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शाहरुख की तुलना में दर्शकों ने मुझे नहीं सराहा: कुमार शानू

कोलकाता: अपनी आवाज के जरिये हिंदी फिल्म जगत में 90 के दशक में छा जानेवाले कुमार शानु आज सिने प्रेमियों के उनके प्रति रवैये को लेकर नाराज हैं. 23वें कोलकाता अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव के उदघाटन समारोह में शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन, काजोल और कमल हासन को लेकर दर्शकों का जिस कदर उत्साह देखने को मिला था, […]

कोलकाता: अपनी आवाज के जरिये हिंदी फिल्म जगत में 90 के दशक में छा जानेवाले कुमार शानु आज सिने प्रेमियों के उनके प्रति रवैये को लेकर नाराज हैं. 23वें कोलकाता अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव के उदघाटन समारोह में शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन, काजोल और कमल हासन को लेकर दर्शकों का जिस कदर उत्साह देखने को मिला था, उतना प्यार कुमार शानु की झोली में नहीं गिरा था. संवाददाताअों से बातचीत में कुमार शानु ने कहा कि बंगाल के लोगों का यह रवैया देखकर उन्हें काफी दुख हुआ.
यहां मुंबई के कलाकारों को लेकर जैसा उत्साह दर्शक दिखाते हैं, एक बांग्ला कलाकार को लेकर उतना नहीं दिखाते. नेताजी इंडोर स्टेडियम में हुए उदघाटन समारोह में उन्होंने यह देख लिया. जबकि दर्शक यह भूल गये कि उन कलाकारों के उत्थान में उनका ही हाथ है. चाहे शाहरुख खान के लिए ‘राजू बन गया जेंटलमैन’ के गाने बड़ी वजह थी, वैसे अन्य के लिए भी. अजय देवगन के कैरियर में फूल और कांटे के उनके गाने के महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता. हालांकि अजय देवगन उदघाटन समारोह में नहीं थे.

कुमार शानु ने फिल्मों में कम गाने के संबंध में कहा कि फिल्मी गानों के आजकल के बोल को लेकर वह हताश हैं. वह ऐसे बोलवाले गानों को ठुकरा देते हैं. परिवर्तन जरूरी होता है. लेकिन परिवर्तन बेहतर के लिए हो, खराब के लिए नहीं. वह अपने उसूलों से समझौता नहीं कर सकते. कुमार शानु ने बताया कि वह कुछ टीवी सीरियलों में गाने गा रहे हैं. अपने पसंदीदा अभिनेताओं में उन्होंने पहला नाम उत्तम कुमार का लिया. इसके बाद उनके मनपसंद अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान हैं.

दुविधा की कहानी है प्यूपा : इंद्राशीष आचार्य
23वें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में प्रतिस्पर्धा की श्रेणी में चुनी गयी फिल्म प्यूपा के निर्देशक इंद्राशीष आचार्य ने बताया कि यह फिल्म एक अभिनव दुविधा की कहानी है. इसमें फिल्म का नायक जो अमेरिका में काम करता है. जब वह अपने घर भारत आता है तो उसके पिता गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं. ऐसे में वह वापस कैसे जाये. इसके अलावा परिवार के अन्य सदस्य भी एक अलग दुविधा की स्थिति से गुजरते हैं. इन सभी के तानेबाने के साथ प्यूपा को तैयार किया गया है. फिल्मोत्सव में प्रतियोगिता की श्रेणी में यह इकलौती बांग्ला फिल्म है. बांग्ला फिल्मों के संबंध में इंद्राशीष ने बताया कि वह चाहते हैं कि फिल्म कुछ अलग तरीके से बनायी जाये. चाहे वह अभिनय हो या संगीत अथवा अन्य आयाम, सभी में बदलाव की जरूरत है. विदेशी फिल्मों को देखकर काफी कुछ सीखा जा सकता है.
उपन्यास पर आधारित फिल्म से होती सहूलियत
ब्रिटिश फिल्मकार माइकल विंटरबॉटम का कहना है कि यदि फिल्म को उपन्यास पर आधार करके बनाया जाता है, तो काफी सहूलियत होती है. कोलकाता अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में विंटरबॉटम की छह फिल्मों को रेट्रोस्पेक्टिव सेक्शन में दिखाया जा रहा है. संवाददाताओं से बातचीत में विंटरबॉटम ने कहा कि उपन्यास के तौर पर तैयार कहानी रहती है. उसे स्टार्टिंग प्वाइंट के तौर पर लिया जा सकता है. फाइनेंसर को भी यह बताने में आसानी रहती है कि आखिर वह कैसी फिल्म बनाना चाह रहे हैं. उनकी कई फिल्में उपन्यास पर ही आधारित हैं. लेकिन फिल्म में वह कुछ परिवर्तन भी करते हैं.

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