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राजनीति में उदासीनता की शिकार आधी आबादी

कोलकाता: आधी आबादी, एक ऐसा शब्द जो आज भारत में एक जुबान की तरह दौड़ रही है. इस शब्द के अर्थ को जाने तो इसका अर्थ व्यापक है. भारत में आधी आबादी अर्थात देश की महिलायें. भारत में महिलाओं को लक्ष्मी, शक्ति और देवी के रूप स्थान दिया जाता है. शिक्षा, स्वास्थ्य या आज के […]

कोलकाता: आधी आबादी, एक ऐसा शब्द जो आज भारत में एक जुबान की तरह दौड़ रही है. इस शब्द के अर्थ को जाने तो इसका अर्थ व्यापक है. भारत में आधी आबादी अर्थात देश की महिलायें. भारत में महिलाओं को लक्ष्मी, शक्ति और देवी के रूप स्थान दिया जाता है.

शिक्षा, स्वास्थ्य या आज के आधुनिक युग में महिलाओं ने भले ही आधी आबादी की बात को स्थापित करने में सफलता हासिल कर लिया हो. लेकिन इसके बावजूद आज भी भारतीय राजनीति में हमारी आधी आबादी उदासीनता की शिकार हैं. देश के हरेक राजनीतिक दल या संगठन महिला सशिक्तकरण कि बात तो करते है लेकिन अपनी कथनी को अमलीजामा पहना पाने में कितने सक्षम है यह आकडों से जाहिर होता है. इन दिनों देश में में महिला एवं पुरूष को समान, अधिकार, सम्मान एवं पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाला कहा जा रहा है. लेकिन इसके बावजूद भारतीय राजनीति में महिलाओं की संख्या बहुत कम हैं.

इसका उदाहरण हैं आज भी देश के संसद में महिलाओं कि मौजूदगी लगभग 16 फीसदी है. यही कारण है कि महिलाओं के लिए घर कि दहलीज़ पार कर के बाहरी दुनिया में खुद को स्थापित करना आज भी आसान नहीं है. चुकी महिलाओं के कंधे पर घर एवं बाहर कि जिम्मेदारी पूरी करने कि बाध्यता होती है. ऐसे में बहुत कम ऐसा होता है कि, उन्हें घर कि चौखट पार कर बाहरी परिवेश में खुद को स्थापित करने के लिए अपनों से प्रोत्साहन मिल सके. ऐसे में महिलाओं के कार्य कि अनदेखी करना समाज का पुरु ष प्रधान होना ही दिखता है.

आज भी सोलहवीं सदी की मानसिकता
अन्य सभी क्षेत्रों की भांति राजनैतिक गलियारों में भी महिलाओं को खुद को आगे लाकर स्थापित करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगी कि इक्स्वी सदी का भारत आज भी महिलाओं के प्रति सोहलवी सदी की मानिसकता रखता है. ऐसे में राजनीती में महिलाओं की सहभागिता की कमी का होना लाज़मी है. दुनिया कि आधी आबादी कही जाने वाली महिलाएं क्या वास्तव में वाकई दुनियाँ में अपने आधे वर्चस्व को हासिल कर पायेगी यह एक बड़ा प्रश्न है.

भारतीय राजनीति में महिलाओं की संख्या में भारी कमी इसका उदाहरण हैं. इसके बावजूद भारत के राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को अधिक से अधिक प्रोत्साहन देकर राजनीति में आने के लिए प्रेरित करते किसी को देखा नहीं जाता. आज हरेक राजनीतिक दल में महिलाओं की संख्या काफी कम है.

आरक्षण है 33 फीसदी लेकिन टिकट कितना
यदि राजनैतिक दलों में बनाये गए नियमों कि बात करें तो, राजनीतिक दल महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिए जाने की बात करते हैं. लेकिन क्या पश्चिम बंगाल में लोकसभा के चुनावी टिकट बांटते समय क्या यहां के राजनीतिक दलों में इस 33 फीसदी के आरक्षण का समर्थन करते, यह आकड़ों से ही स्पष्ट हो जायेगा. बंगाल में कुल 42 लोकसभा सीट हैं.

ऐसे में 33 फीसदी के आधार पर यहां के हरेक राजनीतिक दलों द्वारा 14 सीट पर महिला उम्मीदवार दिया जाना चाहिए. लेकिन प्रदेश कांग्रेस के टिकट बंटवारे को देखा जाये तो प्रदेश कांग्रेस की ओर से राज्य के आठ लोकसभा सीटो पर महिला उम्मीदवार उतारा गया है. दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस ने दस सीटों पर और माकपा ने मात्र चार सीट पर ही महिला उम्मीदवारों को उतारा हैं. जबकि प्रदेश भाजपा ने सिर्फ एक सीट पर महिला उम्मीदवार उतारा है.

ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि प्रदेश राजनीति के परिदृश्य में हमारे देश की आधी आबादी का स्थान देखा जाये तो आधा तो दूर 33 फीसदी भी नहीं हैं. आवश्यकता है कि राजनीति में भी हमारी आधी आबादी अर्थात महिलाओं को आधी नहीं तो घोषित 33 फीसदी स्थान किसी भी चुनाव के टिकट बंटवारे के समय दिया जाये. तभी हमारी आधी आबादी सक्रिय रूप से राजनीति में आकर देश के विकास एवं संसद में 16 फीसदी के स्थान पर 33 फीसदी मौजूदगी दर्ज कराने में सक्षम होगी.

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