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नशे के आदी युवाओं को जीने का मकसद दे रहा मुक्ति पुनर्वास केंद्र

कोलकाता: सियालदह व हावड़ा स्टेशन के प्लेटफार्म पर रहनेवाले कई बच्चे हेरोइन व डेंडराइट के शिकार हो जाते हैं. सर्वे के दौरान यह पाया गया कि नशा करते-करते ये लोग केमिकल्स पर निर्भर हो जाते हैं आैर उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ने लगती है. ऐसे अस्वस्थ लोगों के पुनर्वास व उन्हें स्वस्थ जीवन देने के लक्ष्य […]

कोलकाता: सियालदह व हावड़ा स्टेशन के प्लेटफार्म पर रहनेवाले कई बच्चे हेरोइन व डेंडराइट के शिकार हो जाते हैं. सर्वे के दौरान यह पाया गया कि नशा करते-करते ये लोग केमिकल्स पर निर्भर हो जाते हैं आैर उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ने लगती है. ऐसे अस्वस्थ लोगों के पुनर्वास व उन्हें स्वस्थ जीवन देने के लक्ष्य से वर्ष 2002 में संस्था की स्थापना की गयी.
उनकी काउंसिलिंग के जरिये यहां लाकर नशे से बाहर निकालने की कोशिश की जाती है. यह जानकारी मुक्ति रिहैब्लिटेशन सेंटर के सचिव के विश्वनाथ ने दी. उन्होंने बताया कि नशे के शिकार ऐसे कई युवा हैं, जिनको घरवाले रखना नहीं चाहते हैं. ऐसे बच्चों को यहां लाकर एक विशेष थैरेपी से जोड़ा जाता है. बाद में उन्हें स्कूल में भी भरती किया जाता है. इस केंद्र में नशे के शिकार सात से 18 साल के लगभग 55 बच्चे अभी रह रहे हैं. ऐसे बच्चों पर नजर रखने के लिए सियालदह रेलवे स्टेशन पर उनका एक ड्रॉप इन सेंटर भी बनाया गया है, जिसके जरिये नशे के आदी फुटपाथी बच्चों को वहां से निकाला जा सके. सचिव ने बताया कि संस्था की ओर से किये गये सर्वे के दाैरान स्टेशन पर कई ऐसे बच्चे भी मिले, जो अपराध में लिप्त होने के साथ-साथ याैन उत्पीड़न के भी शिकार थे. यूएन कन्वेंशन 1989 के नियमानुसार ये बच्चे संरक्षण, भोजन, शिक्षा व हेल्थकेयर जैसी जरूरी सुविधाओं से वंचित थे.

ऐसे बच्चों के लिए राजारहाट में 30 बेड वाला नशा मुक्ति केंद्र बनाया गया है, जहां उनका उपचार व काउंसिलिंग की जाती है. यहां फॉरमल शिक्षा के अलावा कम्प्यूटर की ट्रेनिंग भी दी जाती है. ये बच्चे एपीजे, स्कूल सॉल्टलेक में फिलहाल फॉरमल शिक्षा ले रहे हैं. यहां प्रशिक्षण ले चुके कई युवा ड्राइवरी, कम्प्यूटर, अभिनय की ट्रेनिंग लेकर आज रोजगार हासिल कर रहे हैं. अच्छे कार्यों के लिए संस्था को रोटरी व इनर व्हील क्लब की तरफ से नेशनल बिल्डर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. कई अन्य संस्थाओं ने भी इस केेंद्र के प्रयास की सराहना की है.

क्या कहते हैं पीड़ित बच्चे : सियालदह स्टेशन के फुटपाथ पर खाना, सोना आैर नशा करके इधर-उधर लोट जाना ही जिंदगी थी. नशे की ऐसी लत पड़ गयी थी कि हेरोइन नहीं मिलने पर पूरा शरीर ऐंठ जाता आैर दिमाग काम करना बंद कर देता. एक बार तो क्रोध में आकर हाथ की नस काट डाली. उस समय काफी तकलीफ हुई थी.

आज भी वहां कटने के निशान माैजूद हैं. यह कहानी केवल पलटू दास (नाम बदला हुआ) की नहीं, बल्कि ऐसे कई युवाओं व बच्चों की है, जो सियालदह व हावड़ा स्टेशनों पर टाली खींचने, मछली चुराने व कचरा बीनने का काम करते-करते पत्ताखोर बन गये. ऐसे कई युवाओं के हाथ पर कटने के निशान आज भी माैजूद हैं. 14 साल के पप्पू (नाम बदला हुआ) ने बताया कि पिताजी नशा करते थे. इस माहाैल में हेरोइन का नशा करने लग गया. 12 साल के गणेश ने बताया कि हावड़ा स्टेशन पर वह बोतल चुनने का काम करता था. वहीं, पर नशा करना सीखा. कुछ युवाओं ने हेरोइन तो कुछ ने ड्रेंडराइट लेने की बात बतायी. बड़े लड़के टीडीसी इंजेक्शन लेते आैर नशे में चूर हो जाते. नशे की गिरफ्त से इन युवाओं को बाहर निकालकर मुक्ति संस्था ने इन्हें जीने का एक नया मकसद दिया है. इन बच्चों ने बताया कि इस संस्था के होम में रहकर वे न केवल शिक्षा से जुड़े बल्कि अपने हुनर को भी पहचान पाये हैं. यहां उन्हें खेलकूद, संगीत, अभिनय, कंप्यूटर ट्रेनिंग व अन्य रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण दी जाती है. वे यहां काफी खुश हैं.

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