रांची. झारखंड हाइकोर्ट ने नशा के कारोबार व अफीम की खेती को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई की. एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद व जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान पुलिस द्वारा प्रस्तुत स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) को देखा. खंडपीठ ने माैखिक रूप से कहा कि एसओपी में भविष्य में राजधानी में मंदिर, अस्पताल व शैक्षणिक संस्थाओं के नजदीक खुदरा शराब दुकान, बार के संचालन के लिए लाइसेंस नहीं देने की बात कही गयी है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि मंदिर व शिक्षण संस्थानों के निकट जो बार व खुदरा शराब दुकान खुल चुके हैं, उनका लाइसेंस रद्द करने के लिए क्या कार्रवाई की जायेगी. खंडपीठ ने राज्य सरकार को यह बताने का निर्देश दिया कि मंदिर व शिक्षण शिक्षण संस्थान के निकट जो बार, शराब दुकान खुले हैं, उन्हें कब बंद किया जायेगा. खंडपीठ ने कहा कि पुलिस की एसओपी सिर्फ आईवाश वाली नहीं होनी चाहिए. कहा कि देर रात तक बार के संचालन से विगत दिनों एक आपराधिक घटना हुई थी. बार में मारपीट व हत्या की घटनाएं अक्सर होती रही हैं. विधि-व्यवस्था पुलिस के जिम्मे है. ऐसे में सख्त कदम उठा कर बार को निर्धारित समय में बंद कराया जाना चाहिए, ताकि वहां हिंसा की घटनाओं को रोका जा सके. मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने 29 अगस्त की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व पुलिस की ओर से शराब दुकान, बार संचालन के साथ-साथ मादक पदार्थों की खरीद-बिक्री की रोकथाम को लेकर एसओपी प्रस्तुत किया गया. मामले में पुलिस की एसओपी पर प्रति उत्तर देने के लिए समय देने का आग्रह किया गया, जिसे खंडपीठ ने स्वीकार कर लिया. प्रार्थी अनुराग कुमार की ओर से अधिवक्ता नवीन कुमार ने पैरवी की, जबकि रांची नगर निगम की ओर से अधिवक्ता एलसीएन शाहदेव ने पक्ष रखा. उल्लेखनीय है कि खूंटी जिला में अफीम की बढ़ती खेती को झारखंड हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है