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महाश्रमणजी के सान्निध्य में समण संस्कृति संकाय का दीक्षांत समारोह

कोलकाता : श्रमण परंपरा के संवाहक आचार्य श्री महाश्रमणजी के पावन सान्निध्य में एवं समण संस्कृति संकाय जैन विज्ञान भारती लाडनूं के तत्वावधान में त्रिदिवसीय 19वां जैन विद्या दीक्षान्त समारोह, अष्टम प्रभारी, आंचलिक संयोजक केंद्र व्यवस्थापक कार्यशाला एवं प्रथम विज्ञ उपाधि अधिवेशन आयोजित हुआ. समारोह के प्रथम दिन विज्ञ उपाधि धारकों एवं अधिवेशन में उपस्थित […]

कोलकाता : श्रमण परंपरा के संवाहक आचार्य श्री महाश्रमणजी के पावन सान्निध्य में एवं समण संस्कृति संकाय जैन विज्ञान भारती लाडनूं के तत्वावधान में त्रिदिवसीय 19वां जैन विद्या दीक्षान्त समारोह, अष्टम प्रभारी, आंचलिक संयोजक केंद्र व्यवस्थापक कार्यशाला एवं प्रथम विज्ञ उपाधि अधिवेशन आयोजित हुआ.
समारोह के प्रथम दिन विज्ञ उपाधि धारकों एवं अधिवेशन में उपस्थित सभी भाई-बहनों को पूज्य प्रवर ने उद्बोधन देते हुए फरमाया कि शिक्षा के अभाव में कोई भी राष्ट्र, समाज या व्यक्ति विकास नहीं कर सकता. ज्ञानाराधना उत्तम साधना है. व्यक्ति ज्ञान और पुरुषार्थ के द्वारा आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर आगे बढ़े. विवेकपूर्ण पुरुषार्थ सही दिशा में हो तो निष्पत्ति हो सकती है. पुरुषार्थशील व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है. सिर्फ भाग्य भरोसे नहीं रहना चाहिए, परिश्रमशील रहे. आलस्य और प्रमाद में समय व्यर्थ न गवाएं. यह सफलता का सूत्र है.
पुरुषार्थ करने पर भी सिद्धि न मिले तो इसे नियति मानना चाहिए. हमारा पुरुषार्थ पापकर्म का बन्ध करवाने वाला न होकर निर्जरा कराने वाला होना चाहिए. शरीर को ज्यादा सुविधाभोगी नहीं बनाना चाहिए. साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने त्याग तपस्या करने की व चतुर्मास से पूर्व तेले की तपस्या करने की प्रेरणा दी.
जैन विश्वभारती के अध्यक्ष रमेशजी बोहरा ने आचार्य प्रवर के प्रति अभिवंदना की और अपने विचार प्रस्तुत किए. समण संस्कृति संकाय के विभागाध्यक्ष मालचंदजी बैंगानी ने पूज्य प्रवर के समक्ष संस्था की गतिविधिओं की जानकारी दी. जैन विद्या परीक्षा का नौ वर्षीय पाठ्यक्रम निर्धारित है. अब तक 272 स्थायी केन्द्र हो चुके है.
प्रति वर्ष 300 से 350 केंद्र से हजारों की संख्या में प्रतिभागी इन परीक्षाओं के माध्यम से संस्कार निर्माण की दिशा में अग्रसर होते हैं. समण संस्कृति संकाय का उद्देश्य है बाल पीढ़ी एवं सभी आयुवर्ग के भाई-बहनों को जैन धर्म के सिद्धांत, तत्वविद्या, दर्शन, मान्यताओं, परंपराओं व आदर्शों से परिचित करवाना जैन विद्वान तैयार करना. सामाजिक, आध्यात्मिक व व्यवहारिक स्तर पर सद्संस्कारों का विकास हो एवं सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास के साथ साथ नैतिक मूल्यों एवं बौद्धिक विकास भी हो.
समारोह में पूर्ण सहयोग हेतु आचार्य श्री महाश्रमण चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के प्रति आभार व्यक्त किया गया. संयोजक निलेश बैद ने कार्यक्रमों की जानकारी दी.

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