कोलकाता. द्वापर में तुलसीदास जी एक मात्र व्यास थे. हुलसी के पुत्र तुलसीदास ने रामचरित मानस जैसे ग्रंथ की रचना की. इसका एक-एक अक्षर जनहित में है. श्री हरि सत्संग समिति की ओर से नवलरामजी व शक्तिरामजी के व्यासत्व में आयोजित श्रीरामचरित मानस नवान्न के पांचवे दिन व्यास श्रीकांत शास्त्री ने कहा कि दुनिया मंे हर आदमी रामचरित मानस को पसंद करता है. ऐसा शोध में कहा गया है. तुलसीदासजी ने ज्ञान, भक्ति योग को अपनाया लेकिन भगवान से नहीं मिले. वे कर्मयोगी थे. इसके बाद इन्होंने चौथा रास्ता अपनाया और रामजी के चरणों मंे समर्पित हो गये. जो भगवान पर भरोसा करता है वह दीन है. तुलसीदासजी कहते हैं कि रामजी का सतत नमन करो. आजकल का जीवन बहुत व्यस्त है. इसमें से कुछ समय निकाल कर रामायण के दोहे का पाठ करो तो मन प्रसन्न रहेगा. रामचरित मानस के दोहे को जीवन मंे उतारो. हनुमानजी श्रीराम के परम भक्त थे. आजकल सुंदरकांड की परंपरा बढ़ गयी है. लेकिन महीना मंे कम से कम बाल कांड व लंका कांड का भी पाठ करना चाहिए. ऐसा करने से चरित्र निर्माण होता है. सज्जन बंसल, महेश भुवालका, सुभाष मुरारका, सुरेंद्र चमडि़या, राजेश व्यास, प्रमोद ढढ़ानिया आदि ने व्यासजी का माल्यार्पण कर स्वागत किया. संचालन पत्रकार प्रकाश चंडालिया ने किया.
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द्वापर में तुलसीदासजी एकमात्र व्यास थे : श्रीकांत शास्त्री
कोलकाता. द्वापर में तुलसीदास जी एक मात्र व्यास थे. हुलसी के पुत्र तुलसीदास ने रामचरित मानस जैसे ग्रंथ की रचना की. इसका एक-एक अक्षर जनहित में है. श्री हरि सत्संग समिति की ओर से नवलरामजी व शक्तिरामजी के व्यासत्व में आयोजित श्रीरामचरित मानस नवान्न के पांचवे दिन व्यास श्रीकांत शास्त्री ने कहा कि दुनिया मंे […]
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