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भक्तों ने दिखायी हठभक्ति

कुचाई. ढोल-नगाड़ों की थाप पर आग के शोलों पर किया नृत्य खरसावां : चड़क पूजा के समापन पर कुचाई के गुड़गुदरी गांव में शिव भक्तों ने हठ भक्ति पेश की. अपनी मन्नत पूरी होने की खुशी में शिव भक्तों ने पीठ की चमड़ी में छेद कर नुकीले लोहे का कांटा लगा कर लकड़ी के सहारे […]

कुचाई. ढोल-नगाड़ों की थाप पर आग के शोलों पर किया नृत्य
खरसावां : चड़क पूजा के समापन पर कुचाई के गुड़गुदरी गांव में शिव भक्तों ने हठ भक्ति पेश की. अपनी मन्नत पूरी होने की खुशी में शिव भक्तों ने पीठ की चमड़ी में छेद कर नुकीले लोहे का कांटा लगा कर लकड़ी के सहारे हवा में दो चक्कर लगाया.
कई भक्त ने तो ढोल-नगाड़ों की थाप पर जलते आग के शोलों पर नृत्य किया. जबकि कई भक्तों ने बबूल, बेर, बेल के कांटेदार टहनियों को फूलों की सेज समझ कर सोया. कई भक्तों ने लकड़ी के पटरा पर गाड़े गये नुकीले कांटी पर सोकर अपने आराध्य देव से किये हुए वायदे को पूरा किया.
इसे देखने के लिये बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे. मौके पर गांव के शिव मंदिर में पूजा-अर्चना की भी गयी. रुगुडीह मुखिया लखीराम मुंडा के अनुसार भक्ति के इस रुप को भगवान की महिमा मानिएं या एक महज संयोग कि आज तक न तो किसी भक्त को साधारण सेप्टीक जैसी कोई बीमारी हुई है और न ही किसी भक्त ने चमड़े में हुक लगाने के दौरान हुई घाव को ठीक करने के लिये कोई दवा खायी हो.
यही कारण है कि वर्षो से इस गांव में चली आ रही यह परंपरा अब भी पूरे उत्साह के साथ हर वर्ष पूरा किया जा रहा है.भक्ति की इस परंपरा का वर्षो से पालन करने वाले हठी भक्तों का मानना है कि जब पूरी प्रक्रिया ही भगवान को समर्पित है, तो उसमें भक्तों का बूरा होने का सवाल ही नहीं उठता.
जिस मन्नत को पूरा करने के लिये भक्त भगवान से वादा करते है, वहां वादा खिलाफी की दूर-दूर तक गुंजाइश नहीं रहती है. इसे चाहे अंध विश्वास की पराकाष्ठा कहें या अपने आराध्य देव भोलेनाथ शिवशंकर के प्रति अटूट अस्था. मन व आत्मा की शांति के लिये शरीर को बेहद कष्ट देने में हठी भक्तों को सुकून मिलता है.

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