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आदिवासी विकास परिषद गोरखालैंड के विरोध में उतरा

सिलीगुड़ी. आदिवासी विकास परिषद ने सरे आम अलग राज्य गोरखालैंड की मांग का विरोध किया है. जहां आंदोलनकारी संगठन गोजमुमो ने गोरखालैंड के अंतर्गत पूरे डुआर्स को शामिल करने की मांग की है. वहीं डुआर्स में बसी संख्या में सबसे बड़ी जाति आदिवासियों ने गोरखालैंड को स्वीकारने से साफ इनकार कर दिया है. सिलीगुड़ी गेस्ट […]

सिलीगुड़ी. आदिवासी विकास परिषद ने सरे आम अलग राज्य गोरखालैंड की मांग का विरोध किया है. जहां आंदोलनकारी संगठन गोजमुमो ने गोरखालैंड के अंतर्गत पूरे डुआर्स को शामिल करने की मांग की है. वहीं डुआर्स में बसी संख्या में सबसे बड़ी जाति आदिवासियों ने गोरखालैंड को स्वीकारने से साफ इनकार कर दिया है.

सिलीगुड़ी गेस्ट हाउस में एक बैठक कर आदिवासी विकास परिषद ने आंदोलनकारियों का खुलकर सामना करने का ऐलान किया है. गोरखालैंड के विरूद्ध आदिवासियों के हुंकार से गोजमुमो को बड़ा झटका लगा है. ग?????ौरतलब है कि गोरखा जनमुक्ति मोरचा अलग राज्य गोरखालैंड के तहत दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, कर्सियांग, मिरिक व डुआर्स के कुछ इलाका सहित सिलीगुड़ी के महानंदा नदी के इस पार तक का इलाका मांग रहे हैं. लेकिन डुआर्स में आदिवासियों की जनसंख्या काफी अधिक है. आदिवासियों ने गोरखालैंड के विरोध में सड़क पर उतरने की धमकी भी दी है.

सोमवार को आदिवासी विकास परिषद ने सोमवार को सिलीगुड़ी गेस्ट हाउस में एक बैठक कर गोरखालैंड का पुरजोर विरोध करने का निर्णय लिया है.बैठक के बाद आदिवासी विकास परिषद के नेता बिरसा तिर्की ने बताया कि पहाड़ के 398 मौजा को लेकर बनायी गयी गोरखा क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के समय से ही आदिवासी विकास परिषद गोरखालैंड का विरोध करती आ रही है. कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश श्यामल सेन के नेतृत्व में गठित कमिटी के सामने भी आदिवासियों ने गोरखालैंड का विरोध किया था. श्री तिर्की ने साफ कहा कि तराई व डुआर्स की एक इंच जमीन भी नहीं छोरी जायेगी. आंदोलन का प्रभाव समतल पर पड़ रहा है. पहाड़ बंद का गहरा असर चाय उद्योग पर हुआ है. चाय श्रमिक भी प्रभावित हो रहे हैं. श्री तिर्की ने तीखे स्वर में कहा कि आदिवासियों की संस्कृति पर आंच कतई बरदाश्त नहीं किया जायेगा.

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