कंपनियों के फरार होने के बाद जागती है सरकार, पर लोगों के पैसे वापस नहीं मिलते
कोलकाता : चिट फंड कंपनियां खुलती हैं. बंद हो जाती हैं. जब लाखों लोगों की जिंदगी भर की जमा पूंजी लूट कर कंपनी फरार हो जाती है, तब सरकार की नींद खुलती है. प्रशासन व पुलिस स्तर पर कार्रवाई की बात की जाती है.
लेकिन अभी तक पूर्व चिट फंड घोटाले का जो इतिहास रहा है कि उसमें तो चिट फंड कंपनियां गायब हो गयीं, लेकिन जमाकर्ताओं का पैसा वापस नहीं मिला. राज्य में सारधा समूह की धोखाधड़ी सामने आने के बाद चिट फंड कंपनियों की कारगुजारी के किस्से सामने आ रहे हैं.
लेकिन सवाल उठता है कि पहले ही ऐसी कंपनियों पर लगाम क्यों नहीं लगाया जाता. कंपनी मामलों के विशेषज्ञ पंकज सर्राफ का का कहना है कि इन कंपनियों के गठन के मूल में ही ये बातें छिपी हैं. रेजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज एक्ट के तहत कंपनी का गठन होता है.
सामूहिक निवेश योजना के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करने का आश्वासन देकर कंपनियां आम लोगों को लुभाती हैं. इन कंपनियों को सेबी व भारतीय रिजर्व बैंक की अनुमति नहीं होती है. इस कारण जब तक पानी सिर से ऊपर नहीं निकल जाता है, नियंत्रक संस्थाएं सेबी और आरबीआइ नहीं जगती हैं.
बड़ी हस्तियों से प्रचार कराकर जमाकर्ताओं को करते हैं आकर्षित
दक्षिण 24 परगणा जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बाजार में लोगों के बीच अपनी छाप छोड़ने के लिये कई कंपनियां बड़ी हस्तियों से प्रचार कराकर अपनी ब्रांडिंग करती हैं. उनके जरिये अपनी योजनाओं को उनका सामने लाती हैं. जिससे जमाकर्ता भी उन हस्तियों पर विश्वास कर इनसे आकर्षित हो जाते हैं.
सारधा समूह प्रकरण में कुछ ऐसा ही है. इस कंपनी के मालिक से लेकर सभी बड़े अधिकारियों को किसी ना किसी एक प्रभुत्व पार्टी के दिग्गज नेताओं व टॉलीवुड अदाकारों के साथ देखा गया. जमाकर्ताओं को आकर्षित करने में इनका लाभ लिया गया. मीडिया में विज्ञापन देकर भी कंपनियां अपना विश्वास बनाती हैं.
क्या कहना है अधिकारियों का
सीआइडी के डीआइजी (स्पेशल) शंकर चक्रवर्ती का कहना है कि इनके प्रलोभन में फंसकर शुरुआत में जमाकर्ता यहां रुपये जमा करवाना शुरू कर देते हैं. ज्यादातर एजेंट अधिक अवधि के लिये जमाकर्ताओं से रुपये जमा करवाते हैं. लेकिन रुपये लौटाने का समय आने पर शुरुआत में कुछ लोगों के रुपये वापस किये जाते हैं.
समय बीतने के साथ ये अपना व्यापार समेटना शुरू कर देते हैं. हैरानी की बात तो यह है कि ठगे जाने के बावजूद जमाकर्ता कंपनी के अधिकारियों के खिलाफ पुलिस के पास शिकायत करने नहीं आते. जिस कारण इनके खिलाफ अभियान नहीं चलाया जाता. जहां भी शिकायतें मिलती हैं वहां पुलिस कार्रवाई करती है.
– अजय विद्यार्थी/विकास गुप्ता –