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झारखंड : मेयर, पूर्व मुख्य सचिव सहित 15 पर बॉडीगार्ड के 3.37 करोड़ बकाया
शकील अख्तर रांची : राज्य के पूर्व मुख्य सचिव एके सिंह, मेयर आशा लकड़ा सहित 15 सेवानिवृत्त अधिकारियों व नेताओं पर बॉडीगार्ड का 3.37 करोड़ रुपये बकाया है. जिला पुलिस को लंबे समय से इन बकाया का भुगतान नहीं किया गया. बकायेदारों की सूची में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों के नाम अधिक हैं. रांची पुलिस की […]
शकील अख्तर
रांची : राज्य के पूर्व मुख्य सचिव एके सिंह, मेयर आशा लकड़ा सहित 15 सेवानिवृत्त अधिकारियों व नेताओं पर बॉडीगार्ड का 3.37 करोड़ रुपये बकाया है. जिला पुलिस को लंबे समय से इन बकाया का भुगतान नहीं किया गया. बकायेदारों की सूची में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों के नाम अधिक हैं. रांची पुलिस की ऑडिट के बाद प्रधान महालेखाकार (पीएजी) ने इससे संबंधित रिपोर्ट सरकार को भेज दी है. पीएजी ने पुलिस के उस तर्क को भी अस्वीकार कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि उग्रवादियों व अपराधियों की टेलीफोनिक वार्ता सुनने के बाद सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से इन्हें बॉडीगार्ड दियेगये थे.
मार्च 2013 के बाद से नहीं हुई जिला सुरक्षा समिति की बैठक : पीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गृह विभाग ने मंत्रियों, विशिष्ट व्यक्तियों, अधिकारियों व सेवानिवृत अफसर के अलावा गैर सरकारी व्यक्तियों को बॉडीगार्ड उपलब्ध कराने का नियम बना रखा है. इसकी समीक्षा के लिए राज्य, प्रमंडल और जिला स्तर पर सुरक्षा समिति बना कर उनकी बैठकों का समय तक निर्धारित किया है. नियमानुसार राज्यस्तरीय समिति की बैठक तीन माह में एक बार, प्रमंडल स्तरीय समिति की बैठक दो माह में एक बार और जिलास्तरीय समिति की बैठक हर माह होनी चाहिए. पर रांची में जिला सुरक्षा समिति की बैठक मार्च 2013 के बाद से नहीं हुई है.
नहीं की गयी वसूली : रिपोर्ट में कहा गया है कि रांची पुलिस के बॉडीगार्ड प्रतिनियुक्ति रजिस्टर से इस बात की जानकारी मिलती है कि यहां गृह विभाग के नियमों के विपरीत बॉडीगार्ड दिये गये. एेसी स्थिति में संबंधित सेवानिवृत अधिकारियों और नेताओं से बॉडीगार्ड के वेतन भत्ता मद के 3.37 करोड़ रुपये की वसूली की जानी चाहिए. पर इसकी वसूली नहीं की गयी है.
पीएजी ने किया तर्क से इनकार : रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑडिट टीम की अापत्तियों के मद्देनजर पुलिस की ओर से जवाब दिया गया कि उसके पास टेलीफोन से बातचीत सुनने के कई अत्याधुनिक उपकरण हैं. इस कारण उग्रवादियों और अपराधियों की फोन से होनेवाली बातचीत सुन कर बॉडीगार्ड उपलब्ध कराये जाते हैं. राजधानी में मंत्री, नेता व विशिष्ट व्यक्ति रहते हैं. उनकी सुरक्षा प्रशासन की जिम्मेवारी है. सांप्रदायिक दंगा या अपराधियों द्वारा हत्या करने की स्थिति में सरकार को अत्याधिक खर्च करना पड़ता है. पीएजी ने पुलिस के इस तर्क को यह कहते हुए इनकार कर दिया है कि सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से ही गृह विभाग ने बाडीगार्ड देने का विस्तृत नियम बनाया है. रांची पुलिस द्वारा सेवानिवृत अधिकारियों व अन्य को दिया गया बॉडीगार्ड इस नियम के अनुरूप नहीं है.
बकायेदारों का ब्योरा
नाम पद नाम
आशा लकड़ा मेयर, रांची
एके सिंह सेवानिवृत्त मुख्य सचिव
जेबी तुबिद सेवानिवृत्त गृह सचिव
आरआर प्रसाद सेवानिवृत्तडीजीपी
आशा सिन्हा सेवानिवृत्त डीजी
कुमुद चौधरी सेवानिवृत्त डीजी
अरुण उरांव सेवानिवृत्त आइजी
मोहम्मद नेहाल सेवानिवृत्त डीआइजी
पीआर दास सेवानिवृत्त डीआइजी
रामचंद्र राम सेवानिवृत्त डीआइजी
उदयन कुमार सिंह सेवानिवृत्त एसपी
सुकरा सिंह मुंडा जिला परिषद
पार्वती देवी जिला परिषद
क्या कहता है नियम
नियम के तहत जनहित में गृह आयुक्त या गृह सचिव की अनुशंसा के आलोक में किसी को बॉडीगार्ड उपलब्ध कराने पर उस पर होनेवाले खर्च (वेतन भत्ता आदि) की भरपाई राज्य सरकार करेगी
नियम के अतिरिक्त किसी को अंगरक्षक उपलब्ध कराने पर संबंधित व्यक्ति से उसके खर्च की वसूली की जानी है
सेवानिवृत अधिकारियों के मामले में सुरक्षा समिति द्वारा स्थिति की समीक्षा कर बॉडीगार्ड देने या नहीं देने का प्रावधान है. शेष मामलों में बॉडीगार्ड देने पर संबंधित व्यक्ति से खर्च वसूली की जानी है
पुलिस अधीक्षक द्वारा विशेष परिस्थिति में किसी को अधिकतम 30 दिनों के लिए बॉडीगार्ड दिया जा सकता है
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