न्यायमूर्ति शाहदेव ने 1998-99 के दाैर में झारखंड आंदोलन का सर्वदलीय अलग राज्य निर्माण समिति के संयोजक के रूप में नेतृत्व किया था. यह दाैर झारखंड आंदोलन के लिए सबसे कठिन दाैर में से एक था. इस दाैर में आंदोलन सुस्त हो गया था. लालू प्रसाद ने घोषणा कर रखी थी कि झारखंड उनकी लाश पर बनेगा. इस दाैर में न्यायमूर्ति शाहदेव ने 16 राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाकर आंदोलन में जान फूंकने का काम किया था. वर्ष 1992 में उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्ति के बाद न्यायमूर्ति शाहदेव झारखंड आंदोलन के एक प्रबल समर्थक के रूप में उभर कर सामने आये ओर आंदोलन को सही दिशा देने के लिए उनके लेख स्थानीय समाचार पत्रों में नियमित रूप से छपते रहे. न्यायमूर्ति शाहदेव के प्रयास से बुद्धिजीवियों व सदानों का एक बड़ा वर्ग झारखंड आंदोलन से जुड़ा. पहले यह झारखंड नामधारी दलों के नेताअों के बाहर भगाने के विवादास्पद बयानों से सशंकित रहता था. न्यायमूर्ति शाहदेव के सामने आने से आंदोलन को बाैद्धिक ऊर्जा भी मिली थी.
1990 के दशक के दाैरान तत्कालीन केंद्र सरकारें दिग्भ्रमित करती थी.. न्यायमूर्ति शाहदेव माने हुए संविधान विशेषज्ञ थे. उन्होंने स्पष्ट किया था कि केंद्र चाहे तो सामान्य बहुमत से भी सदन में अलग राज्य का विधेयक पारित कर सकती है. न्यायमूर्ति शाहदेव ने अनेक उदाहरण देते हुए यह भी स्पष्ट किया था कि बिहार विधानमंडल के विरोध का भी विधेयक पर कोई कानूनी प्रभाव नहीं पड़ेगा.
उनकी उपस्थिति में हुई उच्च स्तरीय वार्ता में केंद्र की इन दलीलों को आंदोलनकारी नेताअों ने खारिज कर दिया था. न्यायमूर्ति शाहदेव सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी आयोग के अध्यक्ष बन सकते थे, लेकिन उन्होंने माटी के प्रति लगाव के कारण झारखंड आंदोलन से जुड़ने को प्राथमिकता दी. न्यायमूर्ति शाहदेव अब हमारे बीच नहीं है. मगर उनके विचार हमेशा प्रासंगिक रहेंगे. अति पिछड़ा लातेहार जिला के चंदवा प्रखंड के रोल गांव में जन्मे इस झारखंड के सपूत ने झारखंड आंदोलन में अपनी अमिट छाप छोड़ी है. सचमुच झारखंड को अपने ऐसे सपूत पर गर्व है.