कोलकाता: उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने शनिवार पंचाट पर एक अधिक व्यापक कानून लाये जाने की जरूरत पर बल दिया, ताकि यह वैकल्पिक विवाद निस्तारण तंत्र के स्वीकार्य स्वरूप की तरह उभर सके.
भारतीय पंचाट परिषद व इंडियन चेंबर ऑफ कॉमर्स (आइसीसी) द्वारा आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस एसएस निज्जर ने कहा कि फिलहाल पंचाट व सुलह कानून 1996 के तहत पंचाट प्रक्रिया चलाने में कई अड़चनें हैं.
जस्टिस निज्जर ने कहा कि पंचाट कानून के तहत पंचाट कार्यवाही करने में इस समय अनेक अड़चने हैं. इसमें एक प्रमुख अड़चन यह है कि पंचाट उपबंधों का खराब मसौदा तैयार किया गया है. जस्टिस निज्जर ने कहा कि कानून का प्रभावी तरीके से उपयोग नहीं हो सकता. पंचाट उपबंधों के खराब मसौदे के परिणामस्वरूप विलंब होता है, जिससे इस तंत्र का उद्देश्य ही विफल हो जाता है.
उच्चतम न्यायालय के ही एक अन्य न्यायाधीश जस्टिस पीसी घोष ने कहा कि न्यायपालिका की पंचाट प्रक्रिया में बहुत कम दखल होनी चाहिए. अदालतों को विशेष परिस्थितियों में मध्यस्थ (आर्बिट्रेटर) नियुक्त करना चाहिए. मध्यस्थ प्रक्रिया का समय व लागत गंभीर चिंता का विषय हैं व उन पर ध्यान दिया जाना चाहिए. वहीं, आइसीए के रजिस्ट्रार डी सेनगुप्ता ने कहा कि 1996 में कानून बनाने का लक्ष्य यह था कि पंचाट मामले में अदालतों का हस्तक्षेप बंद होना चाहिए, पर ऐसा नहीं हुआ. आज भी अदालतों का हस्तक्षेप जारी है. इसके साथ ही आर्बिट्रेटर की फीस का मुद्दा भी बेहद कठिन है.