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अयोध्या के युवाओं ने कहा, सियासी दलों ने की दुर्दशा की अनदेखी

अयोध्या : देश की राजनीति को नयी करवट देने वाली धार्मिक नगरी अयोध्या के जमीनी हालात में करीब 25 साल बाद भी कोई खास तब्दीली नहीं आयी है. धर्म को लेकर कलह के बजाय विकास की ख्वाहिश रखने वाले यहां के युवा अब भी रोजगार के लिये दूसरे शहरों में जाने को मजबूर हैं. आगामी […]

अयोध्या : देश की राजनीति को नयी करवट देने वाली धार्मिक नगरी अयोध्या के जमीनी हालात में करीब 25 साल बाद भी कोई खास तब्दीली नहीं आयी है. धर्म को लेकर कलह के बजाय विकास की ख्वाहिश रखने वाले यहां के युवा अब भी रोजगार के लिये दूसरे शहरों में जाने को मजबूर हैं.

आगामी छह दिसंबर को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराये जाने के 25 साल हो जायेंगे. यहां के अनेक युवाओं का मानना है कि इस धार्मिक नगरी में आस्था को लेकर जोर-आजमाइश की व्यस्तता में विकास कहीं पीछे छूट गया है. विभिन्न राजनीतिक दलों ने यहां से लिया तो बहुत कुछ, लेकिन इसके लिये किया कुछ नहीं. यही कारण है कि अयोध्या में कभी विकास की राजनीति नहीं हुई.

बी-काम के छात्र अमन कुमार सिंह का मानना है कि देश की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने अयोध्या में धर्म की सियासत के लिये विकास की राजनीति को तिलांजलि दे दी. सभी दलों ने अयोध्या की तरक्की के बजाय उसकी विवादित शिनाख्त को अपने-अपने हिसाब से चुनावी मुद्दा बनाया.

अमन के सहपाठी अंशू यादव ने कहा कि फैजाबाद जिले में स्थित अयोध्या में युवाओं के लिये ना तो बेहतर शिक्षण संस्थान हैं और ना ही रोजगार के अवसर. नौजवानों को उच्च शिक्षा तथा प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी के लिये लखनऊ, इलाहाबाद या वाराणसी का रख करना पड़ता है.

पौराणिक महत्व वाली नगरी अयोध्या, 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन तेज होने के बाद देश की राजनीति का प्रमुख केंद्र बन गयी थी. सोलहवीं शताब्दी में निर्मित विवादास्पद ढांचे के भगवान राम का जन्मस्थान होने को लेकर अदालत में चली लड़ाई अचानक सियासी फलक पर बहुत तेजी से फैली. बाद में छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे को ढहा दिया गया. इस घटना से व्यापक हिंसा फैली और दो समुदायों के बीच नफरत की खाई और चौड़ी हो गयी.

हालांकि वक्त के मरहम ने अयोध्या के सांप्रदायिक सौहार्द के ताने-बाने के घावों को भर दिया और सितंबर 2010 को रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के निर्णय के वक्त भी यहां कोई तनाव नजर नहीं आया.

फैजाबाद के गोसाईंगंज के रहने वाले आदेश शुक्ला का मानना है कि अयोध्या के विवाद ने इस नगरी के विकास संबंधी तमाम मुद्दों को ना सिर्फ ढक लिया बल्कि हाईजैक कर लिया. अयोध्या और फैजाबाद में स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है. यहां के लोग अपने मरीजों को इलाज के लिये लखनऊ ले जाना बेहतर समझते हैं.

हालांकि हाल के महीनों में अयोध्या एक बार फिर चर्चा का केंद्र बनी, जब प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस धार्मिक नगरी में भव्य तरीके से दीपावली का त्यौहार मनाया. शुक्ला ने कहा कि यहां के युवाओं को मंदिर-मस्जिद विवाद से खास सरोकार नहीं है. अगर अयोध्या में विकास को केंद्रीय मुद्दा बनाया जाए और राज्य सरकार सहयोग करे तो इससे नगर की छवि बदलने में मदद मिलेगी.

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