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गोरखालैंड: सिलीगुड़ी में एक साथ हल्ला बोलने की तैयारी में मोरचा, सरकार की चिंता बढ़ी

सिलीगुड़ी. अलग गोरखालैंड राज्य के लिए गोरखा जनमुक्ति मोरचा (गोजमुमो) के नेतृत्व में चल रहा आंदोलन 40 दिन का रिकॉर्ड तोड़ चुका है. नाकाबंदी की सारी गैर सरकारी कोशिशों के बावजूद यह आंदोलन एक नयी रणनीति के तहत चल रहा है. खुफिया विभाग के सूत्रों के अनुसार, मोरचा नेतृत्व का लक्ष्य इस बार चारों तरफ […]

सिलीगुड़ी. अलग गोरखालैंड राज्य के लिए गोरखा जनमुक्ति मोरचा (गोजमुमो) के नेतृत्व में चल रहा आंदोलन 40 दिन का रिकॉर्ड तोड़ चुका है. नाकाबंदी की सारी गैर सरकारी कोशिशों के बावजूद यह आंदोलन एक नयी रणनीति के तहत चल रहा है. खुफिया विभाग के सूत्रों के अनुसार, मोरचा नेतृत्व का लक्ष्य इस बार चारों तरफ से सिलीगुड़ी में प्रवेश कर आंदोलन को विस्तार देने का है. इससे मोरचा नेतृत्व एक तीर से दो निशाना साधना चाह रहा है. पहला है, पहाड़ में तैनात सुरक्षा बलों पर दबाव बनाकर उन्हें समतल क्षेत्र की ओर डाइवर्ट करना और साथ ही सिलीगुड़ी शहर में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना. यह रिपोर्ट राज्य सरकार को भी सौंप दी गयी है.
उल्लेखनीय है कि गोजमुमो और गोरखालैंड समर्थक सिलीगुड़ी पर भी अपना दावा करते रहे हैं. हालांकि सिलीगुड़ी शहर की आबादी की सामाजिक संरचना इसके अनुकूल नहीं है. शहर के कई इलाकों में गोरखा समुदाय की उपस्थिति को ही हथियार बनाकर मोरचा अपनी रणनीति को अमली जामा पहनाना चाहता है. गोजमुमो के महासचिव रोशन गिरि ने कहा है कि सिलीगुड़ी गोरखालैंड के प्रस्तावित मानचित्र में ही पड़ता है. इसलिए इस बार इस शहर को केंद्र कर लंबे आंदोलन की योजना बनायी गयी है.
जानकारों का मानना है कि वर्तमान गोरखालैंड राज्य के आंदोलन को मोरचा के पूर्व सैनिक संगठन की ओर से न सिर्फ सक्रिय सहयोग दिया जा रहा है, बल्कि आंदोलन की रणनीति बनाने में भी इस बार उनकी अहम भूमिका है. मिसाल के तौर पर फिलहाल जिस तरह से मोरचा ने सिलीगुड़ी शहर के चारों तरफ मोरचाबंदी की रणनीति पर काम करने की योजना बनायी है, उससे इस अनुमान को बल मिलता है. खुफिया सूत्रों के अनुसार, सिलीगुड़ी शहर के आसपास के क्षेत्रों जैसे सुकना, मिलन मोड़, खोलाचंद फाफड़ी, खपरैल मोड़ में मोरचा के नेताओं ने हाल में बैठक कर अपनी रणनीति बनायी है. इसके तहत सिलीगुड़ी के चारों ओर एक साथ आंदोलन कर महानगर में प्रवेश करने की तैयारी है. सूत्र के मुताबिक इस रणनीति को अमली जामा पहनाने के लिए कार्यकर्ताओं के साथ बड़ी संख्या में समर्थक पहाड़ से सिलीगुड़ी की ओर रवाना हो चुके हैं. पुलिस विभाग के मुताबिक यदि सिलीगुड़ी में चारों तरफ से आंदोलनकारी शहर में प्रवेश करने लगते हैं तो उन्हें रोकना सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस के सामने एक कठिन चुनौती होगी.

इसके लिए पहाड़ से फोर्स को यहां लाना पड़ेगा. इससे पहाड़ पर सुरक्षा व्यवस्था कमजोर पड़ सकती है. संभवत: मोरचा नेतृत्व यही चाह भी रहा है ताकि पहाड़ में आंदोलनकारियों पर सुरक्षा बल का दबाव कम हो. मोरचा शिवमंदिर में निकाली जाने वाली रैली में हजारों छात्र-छात्राओं को शामिल करने की योजना बना रहा है. इस मुहिम को रोकने के लिए पुलिस ने बागडोगरा के पानीघाटामोड़ में निगरानी बढ़ा दी है. वहीं मोरचा ने पानीघाटा इलाके में जुलूस नहीं निकाल कर शिवमंदिर में जमा होने के निर्देश अपने समर्थकों को दिये हैं.

पुलिस विभाग के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया है कि आंदोलन को तीव्र कर मोरचा अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता है. जबकि पहाड़ के आंदोलन को देखते हुए डिप्टी कमिश्नर सहित मेट्रोपोलिटन पुलिस के कई शीर्ष अधिकारी पहाड़ों में तैनात हैं. पुलिस विभाग के सामने यह संकट है कि वह पहाड़ में सुरक्षा व्यवस्था कायम रखते हुए सिलीगुड़ी पर होने वाले असर को किस तरह रोक सके. उल्लेखनीय है कि हाल ही में सुकना में मोरचा समर्थकों की पुलिस से भिड़ंत और नक्सलबाड़ी के साथ जयगांव जैसे अंतरराष्ट्रीय सीमावर्ती शहर में आंदोलन को तेज कर मोरचा ने अपनी छापामार शैली का ही संकेत दिया है. कई जानकारों का यह भी मानना है कि बंगाल सरकार की सुरक्षा व्यवस्था में गोरखा फोर्स ही मुख्य शक्ति हुआ करती थी. लेकिन गोरखालैंड राज्य के आंदोलन ने राज्य सरकार के सामने अपने अन्य विकल्पों पर निर्भर रहने की बाध्यता ला दी है.

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