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ऐसे ही नहीं अन्नपूर्णा बाई के नाम से जानी जाती हैं कोलकाता की वर्षा साह

नवीन कुमार राय कोलकाता : कोलकाता के सरकारी अस्पतालों में आकर लगती है एक गाड़ी, जिसे देख कर मरीजों के परिजनों का चेहरा खिल उठता है. क्योंकि इसमें उनके लिए खाने का सामान लेकर आती हैं अन्नपूर्णा बाई उर्फ वर्षा साह. पिछले एक साल से लगातार कभी एसएसकेएम तो कभी एनआरएस या फिर आरजीकर मेडिकल […]

नवीन कुमार राय

कोलकाता : कोलकाता के सरकारी अस्पतालों में आकर लगती है एक गाड़ी, जिसे देख कर मरीजों के परिजनों का चेहरा खिल उठता है. क्योंकि इसमें उनके लिए खाने का सामान लेकर आती हैं अन्नपूर्णा बाई उर्फ वर्षा साह.

पिछले एक साल से लगातार कभी एसएसकेएम तो कभी एनआरएस या फिर आरजीकर मेडिकल कॉलेज हर जगह इनकी गाड़ी पहुंचती है और लोगों को भोजन मुहैया कराती है.

वर्षा साह बताती हैं कि सरकारी अस्पतालों में दूर-दराज से गरीब लोग आते हैं, जो मरीज अस्पताल में भर्ती होते हैं उनको तो अस्पताल की तरफ से खाना मिल जाता है लेकिन उनके परिजन जो आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं, उनको लेकर कोई नहीं सोचता. इसके लिए आर्थिक मदद देने का काम पारेख भाईयों ने किया, जिसे मूर्तरूप देने के लिए एक डेडिकेटेड वर्कर की जरूरत थी. चूंकि वह मानव ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट से जुड़ी हुई है और समाज सेवा उनका ध्येय है, इसलिए वह इस जिम्मेवारी को खुद निभाने को ठानी और सावित्रीबाई अन्नपूर्णा योजना का काम शुरू हुआ.

शुरू में चंद लोग ही आये तो पहले केला,पावरोटी और मिठाई देकर योजना की शुरुआत की गयी. बाद में एक किचन की जरूरत महसूस की गयी. पद्दोपुकुर में अत्याधुनिक किचन बनाया गया. इसके बाद खाना बनाने का काम शुरू हुआ. सुबह होते ही स्वयंसेवक खाना बनाने के काम में लग जाते हैं. खाना बनने के बाद उसे बांटने के लिए स्वयंसेवकों की दूसरी टीम मेटाडोर लेकर अस्पतालों का रूख करती है.

शुरू से ही थी समाज के लिए कुछ करने की ललक

पिछले दो साल से यह काम नियमित रूप से बिना रुके चल रहा है. पूरा काम खुद वर्षा साह की देखरेख में होता है. खाना बनाने से लेकर बांटने तक हर वक्त वह मौजूद रहती हैं.

इस बारे में पूछने पर वर्षा बताती हैं कि वह मुंबई में पली बढ़ीं और कॉमर्स से स्नातक की डिग्री हािसल की. इसके बाद कोलकाता के अधिवक्ता वीरेश भाई साह से उनकी शादी हुई और वह कोलकाता पहुंच गयीं. शुरू से ही समाज के लिए कुछ करने की ललक रही है. पति भी पहले से ही मानव ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट से जुड़े हैं सो उनका सहयोग मिलते गया और उनकी भी इच्छा पूरी होते गयी.

इस बीच दो बच्चों की मां बन गयीं तो परिवार के प्रति जिम्मेवारी बढ़ गयी लेकिन समाज सेवा का काम कभी प्रभावित नहीं हुआ अब बच्चे भी बड़े हो गये हैं और घर की जम्मेवारी भी थोड़ी कम हुई है. लिहाजा जब सावित्रीबाई अन्नपूर्णा योजना की बात आयी तो इस काम को उन्होंने खुद करने का निर्णय लिया. तब से लेकर आज तक यह काम चल रहा है.

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