।।राजेन्द्र कुमार।।
लखनऊः गोवा के एक होटल में बार बाला के साथ रंगरलियां मनाते पकड़े गए समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक महेंद्र कुमार सिंह ऊर्फ झीन बाबू का कारनामा पार्टी के लिए शर्मिंदगी की वजह बन गया है. सभी विपक्षी दलों झीन बाबू के इस कारनामें को शर्मनाक बताते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पार्टी से निकालने और अन्य दलों के ऐसे विधायकों पर नजर रखने की सलाह दी है. अखिलेश यादव ने भी इस मामले में तेजी दिखाते हुए झीन बाबू को पार्टी से निलबिंत कर दिया . इसके अलावा उन्होंने सीतापुर के विधायक राधेश्याम जायसवाल और बछरावां (रायबरेली) के विधायक रामलाल अकेला को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निलबिंत करने का निर्णय लेकर पार्टी पर लगे दाग को धोने का प्रयास किया है.
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निर्देश पर सपा के तीन विधायकों के खिलाफ की गई इस कठोर कार्रवाई के बाद क्या सूबे के विधायक अब झीन बाबू की तरह का कोई आपराधिक कृत्य नहीं करेंगे ? यह गारंटी देने को विपक्ष और सत्ता पक्ष के प्रमुख नेता तैयार नहीं हैं. जिस तरह से बीते कुछ वर्षो में सूबे की राजनीति का अपराधीकरण हुआ है, उसे देखते हुए ऐसी गारंटी देना किसी भी राजनीतिक दल के लिए संभव नहीं है. झीन बाबू ऐसी ही सियासत की उस विष वेल की संतति बताए जा रहे हैं, जिसके बीज यूपी की सियासी जमीन पर वर्ष 1977 में बोये गए थे. तब कांग्रेस ने कुछ दबंगों को टिकट देकर राजनीति में प्रवेश कराया था. अपने बाहुबल के बूते जीते ऐसे लोगों ने शुरू में थोड़ा संकोच रखा, लेकिन 80 का दशक खत्म होते -होते दबंग राजनीतिज्ञों के मन से अपराधियों को लेकर संकोच क्या टूटा. अब हर राजनीतिक दल ऐसे लोगों को गले लगाने में पीछे नहीं है. परिणाम स्वरूप अपराध और दबंगई की सियासत का कड़वा सच गोवा में बार बाला के साथ पकड़े गए सपा विधायक झीन बाबू के रूप में सभी के सामने आ गया है.
सीतापुर के सेवता सीट से लगातार चार बार से चुनाव जीत रहे झीन बाबू अभी तक किसी भी बड़े अपराधिक मामले में नहीं फंसे थे. क्षेत्र में उन्हें राजनीतिक परिवार से जुड़ा शरीफ व्यक्ति माना जा रहा है. सरकारी ठेका दिलाने और पैसा लेकर तबादला कराने का आरोप भी उन पर नहीं लगा. शराब पीकर मस्ती करने में उन्हें संकोच जरूर नहीं होता था. जिसके चलते ही वह गोवा गये और उनका एक सच समाज के सामने आया. यूपी विधानसभा की लाइब्रेरी में कार्य कर चुके केएम श्रीवास्तव बताते हैं कि 1977 से 1985 के बीच पूर्वाचल के कई दबंग विधानसभा पहुंचे, लेकिन वे सदन में अलग-थलग रहते थे और बाकी विधायक इनसे बातचीत करने में भी परहेज करते थे. यह लिहाज 1989 के बाद कम होने लगा और अब तो स्थिति ठीक उल्टी है. सत्तारूढ़ दल दागियों को मंत्रिपद देने में भी संकोच नहीं करते. जिसके चलते ही झीन बाबू और मुख्तार अंसारी जैसे नेता लगातार चुनाव जीतते हैं.
झीन बाबू के कारनामें को शर्मनाक बताने वाले भाजपा प्रवक्ता विजय पाठक कहते हैं कि वर्तमान विधानसभा में 189 विधायकों के खिलाफ मुकदमें दर्ज हैं. इनमें 98 ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराधों के मुकदमें चल रहे हैं. बीते विधानसभा में ऐसे दागी विधायकों की संख्या 155 थी. जनता ने इस बार जिन दागियों को विधानसभा भेजा, उनमें बसपा के 29, सपा के 111, भाजपा के 25 और कांग्रेस के 13 माननीय शामिल हैं. इतने दागी माननीयों के रहते यह लोग कोई उत्पात नहीं मचाएंगे, यह विश्वास करना संभव ही नहीं है. यदि सरकार ऐसे माननीयों के खिलाफ सख्ती करेगी तब ही यह लोग कानून को मानेंगे अन्यथा कानून को ठेंगे पर रखते हुए यह अपनी मनमानी करते हुए पार्टी नेतृत्व के लिए धर्मसंकट खड़ा करते रहेंगे.