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छत से रिसाव, कभी भी हादसे की आशंका

मेयर जितेंद्र तिवारी ने पत्र लिख कर ध्यान आकृष्ट कराया अड्डा का मरम्मत के लिए एक सप्ताह तक का लेना होगा शट डाउन जलापूर्ति का आसनसोल : आसनसोल शहर की छह लाख आबादी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार की जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रीन्यूअल मिशन के तहत 90 करोड़ की लागत […]

मेयर जितेंद्र तिवारी ने पत्र लिख कर ध्यान आकृष्ट कराया अड्डा का
मरम्मत के लिए एक सप्ताह तक का लेना होगा शट डाउन जलापूर्ति का
आसनसोल : आसनसोल शहर की छह लाख आबादी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार की जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रीन्यूअल मिशन के तहत 90 करोड़ की लागत से बने व दस एमजीडी क्षमता के डीहिका वाटर प्रोजेक्ट का निर्माण किया गया है. दामोदर नदी किनारे स्थित वाटर प्रोजेक्ट का फिल्टर बेड क्लीनिंग रिजर्बर छत से सटे बना दिया गया है.
इसके कारण छत से जल का रिसाव होने लगा है. अधिकारियों के अनुसार जल रिसाव गलत सूचक है तथा कभी भी बड़े हादसे का कारण बन सकता है. इस परियोजना का संचालन कर रहे आसनसोल नगर निगम के प्रमुख मेयर जितेन्द्र तिवारी ने इसकी शिकायत इसका निर्माण करनेवाली नोडेल एजेंसी आसनसोल दुर्गापुर विकास प्राधिकार (अड्डा) से की है.
कोयलांचल में आमतौर पर केंद्रीय योजनाओं का क्रियान्वयन राज्य सरकार इसके लिए गठित नोडेल एजेंसी अड्डा से कराती है. इसी के तहत महत्वाकांक्षी परियोजना डीहिका वाटर प्रोजेक्ट के निर्माण का दायित्व अड्डा को मिला था. वर्ष 2009 से इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ था.
28 मई, 2015 को इसे आसनसोल नगर निगम को सौंप दिया गया. हालांकि आसनसोल नगर निगम की आवश्यकता को देखते हुए वर्ष 2013 से ही इस परियोजना से नगर निगम को फेजवाइज जलापूत्तर्ि शुरू कर दी गयी थी. इस परियोजना के तहत नदी बेड में बने इनटेक बेल (कुआं) से पांच पंपों के माध्यम से नदी का पानी नदी किनारे बने फिल्टर प्लांट में लाया जाता है.
वहां से सात पंपों के माध्यम से इसे शहर के विभिन्न क्षेत्रों में भेजा जाता है. अधिकारियों के अनुसार इस प्रोजेक्ट में फिल्टर बेड क्लीनर रिजर्बर प्लांट की छत पर ही बना दिया गया है. आमतौर पर छत पर किसी भी रिजर्बर को नहीं बनाया जाता है. यहां तक कि आवास पर पानी की टंकी रखते समय भी उसे किसी पाये पर रखा जाता है ताकि उससे रिसाव होने पर छत को कोई संकट न हो.
लेकिन इस प्लांट में छत पर ही रिजर्बर बना दिया गया है. इसके कारण इसकी छत से पानी का रिसाव शुरू हो गया है. इसके अधिकारियों व कर्मचारियों को भय है कि यदि पानी का रिसाव बढ़ गया तो कभी भी छत धंस जायेगी तथा एक बड़ा हादसा हो सकता है.
इस कारण कार्य करते समय कर्मी हमेशा आतंकित रहते हैं. मेयर श्री तिवारी ने अड्डा को लिखे पत्र में इस तकनीकी पहलू का जिक्र किया है. उन्होंने इसके समाधान के लिए पहल करने का आग्रह किया है. अधिकारियों के अनुसार इस प्लांट का निर्माण टर्की अनुबंध के आधार पर दीप्ति कंस्ट्रक्शन ने किया था. अनुबंध के अनुसार उक्त कंपनी को इसकी डिजाइन करने तथा उसका निर्माण करने का अधिकार था. उसी ने छत पर रिजर्बर बनाने का निर्णय लिया था. उक्त कंपनी की देख रेख लोक स्वास्थ्य व अभियंत्रण विभाग (पीएचइडी) के पूर्व अधिकारी एसके भंजन कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि इस प्लांट के निर्माम कार्य के दौरान अभियंताओं की संयुक्त टीम नियमित रूप से निर्माण कार्य का निरीक्षण, समीक्षा व प्रगति की जांच कर रही थी. इसमें कोलकाता म्यूनिसिपल डेवलपमेंट ऑथोरिटी (केएमडीए) के स्तर से थर्ड पार्टी के रूप में पीएमयू, अड्डा के स्तर से थर्ड पार्टी के रूप में भायंस सोल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड, पीएचइडी व आसनसोल नगर निगम के अभियंता शामिल थे. सभी चार विभागों के विशेषज्ञ अभियंताओं की टीम ने इस कार्य की देख रेख की.
निर्माण के समय किसी भी अभियंता ने छत पर बन रहे रिजर्बर पर आशंका नहीं जतायी थी. उन्होंने कहा कि इस समय कोई भी अभियंता यह नहीं कह सकता कि छत कभी नहीं धंसेगी या छत कभी भी धंस जायेगी. रिजर्बर बनाते समय किस तकनीक व मिक्चर का उपयोग किया गया है, उसकी क्षमता क्या है, इसकी जांच कठिन प्रक्रिया है.
अड्डा अधिकारी स्वीकार करते हैं कि छत से पानी का रिसाव गंभीर बात है तथा इसे रोका जाना चाहिए. इसके लिए रिजर्बर की नियमित सफाई भी जरूरी है. लेकिन आमतौर पर इस रिजर्बर के निर्माम के बाद इसकी कभी भी सफाई नहीं की गयी है.
सफाई नहीं होने से छत पर मिट्टी व अन्य सामग्रियों का जमा होना जारी है. इससे भी पानी का बहाव प्रभावित होता है. उन्होंने कहा कि अगर आसनसोल नगर निगम के अधिकारी ‘शट डाउन’ लें तो संयुक्त रूप से अभियंताओं के नेतृत्व में इस रिजर्बर की मरम्मत की जा सकती है. इसके लिए कम से कम एक सप्ताह तक जलापूर्ति रोकनी होगी.

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