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कालिम्पोंग : पहाड़ पर टूटी बड़ी इलायची किसानों की कमर

कालिम्पोंग : एक तो अलग गोरखालैंड राज्य आंदोलन के कारण साढ़े तीन महीने तक पहाड़ बंद और ऊपर से पाकिस्तान के साथ रिश्ते में खटास ने कालिम्पोंग एवं दार्जिलिंग पहाड़ के बड़ी इलायची किसानों की कमर तोड़ दी है. दार्जिलिंग तथा कालिम्पोंग के विभिन्न स्थानों पर भारी मात्रा में बड़ी इलायची की खेती होता है. […]

कालिम्पोंग : एक तो अलग गोरखालैंड राज्य आंदोलन के कारण साढ़े तीन महीने तक पहाड़ बंद और ऊपर से पाकिस्तान के साथ रिश्ते में खटास ने कालिम्पोंग एवं दार्जिलिंग पहाड़ के बड़ी इलायची किसानों की कमर तोड़ दी है. दार्जिलिंग तथा कालिम्पोंग के विभिन्न स्थानों पर भारी मात्रा में बड़ी इलायची की खेती होता है. इलायची को कैश क्रॉप यानि तत्काल कमाई कराने वाला माना जाता है. यही कारण है कि किसान बैंक से केसीसी लोन लेकर खेती करते है.

बाद में इलायची बेच कर लोन की रकम चुकाते हैं.अब स्थिति बदलती दिख रही है. किसानों की हालत काफी खराब हो चुकी है. बड़ी इलायची के दाम कम हो जाने पर मुनाफा कमाना तो दूर लोन चुकाना भी मुश्किल है. आलम यह है किसान 500 रुपये प्रति किलो या उससे भी कम में इलायची बेचने को मजबूर हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार पहाड़ में 4 हजार हेक्टेयर जमीन पर बड़ी इलायची की खेती होती है. करीब 8 से 10 हजार छोटे एवं मझोले किसान इस खेती से जुड़े हुए हैं. पहाड़ पर हर साल लगभग 1100 टन बड़ी इलायची का उत्पादन होता है. वर्ष 2015 में पहाड़ पर एक किलो बड़ी इलायची की कीमत करीब 2400 रुपये थी.

अब यह घटकर 500 रुपये प्रति किलो रह गयी है. बड़ी इलायची का सबसे ज्यादा आयात करनेवाला देश पाकिस्तान है. पिछले साल दोनों देशों के रिश्ते में खटास ने इलायची व्यापार को बंद कर दिया है. पाकिस्तान से कारोबार बंद होने के कारण ही इस साल बड़ी इलाइची की कीमत 1600 रुपये प्रति किलो तक आ गयी है. लेकिन अब हाल इतने बुरे हैं कि बड़ी इलायची 500 रुपये प्रति किलो के भाव में किसान बेचने को मजबूर हैं. इलायची की खेती में अच्छा मुनाफा होने के कारण किसान बैंक से लोन लेकर भी इसकी खेती करते हैं. इलायची तैयार है, लेकिन कोई खरीदनेवाला नहीं है. सभी किसानों के पास पर्याप्त स्टॉक है.

जो इलायची बिक रही है उसे स्थानीय दुकानदार ही खरीद रहे हैं. दुकानदार खुदरा बाजार में 1000 से 1600 रुपये प्रतिकिलो पर इसको बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं, जबकि किसान बेहाल हैं. यहां के इलायची किसानों का कहना है कि जिस प्रकार से चाय बेचने के लिए नीलाम केंद्र बने हैं इसी तरह से इलायची के लिए भी नीलाम केंद्र होने चाहिए. चाय की तरह इलायची के लिए भी ई-ऑक्शन केंद्र होना चाहिए.

कालिम्पोंग कृषक कल्याण संगठन ने इस समस्या को देश के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री मंत्री के साथ ही संबंधित विभागों के सामने उठाया है. संगठन के सचिव विष्णु छेत्री ने बताया कि केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु से हाल ही में उन्होंने मुलाकात की थी और बड़ी इलायची के लिए राष्ट्रीय ई-ऑक्शन केंद्र बनाने की मांग की थी. ऐसा होने पर किसान बिचौलिये के हाथों नहीं पड़ेंगे और उनको फसल की उचित कीमत मिल सकती है. दूसरी ओर मसाला बोर्ड की कालिम्पोंग शाखा की कुछ अलग ही सोच है.
यहां के अधिकारी डी बर्मन ने कहा कि दार्जिलिंग पहाड़ एवं सिक्किम से अधिक बड़ी इलायची की खेती अब पूर्वोत्तर के नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश आदि राज्यों में होने लगी है. वहां इलायची को पौधे से निकालने के बाद सुखाने की प्रक्रिया भी आसान है. जबकि पहाड़ के किसान आग पर इलायची सुखाते हैं. यह पारंपरिक प्रक्रिया है. इसको सुधारने की जरूरत है. आग के कारण गुलाबी रंग की इलायची काले रंग की हो जाती है. इतना ही नही इलायची में धुएं की भी गंध आती है. इससे इलायची पर कार्बन जम जाता है.

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