कुछ दिनों पहले ही हुआ था उद्घाटन
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तैरता बाजार में लगा गंदगी का अंबार
कुछ दिनों पहले ही हुआ था उद्घाटन पानी की सफाई के लिए प्रयोग में नहीं है मोटर बाजार में कूड़ेदान व पेयजल का अभाव बाजार में सिर्फ एक शौचालय कोलकाता : महानगर में यूं तो बाजार सड़क के किनारों से लेकर इमारतों में ठेलों-टोकरियों और गुमटियों में ही लगते है, लेकिन अब बाजार झील में […]
पानी की सफाई के लिए प्रयोग में नहीं है मोटर
बाजार में कूड़ेदान व पेयजल का अभाव
बाजार में सिर्फ एक शौचालय
कोलकाता : महानगर में यूं तो बाजार सड़क के किनारों से लेकर इमारतों में ठेलों-टोकरियों और गुमटियों में ही लगते है, लेकिन अब बाजार झील में भी लगने लगे हैं. हाल में ही दक्षिण कोलकाता के पाटुली इलाके में पूर्वी भारत का पहला तैरता हुआ बाजार खुला है. राज्य सरकार ने इसे नयी पहल बताते हुए पूरे जोश के साथ इसका उद्घाटन किया गया. गौरतलब है कि थाइलैंड के फ्लोटिंग मार्केट की तर्ज पर 24,000 वर्ग किलोमीटर में फैले इस बाजार की लागत लगभग 10 करोड़ रुपया बतायी जा रही है. यहां लगभग 114 नावों पर तकरीबन 228 दुकानदार फल, सब्जियां, अनाज, मांस-मछली व चाय-नाश्ता सुबह पांच बजे से रात 11 बजे तक बेच रहे हैं.
उल्लेखनीय है ही कोलकाता मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (केएमडीए) की निगरानी में तैयार झील बाजार में पहले इलाके का गंदा पानी जमा हुआ करता था. आठ फीट गहरी इस झील में अभी भी पानी के गंदा होने के कारण मच्छर के लार्वा भरे पड़े हैं.
पानी से आने लगी है दुर्गंध
बता देें कि गत 24 जनवरी को फ्लोटिंग मार्केट का उद्घाटन किया गया. इसके शुभारंभ के मात्र 10 दिन बाद ही बाजार की देखभाल की व्यवस्था की पोल खुलने लगी है. झील के पानी में हरे-हरे शैवाल जम गये हैं. पानी एकदम काला दिखायी पड़ने लगा है और दुर्गंध भी आने लगी है. कुछ दुकानदारों ने बताया कि बाजार के उद्घाटन के बाद से एक बार भी झील की सफाई नहीं हुई है. पानी की सफाई के लिए यहां दो एयरेटर लगाया गया है, जो काम नहीं कर रहा है.
बाजार परिसर में कूड़ेदान व पेयजल का अभाव
नावों पर सजे इस बाजार में आने-जाने के लिए बांस व लड़की का पुल हैं. चूंकि पुल संकरा है इसलिए उस पर कूड़ेदान नहीं रखकर दूर झील के किनारे रखा गया है. जिस पर लोगों की नजर नहीं पड़ रही है. बाजार में पहुंचनेवाले लोग खाने-पीने के बाद पैकेट, प्लास्टिक का कप, पानी की बोतलें झील में फेंक रहें हैं, जिससे पानी में गंदगी और बढ़ती ही जा रही है. हालांकि दुकानदारों को अपनी दुकान के पास तैरते हुए कूड़ा कचरा को निकालने के लिए नेट दिये जाने की बात कहीं गयी थी, लेकिन अब तक उन्हें नेट नहीं दिया गया है. यहां पेयजल की भी उपयुक्त व्यवस्था तक नहीं है.
लोगों को पानी खरीद कर पीना पड़ रहा है. बाजार में केवल एक ही शौचालय है जो पर्याप्त नहीं है.
झील का पानी गंदा होने के कारण दुकानदार व बाजार पहुंचनेवाले लोग डेंगू, मलेरिया और फलेरिया जैसी संक्रामक व जानलेवा बीमारियों के चपेट में आ सकते हैं. जरूरी है कि पानी को साफ रखने व लार्वा को नष्ट करने के लिए झील में घोंघा, मछली व मेेंढक को छोड़ा जाना चाहिए , जो इन लार्वा को खा सकें.
प्रो डॉ निशित पाल , विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी, नील रतन सरकार मेडिकल कॉलेज.
पाटुली झील में अब इलाके का गंदा पानी नहीं छोड़ा जा रहा है. पानी की सतह को बरकरार रखने के लिए इसमें पंप से पानी भरा जा रहा है साथ ही सफाई की लिए दो एयरेटर मोटर लगाया गया है और अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए स्वीज गेट की भी व्यवस्था की गयी है. यहां पॉलिथीन पूरी तरह से प्रतिबंधित है.
-अवनिंद्र सिंह. सीइओ, केएमडीए.
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