. हिंदुओं की उपासना पद्धति का मूल यह है कि असत्, अयोग्य एवं अचेतन की पूजा नहीं की जाती. साईं अभी संसार में नहीं हैं.
अत: वह असत्य है. शास्त्रों में कहीं साईं का उल्लेख ही नहीं तो पूजा की बात तो बहुत दूर है.अत: साईं अचेतन हैं और राम, कृष्ण चरित्र की भांति साईं चरित्र में अनुकरणीयता न होने से साईं में योग्यता सिद्ध न होने से साईं की पूजा करना अवैध है. मूर्ति के माध्यम से सत्, चित, आनंद स्वरूप उस परमात्मा की पूजा की जाती है, जो कण-कण में व्याप्त, सभी प्राणियों के कर्म का साक्षी एवं जीवों को उनके समस्त कर्मो का फल प्रदान करने की सामथ्र्यवाला होता है.
शिरडी साईं संस्थान से प्रकाशित पुस्तक साईं सच्चरित एवं विभिन्न पुस्तकों में यह स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि साईं मोमिनवंशी मुसलमान थे. वे मसजिद में रहते थे. फातिहा पढ़ कर खाना खाते थे. मसजिद से ही शकाहार एवं मांसाहार का प्रसाद बांटा करते थे. आज भी शिरडी में मोमिनपाड़ा मोहल्ला है. शिरडी साईं मंदिर में जाकर साईं कब्र को देखा जा सकता है.
गंगा स्नान की बात करने पर स्वयं साईं कहता है कि वह यवन है. इस पचड़े में न डालो. सूचना अधिकार के तहत साईं संस्थान मुंबई के संचालक रमेश जोशी ने जो सूचना प्राप्त की है, वे सभी साईं को हिंदू सिद्ध नहीं करती. यह आश्चर्य है कि इन सब बातों की अनदेखी हिंदू क्यों कर रहे हैं? यह अत्यंत चिंता का विषय है.
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