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पश्चिम सिंहभूम जिले में अभी तक नहीं पहुंच पाया है माहवारी स्वच्छता कार्यक्रम

– रजनीश आनंद- भारत एक ऐसा देश है, जहां माहवारी पर चर्चा प्रतिबंधित है. ग्रामीण क्षेत्रों की बात तो दीगर है, शहरी क्षेत्रों की पढ़ी-लिखी महिलाएं और किशोरियां भी इस विषय पर बात करने से बचती हैं. परिणाम यह होता है कि जब किशोरियां और महिलाएं माहवारी संबंधित समस्याओं से ग्रसित रहती हैं, तो वे […]

– रजनीश आनंद-

भारत एक ऐसा देश है, जहां माहवारी पर चर्चा प्रतिबंधित है. ग्रामीण क्षेत्रों की बात तो दीगर है, शहरी क्षेत्रों की पढ़ी-लिखी महिलाएं और किशोरियां भी इस विषय पर बात करने से बचती हैं. परिणाम यह होता है कि जब किशोरियां और महिलाएं माहवारी संबंधित समस्याओं से ग्रसित रहती हैं, तो वे तब तक उसके बारे में किसी से नहीं बताती हैं, जब तक कि वह बीमारी या बड़ी परेशानी का रूप न ले ले. माहवारी औरतों के शरीर में होने वाली एक जैविक प्रक्रिया है, इसलिए इसमें छुपाने जैसी कोई चीज नहीं है. लेकिन भारतीय समाज कई तरह की भ्रांतियों से जकड़ा है, झारखंड का आदिवासी समाज तो भ्रांतियों के साथ-साथ अंधविश्वास का भी शिकार है. जिसके कारण आदिवासी समाज की महिलाएं कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित हैं. झारखंड का पश्चिम सिंहभूम जिला इसका उदाहरण है.
महिलाओं की समस्याओं को देखते हुए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं और संगठनों ने माहवारी से जुड़ी भ्रांतियों और अंधविश्वासों को मिटाने का बीड़ा उठाया है. जिनमें प्रमुख हैं यूनिसेफ, महिला सामाख्या, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन औरएफएक्सबी सुरक्षा.

माहवारी से जुड़ी भ्रांतियों को मिटाने और स्वच्छता के प्रति महिलाओं को जागरूक करने के प्रयासों में यूनिसेफ दो जिला पलामू और पूर्वी सिंहभूम में, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पांच जिला रांची, हजारीबाग, बोकारो, धनबाद और गिरिडीह में जबकि महिला सामाख्या 11 जिला रांची, खूंटी, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला, गोड्डा, साहिबगंज, गिरिडीह, गढ़वा और चतरा में कार्यरत है.

यूनिसेफ की सोनाली मुखर्जी ने बताया कि माहवारी स्वच्छता से संबंधित उनका कार्यक्रम पूर्वी सिंहभूम(जमशेदपुर) और पलामू में चल रहा है. जहां वे महिलाओं में जागरूकता लाने का प्रयास कर रही हैं. यूनिसेफ का उद्देश्य महिलाओं को यह बताना है कि वे किस तरह से साफ-सफाई से रह सकती हैं. इसके लिए वे महिलाओं को प्रशिक्षित करने का प्रयास करते हैं. जहां महिलाओं को यह बताया जाता है कि वे अगर सेनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करती हैं, तो उसे किस तरह इस्तेमाल करना है और अगर वे कपड़े का प्रयोग करती हैं, तो किस तरह उसका प्रयोग करके वे स्वस्थ रह सकती हैं. महिलाओं को यह भी बताया जाता है कि सेनेटरी नैपकिन को किस तरह नष्ट करना है, ताकि पर्यावरण सुरक्षित रहे. यूनिसेफ की ओर से नैपकिन का वितरण नहीं किया जाता है. यूनिसेफ माहवारी से जुड़ी भ्रांतियों और अंधविश्वासों को मिटाने के प्रयास में भी जुड़ा है और इसके लिए वह अन्य संस्थाओं और कार्यक्रम के साथ जुड़कर भी काम कर रहा है. साथ ही वह ग्रामीण इलाकों में ग्रामीणों के बीच जाकर उनकी समस्याओं से परिचित होकर कार्यक्रमों का निर्माण करता है.
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन भी माहवारी स्वच्छता और इससे जुड़ी भ्रांतियों को मिटाने में जुड़ा है. झारखंड में पिछले तीन वर्षों से यह कार्यक्रम संचालित है. झारखंड में इस कार्यक्रम से जुड़ीं रफत फरजाना ने बताया कि हमारा काम जागरूकता से जुड़ा है. साथ ही हम सेनेटरी नैपकिन के इस्तेमाल को बढ़ावा देने में भी जुटे हैं. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन रांची, हजारीबाग, बोकारो, धनबाद और गिरिडीह में अपने कार्यक्रमों को संचालित कर रहा है. कार्यक्रम की शुरुआत के समय वर्ष 2011 में इन पांच जिलों की सहियाओं (आशा) को प्रशिक्षण दिया गया था, ताकि वे ग्रामीण इलाकों में माहवारी स्वच्छता से संबंधित जानकारियां अच्छे से उपलब्ध करा सकें. सरकार की ओर से ग्रामीण इलाकों के कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर को फ्री डेज नाम की सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध करायी जाती है. जिसका वितरण सहिया गांवों में करती है. किशोरियों को यह नैपकिन छह रुपये में उपलब्ध करायी जाती है.

वह आंगनबाड़ी केंद्र, स्कूल और किशोरी मंच की बैठक के जरिये किशोरियों के बीच नैपकिन का वितरण करती है. साथ ही वह किशोरियों को व्यक्तिगत साफ-सफाई की जानकारी भी देती है. सहिया किशोरियों को भ्रांतियों और अंधविश्वासों से दूर रहने की सलाह भी देती है. साथ ही सहिया किशोरियों से उनकी समस्याएं भी जानने का प्रयास करती हैं और उन समस्याओं का समाधान भी करवाती हैं. जिन किशोरियों को सिर्फ काउंसिलिंग की जरूरत होती हैं, उन्हें सलाह दी जाती है और जिन्हें इलाज की जरूरत होती है, उनका इलाज डॉक्टर के जरिये करवाया जाता है. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का यह कार्यक्रम 10-19 वर्ष की किशोरियों के लिए है.

अगर हम सरकारी और गैरसरकारी प्रयासों की समीक्षा करें, तो पायेंगे कि वे केवल जागरूकता का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन यह प्रयास भी काफी सीमित इलाकों में चल रहा है. पश्चिम सिंहभूम(चाईबासा) जिले में केवल महिला सामाख्या काम कर रही है. यूनिसेफ और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन अभी तक इस जिले तक नहीं पहुंच पाया है. जो प्रयास हो रहे हैं, वे शुरुआती दौर में हैं. इन सीमित प्रयासों को विस्तार देने की जरूरत है. साथ ही यह बात भी ध्यान देने वाली है कि ग्रामीण समाज अभी भी कई भ्रांतियों की गिरफ्त में है, जिनसे निकलना इतना सहज नहीं है और माहवारी स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करना दीर्घकालीन टास्क है. पश्चिम सिंहभूम जिले में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है,बावजूद इसके यूनिसेफ और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का कार्यक्रम यहां संचालित नहीं होना भी आश्चर्य का ही विषय है.
(यह आलेख आईएम4चेंज, इंक्लूसिव मीडिया यूएनडीपी फेलोशिप के तहत प्रकाशित है)

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