रांची : झारखंड के गठन के 16 वर्षों बाद इस साल जब सात अप्रैल को राज्य की भाजपा के नेतृत्व वाली रघुवर दास सरकार ने अति संवेदनशील स्थानीयता की नीति को परिभाषित किया और तीस वर्ष से अधिक समय से राज्य में रहने वाले सभी लोगों को स्थानीय मान लिया तो एकाएक सरकार और विपक्ष आमने-सामने आ गये. राज्य सरकार ने आदिवासी भूमि से जुडे कानूनों सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट में जून के अंतिम सप्ताह में संशोधन की पहल की जिससे विपक्ष और उग्र हो गया। बहरहाल, विकास की अभिनव पहलों के चलते राज्य सरकार ने तारीफ भी बटोरी.
झारखंड में इस साल सरकार ने तय कर दिया कि रोजगार, व्यापार अथवा किसी अन्य कारण से तीस वर्ष अथवा उससे अधिक समय से राज्य की सीमा में रहने वाले भारतीय यहां के स्थानीय निवासी माने जायेंगे. फैसले के अनुसार भू राजस्व के लेखे में जिस किसी का नाम अथवा उसके पिता या दादा का नाम तीस वर्ष अथवा उससे पहले से दर्ज होगा उसे स्थानीय माना जायेगा. सरकार ने फैसला किया कि भूराजस्व में नाम न होने पर संबद्ध ग्राम सभा का प्रमाण भी इस संबन्ध में मान्य होगा. राज्य बनने के बाद 16 वर्ष से स्थानीयता तय करने के मुद्दे पर यहां लगातार आन्दोलन होते रहे. यहां तक कि इस मुद्दे पर सरकारें भी गिरती बनती रहीं लेकिन पहली बार केंद्र और राज्य में पूर्ण बहुमत होने का फायदा उठा कर भाजपा की सरकार ने जब एकाएक स्थानीयता की नीति तय कर दी तो विपक्ष भौंचक रह गया.
इस मुद्दे पर मुख्य विपक्षी झारखंड मुक्ति मोर्चा, बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा और कांग्रेस ने आन्दोलन की धमकी दी, बन्द आयोजित किया गया लेकिन विपक्ष कुछ खास नहीं कर सका. जून के अंत में राज्य सरकार औद्योगिक विकास एवं आधारभूत संरचना के विकास को ध्यान में रख कर आदिवासी भूमि से जुडे छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट एवं संथाल परगना टेनेंसी एक्ट में संशोधन के लिए अध्यादेश ले आई जिससे विपक्ष बौखला गया. विधानसभा के मानसून सत्र में विपक्ष ने राज्य सरकार के अध्यादेश को राष्ट्रपति के पास से वापस मंगा कर उस पर सदन में बहस की मांग की और मुख्य विपक्षी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सदन में चार दिनों तक खूब हंगामा किया जिससे कार्यवाही बाधित हुई.
विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार आदिवासियों की जमीन उद्योगपतियों को देने के लिए आतुर है जिसके चलते उसने इतने महत्वपूर्ण अधिनियम में संशोधन के लिए विधानसभा में बहस न करा कर अध्यादेश का रास्ता चुना. झामुमो ने 29 जुलाई को विधानसभा में अध्यादेश की प्रतियां फाड दीं और हंगामे के चलते छह दिनों का मानसून सत्र जाया चला गया. इस मुद्दे पर विपक्षी झामुमो, झाविमो एवं कांग्रेस तथा साम्यवादी दलों ने पूरे राज्य में सरकार विरोधी आंदोलन किए. सितंबर माह में सभी आदिवासी संगठनों ने एकजुट होकर रांची के मोरहाबादी मैदान में विशाल रैली निकाली जिससे राजधानी दिन भर के लिए थम सी गयी.
राज्य सरकार ने इन कानूनों में संशोधन का अध्यादेश राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए 28 जून को भेजा था लेकिन कानून पर राष्ट्रपति भवन से कोई जवाब नहीं आया। फिर सरकार ने 16 नवंबर को मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर सीएनटी एवं एसपीटी कानूनों में संशोधन कर अध्यादेश के स्वरुप को बदल दिया और बडा फैसला किया कि आदिवासी भूमि को विकास कार्यों के लिए अधिगृहीत किये जाने के बावजूद उस पर मालिकाना अधिकार संबद्ध आदिवासी का ही बना रहेगा. जब विधानसभा का शीतकालीन सत्र 17 नवंबर को बुलाया गया तो सरकार ने विपक्ष की मांग के अनुसार सीएनटी एवं एसपीटी संशोधन विधेयक को विधानसभा में पेश किया लेकिन विपक्ष ने चर्चा का विरोध किया. 23 नवंबर को जब विधानसभा में सीएनटी एवं एसपीटी संशोधन विधेयक को चर्चा के लिए रखा गया तो विपक्ष के भारी हंगामे के बीच सरकार ने ध्वनिमत से इसे पारित करा लिया और सदन की बैठक तय समय से दो दिनों पूर्व ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी.
इस बीच 11 जून को झारखंड में भाजपा ने द्विवार्षिक चुनावों में राज्यसभा की दोनों सीटें जीत लीं और झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, झारखंड विकास मोर्चा एवं वामपंथियों की एकजुटता को भेदते हुए उनके दो विधायकों से अपने पक्ष में क्रॉस वोट करवाने में भी सफलता हासिल की. झारखंड में राज्यसभा चुनावों के इतिहास को दोहराते हुए सत्ताधारी भाजपा सरकार ने जहां सरकारी तंत्र का उपयोग करते हुए दस जून की देर रात झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक चमरा लिंडा को वर्ष 2013 के एक आपराधिक मामले में जारी वारंट पर हिरासत में ले लिया जिससे राज्य विधानसभा के 81 निर्वाचित विधायकों में से 79 ने ही अपने मताधिकार का उपयोग किया. झामुमो के चमरा लिंडा और कांग्रेस के देवेन्द्र सिंह मतदान करने नहीं पहुंचे.
उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले जब उच्चतम न्यायालय में पलट गए तो राजनीतिक मोर्चे पर मायूस भाजपा को झारखंड से, उम्मीद से अधिक राज्यसभा की दो सीटें देकर राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रधानमंत्री से वाहवाही बटोरी. झारखंड ने इस वर्ष पेश बजट में जहां कृषि और महिलाओं के लिए अलग से बजट पेश कर नई परंपरा की नींव रखी वहीं केंद्र सरकार द्वारा प्रारंभ की गयी उदय योजना को अंगीकार करने वाला पहला राज्य भी झारखंड ही बना. इसके तहत राज्य विद्युत बोर्ड के कर्जों का निपटारा किया जायेगा और विद्युत व्यवस्था को दुरुस्त किया जायेगा.
राज्य सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव कर राज्य को लगातार दूसरे वर्ष व्यापार करने में सहूलियत के पैमाने पर देश के शीर्ष दस राज्यों में बनाये रखा जिसके लिए प्रधानमंत्री ने इसकी सराहना की। पिछले वर्ष इस पैमाने पर झारखंड देश के सभी राज्यों में तीसरे स्थान पर था. वर्ष का अंत आते-आते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा घोषित नोटबंदी की नीति को आगे बढकर पूरी तरह लागू करने वाले राज्यों में भी झारखंड अग्रणी रहा और मुख्यमंत्री रघवुर दास ने राज्य को अगले एक वर्ष में अधिकतर कैशलेस अर्थव्यवस्था में तब्दील करने की घोषणा कर दी जिसकी एक बार फिर प्रधानमंत्री ने सराहना की.
इतना ही नहीं, आठ नवंबर को प्रधानमंत्री की पांच सौ और एक हजार रुपये के पुराने नोटों को खत्म करने की घोषणा के बाद उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए भी झारखंड सरकार ने देश में सबसे पहले नये करेंसी नोटों को राज्य में लाने के लिए अपने हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया। इसके चलते राज्य में नोटबंदी का प्रतिकूल असर बहुत कम हुआ.