कचरों में प्लास्टिक के सामान भी रहते हैं. ऐसे में नदी का प्रदूषण भी बढ़ रहा है. महानगर व निकटवर्ती इलाके के कई नदी के घाटों की स्थिति का जायजा लेने पर पता चला कि वहां कचरा फेंकने व हटाने के लिए सटीक व्यवस्था नहीं है. उत्तर 24 परगना जिला के हालीशहर, नैहाटी, खड़दह में भी नदी के कई घाटों के पास कूड़ा-कचरा धड़ल्ले से फेंके जा रहे हैं. यदि महानगर के लोहा घाट का दौरा किया जाये तो वहां भी ऐसी स्थिति नजर आयेगी. जगन्नाथ घाट, पाथुरिया घाट, नीमतला घाट के आसपास की घाटों की दशा भी ऐसी ही है. प्रशासन से जुड़े संबंधित अधिकारियों का कहना है कि कचरे हटाने के लिए उनकी ओर से पूरी कोशिश की जाती है लेकिन लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है.
एक रिपोर्ट के अनुसार नदियों में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण औद्योगिक व शहरी वेस्टेज है. बड़े कल-कारखानों पर प्रशासन की निगरानी रहती है लेकिन कई ऐसे छोटे कल कल-कारखाने जिसपर नजर नहीं जाती. सूत्रों के अनुसार ऐसे कल-कारखाने अपने नालों को ट्रीट नहीं करते फलस्वरूप गंदा पानी नदी में तो गिरता है, साथ ही घाटों के पास भी कचरा जमा होता है. रिपोर्ट के अनुसार हुगली नदी के पानी मेें पारा, निकल, जस्ता, आर्सेनिक जैसी धातुओं का अनुपात बढ़ रहा है जो चिंता की बात है. गंगा विचार मंच के प्रदेश सह-प्रभारी चंद्रशेखर बासोतिया का कहना है कि कोलकाता, हावड़ा, उत्तर 24 परगना, हुगली के कई घाटों की स्थिति काफी विषम है. केंद्र सरकार गंगा व उसकी घाटों की सफाई के लिए पूरी तरह से कार्यरत है लेकिन स्थानीय स्तर पर भी तत्परता जरूरी है. नदी के घाटों के पास साफ-सफाई की वैकल्पिक व्यवस्था होनी चाहिए.
सामाजिक कार्यकर्ता सागर प्रसाद माली का कहना है कि सबसे पहले यह सोचने की जरूरत है कि नदी के घाटों के पास कचरा फैलाने का जिम्मेदार कौन है? सरकार, प्रशासन के अलावा आम लोगों की सजगता भी अहम है. यदि लोग अभी नहीं सचेत होंगे तो आने वाले वक्त में स्थिति काफी विषम हो जायेगी.