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बंगाल में ओडिशी संगीत को शास्त्रीय संगीत का दर्जा देने की उठी मांग

– राज्यपाल ने सराहा, कहा – ओडिशी संस्कृति व संगीत बहुत ही मधुर – ओडिशी शास्त्रीय संगीत की हस्तियों को किया सम्मानित कोलकाता : बंगाल में ओडिशी शास्त्रीय संगीत का शास्त्रीय संगीत का दर्जा की मांग के बीच राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने ओडिशी शास्त्रीय संगीत की प्रशंसा करते हुए कहा कि ओडिशी संस्कृति व संगीत […]

– राज्यपाल ने सराहा, कहा – ओडिशी संस्कृति व संगीत बहुत ही मधुर

– ओडिशी शास्त्रीय संगीत की हस्तियों को किया सम्मानित

कोलकाता : बंगाल में ओडिशी शास्त्रीय संगीत का शास्त्रीय संगीत का दर्जा की मांग के बीच राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने ओडिशी शास्त्रीय संगीत की प्रशंसा करते हुए कहा कि ओडिशी संस्कृति व संगीत बहुत ही मधुर है तथा ओडिशा की भाषा भी बहुत ही सुंदर है. राज्यपाल श्री त्रिपाठी ओडिशी शास्त्रीय संगीत की संस्था ‘उत्कला’ और आइसीसीआर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम के दौरान ये बातें कहीं.

इस अवसर पर श्री त्रिपाठी ने ओडिशी शास्त्रीय संगीत की हस्तियां गायिका गुरु सुनंदा पटनायक, नृत्यांगना गुरु आलोका कानूनगो, गुरु शर्मिला विश्वास तथा गुरु संचिता भट्टाचार्य को सम्मानित किया. राज्यपाल ने ओडिशी शास्त्रीय संगीत के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए संगठन द्वारा किये जाने की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने गुरु संचिता भट्टाचार्य का नृत्य पहले भी देखा है तथा उनके नृत्य ने उन्हें काफी प्रभावित किया है.

उत्कला के संस्थापक सदस्य व भारतीय राजस्व सेवा के सदस्य प्रसन्न कुमार दास ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि ओडिशी शास्त्रीय संगीत (नृत्य व संगीत) काफी प्राचीन है तथा वे लोग ओडिशी संगीत का शास्त्रीय संगीत का दर्जा दिये जाने की मांग लंबे समय से कर रहे हैं और इसके प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए देश भर में संगोष्ठी व कार्यक्रम के आयोजन किये जा रहे हैं.

भारत मुनि नाट्यशास्त्र, संगीत रत्नाकर जैसे आदि ग्रंथों में तीन शास्त्रीय संगीत का उल्लेख मिलता है. उनमें हिंदुस्तानी, कर्नाटक के साथ-साथ उड्र संगीत का उल्लेख भी मिलता है, जो निश्चय ही ओडिशी शास्त्रीय संगीत है. ओडिशी नृत्यांगना गुरु संचिता भट्टाचार्य ने कहा कि हिंदुस्तानी और कर्नाटक शास्त्रीय संगीत से अलग ओडिशी शास्त्रीय संगीत ‘अंदोलित’ शास्त्रीय संगीत है.

इस वजह से यह इन दो शास्त्रीय संगीत से अलग है तथा इसकी संस्कृति बहुत ही प्राचीन है. कोनार्क के मंदिर और खंडगिरी गुफा में भी इनका उल्लेख मिलता है. आज यह संगीत काफी लोकप्रिय है. इसे अब शास्त्रीय संगीत का दर्जा दे ही दिया जाना चाहिए.

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