कानपुर : दशहरे पर यूं तो पूरे देश में अच्छाई पर बुराई की विजय के रुप में भगवान राम की पूजा हो रही है. लेकिन कानपुर के शिवाला इलाके में एक मंदिर ऐसा है, जहां शक्ति के प्रतीक के रुप में आज रावण की पूजा होती है.‘दशानन मंदिर’ के दरवाजे साल में केवल एक बार दशहरे के दिन ही सुबह नौ बजे खुलते हैं और मंदिर में लगी रावण की मूर्ति का श्रृंगार किया जाता है और उसके बाद रावण की आरती उतारी जाती है तथा शाम को दशहरे में रावण के पुतला दहन के पहले इस मंदिर के दरवाजे एक साल के लिये बंद कर दिये जाते है.
मंदिर में होने वाले समस्त कार्यक्रमों के संयोजक केके तिवारी ने आज ‘भाषा’ को बताया कि शहर के शिवाला इलाके में कैलाश मंदिर परिसर में मौजूद विभिन्न मंदिरों में भगवान शिव मंदिर के पास ही लंका के राजा रावण का मंदिर है. यह मंदिर करीब 123 साल पुराना है और इसका निर्माण महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था.उनका दावा है कि शाम तक रावण के इस मंदिर में करीब 15 हजार श्रद्धालु रावण की पूजा, अर्चना करने आयेंगे. तिवारी बताते है कि इस मंदिर को स्थापित करने के पीछे यह मान्यता थी कि रावण प्रकांड पंडित होने के साथ साथ भगवान शिव का परम भक्त था. इसलिये शक्ति के प्रहरी के रुप में यहां कैलाश मंदिर परिसर में रावण का मंदिर बनाया गया था. तिवारी दावा करते है कि शिवाला इलाके के इस दशानन मंदिर के अलावा देश में कही भी रावण का मंदिर नहीं है.
उन्होंने बताया कि आज दशहरे के दिन सुबह नौ बजे इस मंदिर के विशालकाय द्वार खोले गये उसके बाद पुजारी ने इस मंदिर में रावण की मूर्ति की सफाई की तथा मूर्ति का श्रृंगार किया. इसके बाद रावण की आरती हुई और उसके बाद से भक्तों का आगमन शुरु हो गया. वह बताते है कि भक्तगण रावण की आरती के बाद सरसो के तेल का दीपक जलाकर अपने परिवार पर आने वाली मुसीबतों को दूर करने और उनकी रक्षा करने की प्रार्थना करेंगे तथा मन्नतें भी मान रहे है.तिवारी कहते है कि पिछले करीब 122 सालों से रावण की पूजा की परंपरा का पालन हो रहा है. कैलाश मंदिर परिसर में भगवान शिव का मंदिर भी है इसलिये शिव की पूजा को आने वाले भक्तगण महादेव की पूजा के बाद रावण के मंदिर में पूजा अर्चना करते है और शिव भक्ति का आर्शीवाद मांगते है. वह कहते है कि उन्हें उम्मीद है कि शाम तक करीब 15 हजा श्रद्धालू रावण के दर्शन कर पूजा अर्चना करेंगे.