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आसनसोल को मिला पहला हिंदीभाषी मेयर

आसनसोल : आसनसोल नगर निगम के मेयर पद पर जितेंद्र तिवारी के शपथ ग्रहण के साथ ही निगम को पहला हिंदीभाषी मेयर मिला व नगर निगम के इतिहास का नया अध्याय शुरू हुआ. नगर निगम के एक्जिक्यूिटव हॉल में जिलाशासक डॉ सौमित्र मोहन ने उन्हें पद व गोपनीयता की शपथ दिलायी. उनके साथ ही नगर […]

आसनसोल : आसनसोल नगर निगम के मेयर पद पर जितेंद्र तिवारी के शपथ ग्रहण के साथ ही निगम को पहला हिंदीभाषी मेयर मिला व नगर निगम के इतिहास का नया अध्याय शुरू हुआ. नगर निगम के एक्जिक्यूिटव हॉल में जिलाशासक डॉ सौमित्र मोहन ने उन्हें पद व गोपनीयता की शपथ दिलायी.
उनके साथ ही नगर निगम के चेयरमैन के पद पर अमरनाथ चटर्जी व उपमेयर के पद पर तब्बसुम आरा ने भी शपथ ली. इन तीनों ने अपने-अपने कक्ष में जाकर प्रभार ग्रहण िकया. इसी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के निदेश के आलोक में 16 अक्तूबर तक चुनाव प्रक्रिया पूरी हो गयी.
क्षेत्र में िहंदीभाषियों का दबदबा
कुल्टी नगरपालिका, जामुड़िया नगरपालिका व रानीगंज नगरपालिका के आसनसोल नगर निगम में विलय के बाद बीते तीन अक्तूबर को 106 वार्डों के लिए चुनाव हुआ था. इसमें तृणमूल को 75, वाम मोरचा को 17, भाजपा को आठ, कांग्रेस को तीन व निर्दल प्रत्याशियों को तीन सीटों पर जीत मिली थी. कोलकाता में तृणमूल पार्षदों की बैठक में तृणमूल सुप्रीमो व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने श्री तिवारी को मेयर, सुश्री आरा को उपमेयर व श्री चटर्जी को चेयरमैन पद के लिए नामित किया था. शुक्रवार को आयोजित समारोह में शपथ ग्रहण के साथ मेयर बनने की प्रक्रिया पूरी हुई. श्री तिवारी के नाम की घोषणा करते हुए सुश्री बनर्जी ने कहा कि आसनसोल सहित पूरे राज्य में हिंदीभाषी मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है. श्री तिवारी के मेयर बनने से उनके बीच बेहतर संदेश जायेगा. उन्होंने चेयरमैन के रूप में पिछले बोर्ड में उनके कार्य की भी प्रशंसा की थी.
िपछली गलती से तृणमूल ने ली सबक
जानकारों की मानें, तो आसनसोल में हिंदीभाषी मतदाताओं के प्रभाव का असर पिछले वर्ष संपन्न हुए संसदीय चुनाव में हुआ था.
आसनसोल संसदीय क्षेत्र से पार्टी ने इसे औद्योगिक क्षेत्र मानते हुए ट्रेड यूनियन नेत्री दोला सेन को प्रत्याशी बनाया था, जबकि भाजपा ने हिंदी व बांग्ला फिल्मों के गायक बाबुल सुपियो को प्रत्याशी बनाया था. चुनाव प्रचार के दौरान कुल्टी में आयोजित सभा में मुख्यमंत्री सुश्री बनर्जी ने हिंदी भाषियों को मेहमान कहते हुए संबोधित किया था. इससे हिंदीभाषी मतदाताओं में काफी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी.
हालांकि बाद में पार्टी नेताओं ने स्पष्ट किया था कि बांग्लाभाषी होने के कारण उनके शब्दों का गलत अर्थ निकाला गया. उनकी नीयत पूरी तरह से साफ थी. लेकिन इसका असर नहीं हुआ. भाजपा प्रत्याशी श्री सुप्रियो को 70 हजार मतों के अंतर से जीत मिली. इसका ठीकरा हिंदीभाषी मतदाताओं के माथे पर फोड़ा गया. इसके बाद जब भी आसनसोल संसदीय क्षेत्र की राजनीति पर चर्चा हुई, केंद्र में हिंदीभाषी मतदाता रहे. पार्टी के महासचिव व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कई बार कहा कि राज्य में भाजपा का कोई प्रभाव नहीं है. गोरखा आंदोलन के कारण दाजिर्लिंग से तथा झारखंड की सीमा पर होने के कारण आसनसोल में भाजपा को जीत मिली. आसनसोल की राजनीति झारखंड से अधिक प्रभावित होती है.
सामने कई चुनौितयां
मेयर बनने के बाद श्री तिवारी के सामने कड़ी चुनौतियां हैं. पार्टी प्रमुख सुश्री बनर्जी उनसे कुशल प्रशासन की अपेक्षा रखती हैं, जबकि पार्टी की अपेक्षा है कि भाजपा के पक्ष में रहे हिंदीभाषी मतदाताओं को तृणमूल के साथ मजबूती से जोड़ा जाये. इसके साथ ही हिंदीभाषी नागरिकों की अपेक्षा है कि वह उनकी लंबित समस्याओं का समाधान तत्परता से करे. उनके मेयर बनने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं के एक खेमे में काफी नाराजगी है, उसे भी दूर करने की चुनौती है.

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