कोलकाता : निश्चित रूप से सोशल मीडिया सामान्य व्यक्ति का एक महत्वपूर्ण हथियार बन चुका है, हालांकि इसके माध्यम से झूठी खबरें या अफवाहों को आसानी से फैलाया जाता रहा है. फिर भी आम आदमी यदि किसी भी क्षण दुखी, परेशान, चिंतित, क्रोधित, खुश या उत्तेजित होता है तो वह सोशल मीडिया की शरण में जाता है.
वह लोगों को बताना चाहता है कि उसका नजरिया क्या है. वह अपने विचार शेयर करता है. वह जानता है कि उसके साथ फेसबुक, ट्विटर या व्हाट्स एप के माध्यम से असंख्य लोग जुड़े हुए हैं. मुद्दा सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक या कुछ भी हो सकता है. उसे अभिव्यक्ति की खुली आजादी मिली है. पढ़नेवाले, लाइक करनेवाले और तुरंत टिप्पणी करनेवाले लोग मिल जाते हैं. इसमें दो राय नहीं कि यदि इसका समझदारीपूर्वक और संतुलित प्रयोग किया जाये तो कई सकारात्मक और सामाजिक हित वाले काम हो सकते हैं.
हां, कुछ खतरे तो हैं. जैसे आग से आप खाना पका सकते हैं और किसी के घर में आग भी लगा सकते हैं. उसी तरह यदि सोशल मीडिया का अराजक इस्तेमाल होगा तो नुकसान हो सकता है. इसके लिए एक माॅनीटरिंग बॉडी की जरूरत पड़ती है. सोशल मीडिया की मानीटरिंग हो रही है, भले ही कुछ लोग इससे अनजान हों.
यह सच है कि अब भी प्रिंट मीडिया ज्यादा विश्वसनीय है. ऐसे अनेक लोग हैं, जो भले ही अपने स्मार्ट फोन पर खबरे पढ़ते रहते हैं, लेकिन उन्हें सुबह अखबार चाहिए. प्रिंट की महत्ता तो हमेशा रही है और अभी रहेगी, लेकिन इलेक्ट्राॅनिक मीडिया उसे कड़ी चुनौती दे रहा है. लोग अपने फोन पर कोई भी टीवी चैनल (लाइव) देख कर खबरें जान लेते हैं, सुन लेते हैं. यह सचाई है. यह सभी जानते हैं कि अखबार और टीवी चैनल आपके फोन पर भी उपलब्ध हैं. अनेक लोग फोन पर उपलब्ध ‘इलेक्ट्राॅनिक अखबार’ या ‘इलेक्ट्राॅनिक पत्रिका’ को सोशल मीडिया मानने लगे हैं. आप मानें या न मानें सोशल मीडिया पूरी ताकत से हमारे बीच जड़ें जमा चुका है, यह एक नशा बन चुका है. चुनौती तो बन ही गया है.